न्यूयॉर्क: महासभा की तीसरी समिति द्वारा ईरान सरकार के मानवाधिकार सम्बंधी रिकॉर्ड की निंदा करने वाले एक नए संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव ने ईरान में उत्पीड़ित बहाई समुदाय सहित अल्पसंख्यकों की दुर्दशा पर पिछले कई हफ्तों से जारी अंतर्राष्ट्रीय ध्यान को और गंभीर बना दिया है। उल्लेखनीय है कि बहाई लोग ईरान के सबसे बड़े गैर-मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यक हैं और उक्त प्रस्ताव में, जिसमें इस्लामी गणराज्य में विचार, विवेक, धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के अधिकार पर “लगातार जारी गंभीर सीमाओं और बढ़ते हुए प्रतिबंधों” की निंदा की गई है, ईरान की सरकार द्वारा विगत 45 वर्षों से किए जा रहे संस्थागत भेदभाव, मनमानी गिरफ्तारी, सम्पत्तियों के विध्वंस और अन्य प्रकार के दमन के लिए फटकार लगाई गई है।
विरुद्ध में 28 तथा गैर-मतदान वाले 66 मतों के साथ आज 77 मतों से पारित हुए, 49 देशों द्वारा सह-प्रायोजित इस प्रस्ताव में ईरान की सरकार से आह्वान किया गया है कि वह अपनी दंड-संहिता के अनुच्छेद 499 बीआईएस और 500 बीआईएस में संशोधन करे। इन अनुच्छेदों में गैर-मुस्लिम धार्मिक अभिव्यक्ति को अपराध माना गया है जिसके कारण मान्यता-प्राप्त अल्पसंख्यकों और बहाई समुदाय जैसे गैर-मान्यता प्राप्त धार्मिक अल्पसंख्यकों दोनों को ही निराधार रूप से आपराधिक आरोपों के दायरे में लाया जाता है। हाल के महीनों में इन अनुच्छेदों के तहत बहाई लोगों को गिरफ्तार किया गया है, बिना सबूत के उन पर मुकदमे चलाए गए हैं और उन्हें जेल में डाला गया है।
संयुक्त राष्ट्र में बहाई अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की मुख्य प्रतिनिधि बानी दुग्गल ने कहा कि “संयुक्त राष्ट्र के इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव को एक बार फिर महासभा की तीसरी समिति की स्वीकृति मिलने से बहाई अंतर्राष्ट्रीय समुदाय प्रसन्न है। हम आभारी हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मानव अधिकारों को बहाल रखने के अपने कर्तव्य में अडिग है। ईरान सरकार ने इन चिंताओं की सच्चाई को कभी स्वीकार नहीं किया और न ही उसने अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अपने मानवाधिकार सम्बंधी दायित्वों को ही कायम रखा है। बहाइयों और ईरान में रहने वाले सभी असुरक्षित अल्पसंख्यकों को सम्मान और स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने का अधिकार है और ईरान सरकार को इन अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।”
प्रस्ताव में कहा गया है कि बहाई समुदाय को घृणा फैलाने वाले भाषणों, दुष्प्रचार, शिक्षा और नौकरी पाने की पाबंदी और उनकी सम्पत्ति को मनमाने ढंग से जब्त करने और नष्ट करने का निशाना बनाया गया है। साथ ही प्रस्ताव में ईरान सरकार से यह भी आह्वान किया गया है कि वे बहाई गुलिस्तानों (अंत्येष्टि-स्थलों) को अपवित्र करने और धार्मिक पहचान के आधार पर व्यक्तियों पर नजर रखने का सिलसिला बंद करें।
प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि बहाई समुदाय को “निरंतर हमलों, यातनाओं और निशाना बनाने सहित लंबे समय से चली आ रही यातनाओं के सतत उग्र होते हुए प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें अपनी धार्मिक आस्था के कारण ईरान के इस्लामी गणराज्य की सरकार द्वारा पहले से भी अधिक प्रतिबंधों और सुनियोजित अत्याचार को झेलना पड़ रहा है। इसके अलावा, कथित तौर पर बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों और जेल की लंबी सजाओं के साथ-साथ प्रमुख सदस्यों की गिरफ्तारी और सम्पत्तियों की जब्ती और विध्वंस की गतिविधियों में भी वृद्धि हुई है।”
संयुक्त राष्ट्र में ब्राजील के मिशन ने तीसरी समिति के मतदान में कहा कि वह “महिलाओं, मानवाधिकार के रक्षकों और धार्मिक तथा जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ उल्लंघन की रिपोर्टों से चिंतित है। हम बहाई और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों के प्रति अपना समर्थन दोहराते हैं ताकि वे बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्र और शांतिपूर्ण तरीके से अपने धर्म का पालन कर सकें।”
इस बीच, हाल ही में ईरान के समाज में लैंगिक समानता के लिए उठ रही मांगों का उल्लेख करते हुए युनाइटेड किंगडम ने “बहाई महिलाओं को निशाना बनाए जाने” को एक “खतरनाक उभार” बताया।
दूसरी ओर, घाना ने “बहाई धर्मानुयायियों सहित, जो अपने अधिकारों के संरक्षण को प्रोत्साहित करने के संदर्भ में लगातार प्रतिकूल रिपोर्ट देते आ रहे हैं, ईरान के समाज में सभी वर्गों” के अधिकारों का समर्थन किया।
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इस्रायल और संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी ईरान की सरकार से देश के सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान करने का आह्वान किया।
संयुक्त राष्ट्र में यह नवीनतम हस्तक्षेप संयुक्त राष्ट्र महासभा की तृतीय समिति के दायरे में कई हफ़्तों तक जारी गहन अभिक्रियात्मक वार्ताओं के बाद सामने आया है जिनमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों और संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेष प्रतिवेदकों ने ईरान के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
तीसरी समिति की चर्चाओं में सदस्य देशों की ओर से प्रत्यक्ष हस्तक्षेप शामिल था जिसमें युनाइटेड किंगडम, आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने ईरान द्वारा बहाइयों पर बढ़ते अत्याचार की घोर निंदा की, तथा यूरोपीय संघ, कनाडा, चेकिया, इस्रायल, माल्टा और संयुक्त राज्य अमेरिका ने धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों पर व्यापक चिंताएं व्यक्त कीं।
आयरलैंड ने ईरान का आह्वान किया कि वह हर किसी के लिए धर्म, आस्था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के उद्देश्य से अपनी दंड-संहिता में तत्काल सुधार करे जबकि यूके ने हाल ही में गिरफ्तारियों के दौर को ईरान द्वारा बहाई समुदाय के दमन में “खतरनाक वृद्धि” बताया। युनाइटेड किंगडम ने आगे कहा कि बहाई महिलाओं की संख्या अब ईरान में बंद बहाई कैदियों की दो-तिहाई से अधिक है जो कि लैंगिकता-आधारित हिंसा को धार्मिक भेदभाव के शीर्ष पर शामिल करने वाली कठोर कार्रवाई का सूचक है।
सुश्री दुग्गल ने कहा कि ईरान में मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक प्रस्ताव, जिसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के सम्बंध में भी प्रस्ताव शामिल है, ईरान में सताए जा रहे बहाइयों और अन्य पीड़ितों के लिए “एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच” है और यह उत्पीड़न करने वालों को उजागर करता है। “यह प्रस्ताव ईरान का आह्वान करता है कि वह नागरिक और राजनैतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते के तहत अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करे जिसमें विचार, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी दी गई है। ईरान की सरकार को बहुत पहले ही अपने तौर-तरीकों में बदलाव लाना चाहिए था और अपने सभी नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए था। आज ईरान के सभी लोग अपनी कहानी को एक रूप में देखते हैं: यह प्रस्ताव उस तथ्य की पुष्टि करता है।”
नए घटनाक्रम
हाल ही में ‘अब्दुर्रहमान बोरोमंद सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स’, संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदकों जिनमें ईरान में मानवाधिकारों पर नए विशेष प्रतिवेदक प्रोफेसर मेई सैटो, और धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता पर विशेष प्रतिवेदक प्रोफेसर नाज़िला घनेया शामिल हैं, द्वारा ईरान में मानवाधिकारों के बारे में लॉन्च की गई एक नई रिपोर्ट आउटसाइडर्स: ईरान के इस्लामी गणराज्य में बहाईयों के खिलाफ बहुआयामी हिंसा में ईरान द्वारा बहाई समुदाय के सुनियोजित दमन, विशेष रूप से बहाई महिलाओं को निशाना बनाए जाने की बात कही गई है।
मोनाश विश्वविद्यालय के एलियॉस जस्टिस के साथ साझेदारी में अब्दुर्रहमान बोरोमंद सेंटर द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में बहाई समुदाय के विरुद्ध 45 वर्षों से जारी हिंसा का विवरण दिया गया है, जिसमें फांसी, कारावास, घरों और व्यवसायों को नष्ट करने जैसी प्रत्यक्ष हिंसा; शिक्षा और रोजगार से वंचित करने जैसी संरचनात्मक हिंसा; तथा सांस्कृतिक हिंसा का उल्लेख किया गया है जिसमें घृणा भरे भाषण और राज्य-संरक्षित भेदभाव शामिल है।
हाल ही में उत्पीड़न का एक भयावह उदाहरण अक्टूबर में देखने को मिला जब इस्फ़हान में 10 बहाई महिलाओं को कुल मिलाकर 90 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई। इन महिलाओं को “दुष्प्रचार करने” और ईरानी सरकार के खिलाफ़ काम करने का दोषी ठहराया गया था क्योंकि उन्होंने बच्चों की कक्षाओं सहित भाषा, कला और योग कक्षाओं जैसी शैक्षणिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया था और जिन्हें ईरान के अधिकारियों ने “भटकी हुई शैक्षणिक गतिविधियां” माना था।
हाल ही में की गई अंतर्राष्ट्रीय जांच में अक्टूबर में 18 संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र भी शामिल है जिसमें उन्होंने घरों पर छापे, यात्रा प्रतिबंध और लंबी जेल की सज़ा के ज़रिए बहाई महिलाओं को निशाना बनाने के लिए ईरान की निंदा की। महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ़ हिंसा, धर्म या आस्था की स्वतंत्रता और राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदकों सहित विशेषज्ञों ने सरकार की कार्रवाइयों को “लक्षित भेदभाव का एक लगातार जारी पैटर्न” कहा। और इस साल की शुरुआत में ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट, जिसका शीर्षक द बूट ऑन माई नेक था, ने पाया कि ईरान द्वारा बहाईयों पर 45 साल से चल रहा सुनियोजित दमन “मानवता के खिलाफ़ उत्पीड़न का अपराध” है।