बुधवार सुबह से इजरायल और लेबनान के मिलिटेंट समूह हिजबुल्लाह के बीच सीजफायर हो चुका. UNSC रिजॉल्यूशन के तहत आई इस शांति की खास बात ये है कि सीजफायर सिर्फ 60 दिनों के लिए है. इस मियाद के दौरान दोनों पक्ष अपनी-अपनी तरफ से शांति की कोशिश करेंगे. लेकिन क्या ये वक्त खत्म होते ही मिडिल ईस्ट फिर अशांत हो सकता है?
पहले समझ लें थोड़ा बैकग्राउंड
पिछले साल 7 अक्टूबर को एक्सट्रीमिस्ट समूह हमास ने एक हमले में हजारों इजरायली नागरिकों की जान ले ली, और ढाई सौ से ज्यादा को अगवा कर लिया. गाजा में बसे इस गुट की ऐसी हरकत के बाद इजरायल ने भी हमला बोल दिया और मिडिल ईस्ट में लगी ये चिंगारी आगे फैलती ही चली गई. इसमें लेबनान का चरमपंथी समूह हिजबुल्लाह भी शामिल हो गया, जो हमास की विचारधारा को सपोर्ट करता है. हमास और इजरायल के बीच तो अनाधिकारिक तौर पर जंग अब भी जारी है लेकिन हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच दो महीनों का सीजफायर हो चुका.
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युद्धविराम, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के 1701 रिजॉल्यूशन पर आधारित है. यूएनएससी यह प्रस्ताव साल 2006 में लेकर आई थी, जिसका अकेला मकसद हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच तनातनी को कम करना है. साथ ही ये बफर जोन में स्थाई सीजफायर की बात भी करता है.
ये वो साल था, जब हिजबुल्लाह ने तीन इजरायली सैनिकों की हत्या कर दी थी और दो को अगवा कर लिया था. इससे भड़के इजरायल ने दक्षिणी लेबनान पर कब्जा कर लिया ताकि चरमपंथी गुट को कमजोर किया जा सके. बता दें कि दक्षिणी हिस्से में ही हिजबुल्लाह का हेडक्वार्टर है. अब इस जगह से दोनों को ही हटने कहा गया है और लेबनानी सेना वहां रहते हुए ये सुनिश्चित करेगी कि युद्धविराम पूरी तरह से लागू हो सके.
लगभग सवा साल बाद क्यों अचानक हुआ सीजफायर
इसके संकेत पहले से दिए जा रहे थे. पिछले कुछ दिनों में दोनों के बीच हमलों में कमी आई. यूएनएससी का रिजॉल्यूशन भी एकाएक लागू नहीं हुआ, बल्कि कई बड़े देश इसके लिए काम कर रहे थे. असल में हमलों के बीच लेबनान में हजारों जानें जा चुकीं और विस्थापन भी बढ़ गया था. दुनिया पहले ही रिफ्यूजी संकट से जूझ रही है. ऐसे में लेबनानी विस्थापन का असर बाकी देशों पर भी पड़ता. ये कुछ वैसा ही है कि पड़ोसी के घर की आग न बुझे तो अपना घर भी जल सकता है. यही वजह है कि अमेरिका समेत पूरा का पूरा यूरोप एक्शन में आ गया.
60 दिनों में क्या-क्या होगा
इस दौरान हिजबुल्लाह लेबनान और इजरायल के बीच के बफर जोन से अपने लड़ाके हटा लेगा. साथ ही इजरायल भी लेबनानी बॉर्डर से हटेगा. इन दोनों की बजाए वहां लेबनानी आर्मी होगी जो तय करेगी कि अंदर-अंदर कोई सुगबुगाहट न चलती रहे.
अवधि खत्म होने के बाद क्या होगा
सीजफायर समझौता फिलहाल 60 दिनों के लिए है. इस दौरान साउथ लेबनान के लोग लाखों लोगों समेत उत्तरी लेबनान की भी हजारों की आबादी घर लौट सकेगी. बता दें कि उत्तरी हिस्से में इजरायल के भी काफी लोग हैं, जो लड़ाई की वजह से होटलों में रह रहे हैं. इसका बड़ा खर्च सरकार उठा रही है, जिससे आर्थिक दबाव बना है. युद्ध रुकने पर ये भी रुकेगा. हालांकि फिलहाल जैसे हालात हैं, उसमें पक्का नहीं कि युद्धविराम तय सीमा तक भी चलेगा, या फिर इतने वक्त बाद दोबारा शुरू नहीं हो जाएगा. वैसे तो मध्यस्थता कर रहे देशों ने इसे परमानेंट पीस की नींव कहा है लेकिन मिडिल ईस्ट के इतिहास को देखते हुए कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता.
क्यों सीरिया तक जा सकती है लड़ाई
सीजफायर के तहत साउथ लेबनान में वो सारे अवैध स्ट्रक्चर हटा दिए जाएंगे, जहां हिजबुल्लाह के लड़ाके रहते हैं, या हथियार जमा करते हैं. इस गुट को हथियारों के लिए मदद ईरान से मिलती रही. ये सारा काम सीरिया के रूट से होता है. अब लेबनान में शांति के बीच हो सकता है कि इजरायल सीरिया पर आक्रामक हो जाए ताकि हिजबुल्लाह हर मोर्चे पर कमजोर पड़ सके.
युद्धविराम के दौरान इसकी इजाजत वैसे तो नहीं है लेकिन सीजफायर की शर्तें मानते हुए इजरायल ऐसा प्रस्ताव दे भी सकता है. इसकी एक झलक इसी बात से मिल जाती है कि युद्धविराम के एलान के बीच इजरायल ने पहली बार लेबनान-सीरिया सीमा पर हमले किए.
क्या गाजा में भी हो सकता है सीजफायर
इजरायल ने इसपर साफ कर रखा है कि जब तक बिना शर्त बंधकों की रिहाई नहीं होती, वो हमला करता रहेगा. गाजा में भारी मानवीय संकट को देखते हुए मिडिल ईस्ट के देशों समेत कई बड़े देश मध्यस्थता की कोशिश कर चुके लेकिन दोनों ही पक्षों ने बिल्कुल लचीलापन नहीं दिखाया.