वैसे ईरान-इजराइल के बीच चल रही जंग से दुनिया का हर देश परेशान है. परेशान होने की बात भी है. इसके परिणाम भविष्य में काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं. कच्चे तेल की कीमतों आसमान पर पहुंच सकती हैं. जिसका असर ग्लोबल इकोनॉमी पर साफ दिखाई देगा. जैसा कि पहले भी देखा जा चुका है. लेकिन इस वॉर से चीन विशेष रूप से परेशान है. इस परेशानी का सबब है ईरान के साथ उसका बाइलेटरल ट्रेड और अरबों डॉलर का निवेश.
अगर ईरान-इजराइल के बीच युद्ध जल्द खत्म नहीं होता है तो दोनों देशों के बीच के बाइलेटरल ट्रेड पर तो असर होगा ही साथ ही उसके अरबों डॉलर के निवेश को भी काफी नुकसान हो जाएगा. यही कारण है कि चीन ईरान की हरसंभव मदद कर रहा है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर ईरान-इजराइल के बीच चल रही इस जंग में चीन को कितना नुकसान उठाना पड़ सकता है.
क्यों परेशान है ड्रैगन?
ईरान-इजराइल की जंग के बीच चीन की परेशानी कई वजहों से है. उसकी पहली वजह है ईरान के साथ चीन के बाइलेटरल संबंध जोकि काफी अच्छे देखने को मिलते हैं. इस बात की गवाही दोनों देशों के बीच एक्सपोर्ट इंपोर्ट के आंकड़े दे रहे हैं. अगर दोनों देशों के बीच युद्ध लंबे समय तक चला तो इसका असर चीन की इकोनॉमी पर देखने को मिल सकता है. वास्तव में चीन ईरानी क्रूड ऑयल का सबसे बड़ा इंपोर्टर है. चीन के क्रूड ऑयल इंपोर्ट में ईरानी तेल की हिस्सेदारी 15 फीसदी है. आने वाले दिनों में चीन की मंशा इस हिस्सेदारी को दोगुना करने की है. ताकि उसे सस्ते दामों पर ईरान का क्रूड ऑयल मिल सके.
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वहीं चीन पूरे मिडिल ईस्ट में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए ईरान का इस्तेमाल करने में जुटा हुआ है. यही कारण है कि चीन ने ईरान के साथ 25 साल तक सहयोग करने पर साइन किए हैं. जिसमें ईरान चीन को सस्ती कीमतों पर क्रूड ऑयल प्रोइड कराएगा और चीन ईरान की इकोनॉमी को बढ़ाने के लिए 400 अरब डॉलर के निवेश की मदद करेगा. जिसमें ईरान के डिफेंस सिस्टम को भी सपोर्ट करेगा. अगर चीन ईरान की मदद नहीं करता है तो ड्रैगन की इकोनॉमी को भी झटका लगेगा. जिसमें क्रूड ऑयल अहम कड़ी है.
कितना हो सकता है नुकसान?
गेटस्टोन इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो गॉर्डन चांग एक विदेशी मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा कि चीन ने ईरान के कुल ऑयल एक्सपोर्ट का 90 फीसदी लिया है. वहीं दूसरी ओर ईरान को डिफेंस सिस्टम मजबूत करने में भी मदद की है. चीन के आधुनिक हथियार ईरानी सेना, हमास, हूती मिलिशिया, हिजबुल्लाह के लड़ाकों के पास मौजूद है. मौजूदा समय में चीन की मिडिल ईस्ट पॉलिसी काफी उलझी हुई है. ऐसे में ईरान को कोई नुकसान होता है तो वो सीधा चीन का नुकसान है. अगर ईरान की सत्ता में परिवर्तन् देखने को मिलता है और डॉलर में ट्रेड शुरू हो जाता है तो भी चीन को मोटा नुकसान होने का अनुमान है, जोकि हर साल 20 से 30 बिलियन डॉलर का है.
कितना होता है दोनों देशों में बाइलेटरल ट्रेड
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान कस्टम्स एडमिनिस्ट्रेशन (आईआरआईसीए) के प्रमुख के अनुसार, वर्तमान ईरानी कैलेंडर वर्ष (21 मार्च-21 मई) के पहले दो महीनों के दौरान ईरान और चीन के बीच नॉन ऑयल ट्रेड का मूल्य 4.631 बिलियन डॉलर रहा. फोरौद असगरी के अनुसार चीन उक्त दो महीने की अवधि में ईरान का टॉप नॉन-ऑयल एक्सपोर्ट था, जिसने ईरान से 2.425 बिलियन डॉलर का सामान इंपोर्ट किया. आईआरआईसीए प्रमुख ने कहा कि ईरान को 2.206 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात करते हुए, चीन उक्त दो महीनों में ईरान का नॉन-ऑयल इंपोर्ट का दूसरा सोर्स था.
पिछले ईरानी कैलेंडर वर्ष में ईरान और चीन के बीच नॉन-ऑयल ट्रेड का मूल्य 34.1 बिलियन डॉलर था, जो 20 मार्च, 2025 को समाप्त हुआ. उन्होंने कहा कि ईरान से 14.8 बिलियन डॉलर मूल्य के नॉन-ऑयल प्रोडक्ट्स का इंपोर्ट करने वाला चीन पिछले वर्ष ईरानी उत्पादों का पहला डेस्टीनेशन था. ईरान को 19.3 बिलियन डॉलर मूल्य के नॉन-ऑयल प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट करके, चीन इस ईरान के लिए इंपोर्ट का दूसरा सबसे बड़ा सोर्स रहा.
