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September 9, 2024 12:08 am

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महात्मा गांधी ने आजादी के जश्न में शामिल होने से क्यों मना किया……..’15 अगस्त 1947

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दिल्ली में हर साल की तरह 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस पर खास इंतजाम किए जा रहे हैं. भारत के इतिहास में 15 अगस्त की तारीख बेहद खास है. इसी दिन 1947 में भारत को 200 साल से चले आ रहे क्रूर अंग्रेजी शासन से आजादी मिली थी. आजादी के सपने को हकीकत बनाने में सैकड़ों क्रांतिकारियों ने अपना पूरा जीवन लगा दिया. उनमें से एक थे महात्मा गांधी, जिन्हें ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि हासिल थी. लेकिन 15 अगस्त 1947 की अहम तारीख को भी वो दिल्ली नहीं थे. आइए जानते हैं ऐसा क्यों.

जब देश को आजादी मिली और पूरा देश जश्न मना रहा था तब महात्मा गांधी ने उत्सव में शामिल होने से इनकार कर दिया था. दरअसल, उस दिन महात्मा गांधी दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर बंगाल के नोआखली में थे.

दिल्ली में क्यों नहीं थे महात्मा गांधी?

14 अगस्त की आधी रात जब जवाहर लाल नेहरू संसद के केंद्रीय हॉल में अपना ऐतिहासिक भाषण दे रहे थे, तब देश के ‘राष्ट्रपिता’ महात्मा गांधी बंगाल में थे. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, बापू ने नेहरू का भाषण भी नहीं सुना क्योंकि तब तक वो गहरी नींद में सो गए थे. तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन और पंडित नेहरू दोनों ने महात्मा गांधी से आजादी के दिन दिल्ली में रहने का अनुरोध किया था, लेकिन बापू ने उनका अनुरोध स्वीकार नहीं किया. उन्होंने कहा कि बंगाल के नोआखाली में उनकी ज्यादा जरूरत है.

दरअसल, आजादी से पहले हिन्दुस्तान, विभाजन के दुखद किस्से का गवाह बना था. बंटवारे से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी. उसी को शांत करने के लिए महात्मा गांधी बंगाल गए हुए थे.

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कैसा रहा गांधी जी का वो हफ्ता?

9 अगस्त, 1947 को नोआखाली जाते हुए महात्मा गांधी कलकत्ता में रुके थे. जब बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी को इसकी खबर मिली, तो उन्होंने बापू को थोड़े दिन रुकने के लिए मना लिया. दरअसल, कलकत्ता में भी उन दिनों सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे. महात्मा गांधी ने सुहरावर्दी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया.

बंगाल में हालात बहुत गर्म थे. बेलियाघाट में मौजूद हिंदू गांधी पर मुस्लिम समर्थक होने का आरोप लगा रहे थे. उन्होंने बापू को वापस लौटने तक को कह दिया. 14 अगस्त की शाम को प्रार्थना सभा में हजारों लोगों की भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘कल 15 अगस्त को हम ब्रिटिश शासन से आजाद हो जाएंगे. लेकिन आज आधी रात को भारत दो देशों में बंट जाएगा. कल खुशी का दिन होने के साथ-साथ दुख का भी दिन होगा.’

प्रार्थना सभा के बाद रात को महात्मा गांधी के घर के बाहर खड़ी भीड़ सुहरावर्दी के खिलाफ नारे लगा रही थी. भीड़ में से एक ने सुहरावर्दी से चिल्लाकर पूछा कि क्या आप एक साल पहले कलकत्ता में हुई हत्याओं के लिए जिम्मेदार नहीं थे? सुहरावर्दी ने उस घटना में अपनी भूमिका को स्वीकार कर लिया, जिससे भीड़ शांत हो गई.

क्या नेहरू और पटेल ने बापू को मानने की कोशिश की?

पंडित नेहरू और सरदार पटेल ने महात्मा गांधी को दिल्ली बुलाने की पूरी कोशिश की, जब तय हो गया कि भारत 15 अगस्त को आजाद होगा तो जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को खत भेजा. इसमें लिखा था, ’15 अगस्त हमारा पहला स्वाधीनता दिवस होगा. आप राष्ट्रपिता हैं. इसमें शामिल होकर अपना आशीर्वाद दें.’ बापू ने इसका जवाब भिजवाया, ‘जब कलकत्ते में हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं. इससे ज्यादा जरूरी है कि मैं उनके बीच रहूं.’ इतना कहकर बापू कुछ दिन बाद बंगाल के लिए रवाना हो गए.

महात्मा गांधी ने किस तरह मनाया 15 अगस्त?

संयोग से जिस दिन भारत को आजादी मिली थी, उसी तारीख को महात्मा गांधी के करीबी महादेव देसाई की पांचवीं पुण्यतिथि थी. पिछले पांच सालों के 15 अगस्त की तरह उस दिन भी उन्होंने उपवास रखा और अपने सचिव की याद में पूरी गीता पढ़वाई.

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 15 अगस्त की शाम को उन्होंने इंग्लैंड में अपनी दोस्त अगाथा हैरिसन को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने बताया कि इन बड़े अवसरों को मनाने का उनका तरीका अलग है. ऐसे दिन वो प्रार्थना करके ईश्वर को धन्यवाद करते है. देश की आजादी के दिन बापू ने ब्रिटेनवासियों को अपना प्यार भेजा.

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