सत्तर के दशक में खाड़ी देशों में भारतीय कामगारों की आवाजाही शुरू हुई. अब ये आबादी बढ़ते-बढ़ते 87 लाख से ज्यादा हो चुकी है. लेकिन बढ़िया कमाई के लिए पहुंचे माइग्रेंट उतने भी बढ़िया हाल में नहीं. मजदूरों के साथ हो रही नाइंसाफी को कुछ हद तक ठीक करने के लिए अब सऊदी अरब एक नया कानून ला रहा है. माइग्रेंट डोमेस्टिक वर्कर्स लॉ के लागू होने पर अमानवीय स्थितियों के लिए जिम्मेदार कफाला सिस्टम पूरी तरह से खत्म हो जाएगा.
कौन से देश गल्फ में शामिल
जिन भी देशों के बॉर्डर फारस की खाड़ी से मिलते हैं, वे खाड़ी या गल्फ देश कहलाते हैं. इनमें बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात- ये 6 देश शामिल हैं. वैसे तो ईरान और इराक भी फारस की खाड़ी से कनेक्टेड हैं, लेकिन वे गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल का हिस्सा नहीं, न ही यहां काम करने ज्यादा भारतीय जाते हैं.
कितने भारतीय हैं खाड़ी में
मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स ने एक आरटीआई के जवाब में बताया था कि लगभग 10.34 मिलियन एनआरआई 2 सौ से ज्यादा देशों में रह रहे हैं. इनमें यूएई में लगभग साढ़े 3 मिलियन, सऊदी अरब में 2.59 मिलियन, कुवैत में 1.02, कतर में 74 लाख, ओमान में 7 लाख, जबकि बहरैन में सवा 3 लाख भारतीय हैं.
सत्तर के दशक में ऑइल बूम के बाद इन देशों में तेजी से विकास होने लगा. खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी आई. लोग घरेलू कामों के लिए भी मदद खोजने लगे. ऐसे में भारतीय कामगार अच्छा विकल्प थे. वे आने को तैयार भी रहते थे, और बाकी देशों के कामगारों की तुलना में कम पैसों में ज्यादा काम करते थे. अब तनख्वाह का ब्रैकेट तो तय है लेकिन इसका पालन कम ही होता है.
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लगातार हो रही भारतीय वर्करों की मौत
हमारे यहां से काम करने गए लोग वहां कैसे रहते हैं, इसका अंदाजा डेटा से लग सकता है. साल 2014 से 2023 के बीच लगभग 63 लाख मजदूर काम करते हुए बुरी तरह से जख्मी हुए. वहीं साल 2022 में 6 हजार से ज्यादा वर्करों की मौत हो गई. डेथ टोल लगातार बढ़ रहा है. लोकसभा में सवाल-जवाब सेशन के दौरान बताया गया कि सबसे ज्यादा मौतें सऊदी अरब में दिखीं, जहां सालभर में करीब 11 हजार ऐसे वर्कर खत्म हो गए, जो भारत से बिल्कुल सेहतमंद गए थे.
कौन हैं माइग्रेंट डोमेस्टिक वर्कर
अब इन देशों के लेबर लॉ में माइग्रेंट डोमेस्टिक वर्कर्स कानून आएगा. ये कामगारों की वो कैटेगरी है, जो घरों पर या घरों के लिए काम करती है. जैसे, सऊदी में इस श्रेणी में 14 तरह के लोग आते हैं. इनमें घरेलू हेल्प, ड्राइवर, आया, नर्स, दर्जी, किसान, फिजियोथैरेपिस्ट और बोलने-सुनने की थैरेपी देने वाले लोग शामिल हैं. डेटा के अनुसार, फिलहाल सर्वेंट एंड हाउस क्लीनर सब-कैटेगरी में 20 लाख लोग हैं, जिनमें से 60 फीसदी महिलाएं हैं. वहीं ड्राइवर के काम के लिए पुरुषों को लिया जाता है.
क्या है कफाला बंदोबस्त
माना जा रहा है कि इसकी वजह से विदेशी मजदूरों का नुकसान हो रहा है. कफाला की किताबी परिभाषा को समझना चाहें तो ये स्पॉन्सरशिप सिस्टम है, जो फॉरेन वर्कर और उसके लोकल स्पॉन्सर के बीच होता है. इसमें एम्प्लॉयर को कफील कहा जाता है, जिसे कुवैत या बाकी गल्फ देशों की सरकार स्पॉन्सरशिप परमिट का हक देती है. कफील अक्सर कोई फैक्ट्री मालिक होता है. परमिट के जरिए ये विदेशी मजदूरों को अपने यहां बुला सकता है. बदले में वे मजदूर के आने-जाने, रहने और खाने का खर्च देते हैं.
किन देशों में ये सिस्टम
गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी), जिसमें बहरैन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी, यूएई, जॉर्डन और लेबनान शामिल हैं, इन सभी जगहों पर कफाला दिखता है. ये सिस्टम लगातार विवादों में फंसता चला गया.
क्या गलत है इसमें
ये एम्प्लॉयर को अपने कर्मचारी पर बहुत ज्यादा अधिकार दे देता है. आसान तरीके से कहें तो कामगार अपने मालिक का गुलाम हो जाता है. उसके काम के घंटे बहुत ज्यादा होते हैं और पगार तय नहीं होती. कई एम्प्लॉयर अपने मजूदरों के पासपोर्ट तक अपने पास रख लेते हैं ताकि वे कहीं भाग न सकें. यहां तक कि उन्हें फोन रखने या वर्क एरिया से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं होती. हफ्ते के किसी भी दिन उन्हें छुट्टी नहीं मिलती. पासपोर्ट जब्त हो चुकने की वजह से वे अपने देश भी नहीं लौट सकते.
क्या किसी देश में बैन भी है इसपर
यूनाइटेड नेशन्स में बात उठने पर कई देशों ने कफाला को खत्म करने की बात की, लेकिन ये पूरी तरह बंद नहीं हो सका. मालिक फैक्ट्री के भीतर ही मजदूरों को ठूंस देते हैं ताकि जब चाहे काम करवाया जा सके. खाड़ी देशों की सरकार को ये फायदा होता है कि उनके यहां कम कीमत पर उत्पादन होता रहता है.अमेरिकी थिंक टैंक- काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस ने भी कफाला सिस्टम पर बड़ी रिपोर्ट की थी. काफी शोरगुल पर बहरैन और कतर ने कह दिया कि उनके यहां ये बंद हो चुका.
और क्या-क्या खतरे
– खाड़ी देशों में कफाला के तहत पहुंचते ही वर्कर के सारे दस्तावेज ले लिए जाते हैं. यहां तक कि उनके पास फोन भी नहीं रहता कि वे अपने साथ किसी हादसे को रिपोर्ट कर सकें.
– फॉरेन कामगारों को फैक्ट्री के भीतर रखा जाता है ताकि वे 15-16 घंटे काम कर सकें. एक कमरे में दो दर्जन तक लोग ठूंस दिए जाते हैं.
– वीजा ट्रेडिंग भी बड़ी समस्या है. स्पॉन्सर अपने पास आए किसी मजदूर का वीजा किसी और को बेच देता है. ये अवैध तौर पर होता है. नया मालिक कम कीमत पर ज्यादा मेहनत वाले या ज्यादा जोखिमवाले काम करवा सकता है.
– चूंकि ये सिस्टम लेबर मिनिस्ट्री के तहत नहीं आता, इसलिए वर्करों के पास न कोई अधिकार होता है, न ही जोखिम से सुरक्षा. उन्हें छुट्टी लेने, काम छोड़ने या देश से जाने के लिए स्पॉन्सर की इजाजत चाहिए.
क्या होगा नया कानून आने पर
नए लॉ के तहत कामगारों से 10 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता. साथ ही उन्हें एक साप्ताहिक अवकाश भी मिलेगा. स्पॉन्सर उनके डॉक्युमेंट्स, जैसे पासपोर्ट नहीं रख सकेगा. कुछ खास हालातों में वर्कर के पास ये हक होगा कि वो काम छोड़ सके. हर साल उसे एक महीने की पेड लीव मिलेगी, साथ ही देश आने-जाने का खर्च भी एम्प्लॉयर ही उठाएगा.
सऊदी अरब ने जुलाई से ही वेज प्रोटेक्शन सिस्टम के तहत ये सारी बातें मान ली हैं और साल 2025 के आखिर तक ये लागू भी हो जाएगा.