धरती से मिट्टी, नदी से पानी, सूरज से अग्नि, पहाड़ों से स्थिरता और हवा से प्राणवायु लेकर ईश्वर ने मानव को बनाया है अर्थात मानव जिंदगी पर्यावरण के सांचे में ढलकर संवरी है पर्यावरण है तो मानव है लेकिन आज स्थिति विपरीत है मनुष्य ने पृथ्वी के 50 प्रतिशत हिस्से को बदल दिया। शहरी करण, कृषि,खनन और बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए भूमि का उपयोग लगातार बलता जा रहा है धरती के बदलते स्वरूप के कारण ही आज जंगल काटे जा रहे हैं.
सीमेंट और क्रंकीट गगनचुंबी इमारतें में मानव कैद होता जा रहा है इस बीच विडम्बना यह कि वृक्षारोपण केवल कागजों से चलकर फोटो खींचने तक ही सिमटता जा रहा है फिर हम कैसे प्रकृति को संरक्षण प्रदान कर सकते हैं हालातों को देख कर ऐसे लगने लगा कि हम प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं बदले में प्रकृति ने भी हमें नष्ट करने का मानस बना लिया। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढते तापमान से आप सब परिचित हैं.
बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग से बचाव हेतु हम तो कूलर – ए सी की शरण ले लेंगे लेकिन यह नहीं सोचा कि जीव- जन्तुओ का धणी कौन होगा । आज पेड़ों की अन्धाधुंध कटाई और उस अनुपात में पौधारोपण न होने के कारण आज रंगों से भरी प्रकृति में केवल दो ही रंग -काला और सफेद का प्रभाव बढ़ता जा रहा है रंगों के अभाव में जीवन कैसा होता है इसका अनुभव मानव से ज्यादा किसी के पास नहीं है इसलिए रंगहीन प्रकृति को रंगीन बनाने के लिए हमें संभलना होगा। मनुष्य को अपनी तरक्की के साथ- साथ पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना होगा हालांकि इस हेतु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहल दशकों से चल रही है।
तीन दशक पहले 1992 में रियो डी जेनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पर्यावरण को को लेकर बढ़ती चुनौतियों को को लेकर समाधान की जरूरत बताई , तत्पश्चात 2015 पेरिस समझौता में जलवायु परिवर्तन समस्या को लेकर दौ सो से अधिक देशों के मध्य एक समझौता हुआ। हालांकि समझौता का मुख्य उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना था ताकि बढते बढते तापमान पर नियंत्रण किया जा सके। समझौता तो हो गया लेकिन जनमानस पर प्रभाव नहीं दिखा सका । पंखे की हवा खाने वाला कूलर का सफर करते हुए आज एयर कंडीशनर का सुख भोग रहा है। हमारे देश में साइकिल का सफर छोड़कर कारों में घूमना स्टेटस सिंबल बनता जा रहा।
वहीं डेनमार्क जैसे देश में आज भी 41प्रतिशत यात्रा साईकिल से की जाती है तो फिनलैंड जैसे देश में व्यक्तिगत वाहन व्यवस्था खत्म कर पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर जोर देते हुए दिसम्बर 2025 से व्यक्तिगत वाहन व्यवस्था समाप्त हो जायेगी । पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देते हुए नार्वे शत प्रतिशत ई-वाहन व्यवस्था लागू करने पर जोर दे रहा है एवं पेरू जैसे देश में पर्यावरण सम्बन्धी यथा – अवैध खनन, वनों की कटाई , पर्यावरण क्षरण को रोकने एवं वन्यजीवों के संरक्षण के लिए अलग से पर्यावरण कोर्ट काम कर रहे हैं । हमें भी प्रेरणा लेते हुए प्रकृति को रंगों से ओत-प्रोत रखने के लिए डेनमार्क, फिनलैंड एवं नार्वे जैसे देशों का अनुसरण करना होगा साथ ही सांसों का महत्व समझते हुए सभी को स्वप्रेरणा से पेड़ लगाने एवं संरक्षित करने पर जोर देना होगा ।
