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July 5, 2024 5:28 am

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Kalki 2898 AD Review: शानदार फ‍िल्म है कल्कि 2898 AD- साइंस-फिक्शन के संसार में मायथोलॉजी का एंगल…..

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भारत के सबसे बड़े एपिक ‘महाभारत’ से निकले किरदार, हिंदी और साउथ सिनेमा के सबसे बड़े स्टार्स. और एक कहानी जिसके जबरदस्त एक्शन में इमोशन कहीं भी कमजोर नहीं पड़ता… ‘कल्कि 2898 AD’ एक सच्ची इंडियन एपिक फिल्म है.

सबसे आइकॉनिक इंडियन फिल्मों को उठाइए और उनके रिव्यू देखिए. हर एक भारतीय सिनेमा फैन की नसों में घुल चुकी, रमेश सिप्पी की ‘शोले’ हो या एस. एस. राजामौली की ऑस्कर विनर ‘RRR’ हर फिल्म में कमियां तो मिल ही जाती हैं. लेकिन इन आइकॉनिक फिल्मों के आईडिया इतने यूनीक और बोल्ड थे जो इन्हें अपने तरह का पहला सक्सेसफुल एक्स्परिमेंट बनाते थे. ‘कल्कि 2898 AD’ भी ऐसी ही फिल्म है. और क्यों है, ये यकीन करने के लिए इसे देखना बहुत जरूरी है.

‘कल्कि 2898 AD’ ने प्रभास को ‘बाहुबली’ के बाद अपने स्टारडम का लेवल मैच करने वाला एक रोल दिया है. इसमें ‘महानायक’ अमिताभ बच्चन को वो किरदार मिला है जो उनके कद के साथ न्याय करता है. ये फिल्म दीपिका पादुकोण को मिले, टॉप इंडियन एक्ट्रेस के टैग को जस्टिफाई करती है और दिखाती है कि कमल हासन को क्यों ‘उलगानायगन’ यानी यूनिवर्सल स्टार कहा जाता है. पर इन सबसे बढ़कर ‘कल्कि 2898 AD’ इंडियन कल्चर में गहराई से रची-बसी ऐसी एपिक कहानी लेकर आई है, जिसे बड़े पर्दे पर देखते हुए सांस थम जाना, पलकें न झपकना जैसी फीलिंग महसूस होती है.

‘कल्कि 2898 AD’ का प्लॉट 

फिल्म शुरू होती है ‘दुनिया का पहला शहर’ कहे जाने वाले काशी से, जो अब दुनिया का आखिरी बचा हुआ शहर है. मगर ये शहर भी कितने दिन सांसें ले पाएगा ये तय नहीं है. काशी में उल्टे पिरामिड की शक्ल के एक कॉम्प्लेक्स का दरवाजा है, जहां पानी, साफ हवा, फल-फूल जैसे सारे नेचुरल रिसोर्स हैं. तबाह हो रही दुनिया के लोगों के लिए, ‘कल्कि 2898 AD’ के लीड किरदार भैरव के लिए, ये कॉम्प्लेक्स एक सपना है. ये संसार के अंतिम तमाशे से लोगों को बचा पाने वाला एक मॉडर्न मोक्ष है.

काशी के डिस्टोपियन संसार की करंसी का नाम है ‘यूनिट’. और कॉम्प्लेक्स में जाने के लिए या तो एक मिलियन यूनिट्स चाहिए या फिर वहां के सर्वेसर्वा कैप्टन मानस (शाश्वत चैटर्जी) की कृपा. बिना किसी दुनियावी बंधन के सिर्फ अपने लिए जीने वाला भैरव एक मिलियन यूनिट्स जुटाने की जद्दोजहद में है.

कॉम्प्लेक्स का एक डार्क सीक्रेट है, वहां का अपना एक अलग भगवान है सुप्रीम यास्किन (कमल हासन). वो खुद किसी बड़े कल की तैयारी में है, जिसके लिए उसे एक बायोकेमिकल कम्पाउंड चाहिए, जो 4 महीने प्रेग्नेंट औरतों के शरीर में पाया जाता है. और कोई एक खास महिला एक बच्चे के साथ प्रेग्नेंट होगी, जिसके शरीर से मिला ये कम्पाउंड, यास्किन को अति शक्तिशाली बना देगा.

इस डिस्टोपियन संसार में अधिकतर महिलाएं इनफर्टाइल होने लगी हैं, यानी वो बच्चे पैदा नहीं कर सकतीं. और जो फर्टाइल हैं, कॉम्प्लेक्स उन्हें एक्स्परिमेंट के लिए रख लेता है. उन्हें आर्टिफिशियली गर्भवती किया जाता है और 120 दिन पूरे होने का इंतजार किया है. कम्पाउंड मिला तो ठीक, वरना महिला की जान तो जाती ही है.

इस कॉम्प्लेक्स में एक टेस्ट केस SUM 80 (दीपिका पादुकोण) मां बनने को लेकर बहुत इमोशनल है और अपनी प्रेग्नेंसी छुपाने में कामयाब हो जाती है. लेकिन उसे नहीं पता कि इस बच्चे का इंतजार सिर्फ उसी को नहीं, एक पूरे संसार को है, जो कॉम्प्लेक्स की नजरों से छिपा एक रहस्यमयी संसार है- शंबाला. जहां के लोग, अभी भी ईश्वर जैसी चीज में आस्था रखे हुए है.

भैरव कॉम्प्लेक्स में एंट्री के लिए SUM 80 को पकड़कर मानस के हवाले करना चाहता है. मानस खुद भी उसकी तलाश में जुटा हुआ है और यास्किन का पूरा ‘प्रोजेक्ट के’ इसी पर बेस्ड है. मगर इन सबके रास्ते में एक रक्षक है, जो सैकड़ों सालों से सिर्फ इस बच्चे की रक्षा करने के मकसद से इंतजार कर रहा है- अश्वत्थामा (अमिताभ बच्चन).

कौन अपने मकसद में कामयाब होगा और कौन नहीं? प्राचीन योद्धा अश्वत्थामा क्यों इस बच्चे की रक्षा करने में इतना डटा हुआ है? एक प्राचीन संसार से, इस डिस्टोपियन संसार तक प्राचीन शक्तियों के खेल में क्या भैरव सिर्फ एक सेल्फिश बाउंटी हंटर भर है? ये सारे जवाब फिल्म देखने पर अनलॉक होते हैं. और जिस तरह ये खुलते हैं, उसे देखकर आपका मुंह खुला रह जाएगा.

कैसा है कहानी का ट्रीटमेंट?

‘कल्कि 2898 AD’ के पहले फ्रेम से डायरेक्टर नाग अश्विन ने एक दिलचस्प संसार रचा है. डिस्टोपियन वर्ल्ड की सेटिंग में काशी के डिटेल्स, सारे रिसोर्स से भरपूर कॉम्प्लेक्स का हाईटेक संसार इंटरेस्टिंग लगता है. भैरव का बाउंटी हंटर पर्सोना इंटरेस्टिंग तो है, लेकिन फर्स्ट हाफ में उसकी पूरी स्टोरी और कॉमेडी थोड़ा सा पकाते हैं. इसे एन्जॉय करने के लिए प्रभास फैन होना एक अनिवार्य शर्त है.

इंटरवल की तरफ आते हुए समझ आता है कि नाग अश्विन ने असल में अपने हीरो, और कहानी को सेट करने के लिए पहले ये केयरलेस और कुछ हद तक बचकाना माहौल बनाया है. साइंस-फिक्शन वाले इस संसार में मायथोलॉजी के एंगल के साथ कमल हासन के आते ही माहौल बदलने लगेगा और आप चेयर पर सीधे बैठने लगेंगे. इंटरवल से ठीक पहले अमिताभ बच्चन की एंट्री होती है. फिल्म का माइथोलॉजिकल एंगल यहां पर पीक होता है और कहानी का रहस्य पूरा गहरा चुका है.

‘कल्कि 2898 AD’ का सारा दम सेकंड हाफ में ही दिखता है. फर्स्ट हाफ के बनाए प्लेटफॉर्म से फ़िल्म की कहानी जिस तरह ऊपर उठती है और महाभारत के युद्ध से होते हुए, अभी के किरदारों को खोलती है उसे देखते हुए सांस थाम लेने वाली फीलिंग महसूस होती है. फिल्म का क्लाइमेक्स बिल्कुल अकल्पनीय और अद्भुत है. आखिरी के आधे घंटे में आपको महाभारत की झलकियां, प्रभास के किरदार का बड़ा ट्विस्ट और कुछ बेहद शानदार कैमियो देखने को मिलते हैं. एक ‘बाहुबली’ कॉल बैक फर्स्ट हाफ में भी है, जिसे देखकर मजा आता है.

नाग अश्विन के मॉडर्न सिनेमा टेक्नीक से जेनरेटेड विजुअल्स के जरिए माइथोलॉजी को जिस तरह डेवलप किया है, उसके लिए तारीफ बनती है. फर्स्ट हाफ के बीच में खिंची हुई स्पीड और गैरजरूरी सीन्स में बर्बाद हुआ टाइम छोड़ दें तो ‘कल्कि 2898 AD’ एक जबरदस्त एंटरटेनिंग फिल्म है. सेकंड हाफ में फिल्म ऐसी दमदार हो जाती है कि आपका ध्यान जरा भी नहीं भटकता.

‘कल्कि 2898 AD’ के विजुअल्स हैं तो बहुत इम्प्रेसिव, लेकिन VFX में अभी भी सुधार की थोड़ी सी गुंजाइश नजर आती है. खासकर, उन हिस्सों में जहां किरदार हवा में उड़ते दिखते हैं. वहां पर थोड़ा सा लैग फील होता है. हिंदी में फिल्म की डबिंग ठीकठाक है, लेकिन डायलॉग्स पर ट्रांसलेशन का असर दिखता है. कई लाइनेनेक्द्म एफर्टलेस नहीं फील होतीं. लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे फिल्म देखने का एक्सपीरियंस बहुत ज्यादा प्रभावित हो. संतोष नारायणन का म्यूजिक स्टोरीटेलिंग को वो पूरा माहौल देता है, जो इस तरह की फिल्म को चाहिए था. हालांकि गानों में म्यूजिक तो अच्छा है, लेकिन लिरिक्स और बेहतर होते तो और ज्यादा दमदार माहौल बनता.

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एक्टिंग परफॉरमेंस 

अमिताभ बच्चन का अपीयरेंस, उनके किरदार की राइटिंग और उनका खुद का शानदार काम देखकर आपको 70s और 80s की वो झलक मिलेगी, जब अमिताभ बड़े पर्दे पर राज करते थे. वैसे ‘कल्कि 2898 AD’ को अगर एक्टर्स के हिसाब से देखें तो वो अमिताभ की फिल्म ज्यादा है और प्रभास की कम.

प्रभास का किरदार आखिरी आधे घंटे में एपिक हो जाता है. हालांकि, शुरू से ही वो अपने किरदार की राइटिंग के साथ पूरी सिंक में दिखते हैं. दीपिका का स्क्रीनटाइम कम है, मगर ये उनके रोल की डिमांड है. वो जब भी स्क्रीन पर होती हैं, अपने एंड पर दमदार लगती हैं.

कमल हासन के रोल को लंबा कैमियो कहा जाता है, मगर फिल्म में उनका हर मोमेंट आपको एक टेंशन फील कराता है. उन्होंने यास्किन को एक भयानक विलेन बना दिया है. पोस्ट-क्रेडिट सीन में तो उन्हें देखकर आप सन्न रह जाएंगे. शाश्वत चैटर्जी ने अपने नेगेटिव रोल में, जिस ठहराव के साथ एकदम भावनाशून्य एक्ट किया है वो भी इम्प्रेसिव है.

‘कल्कि 2898 AD’ को इस बात के लिए थिएटर्स में देखा जाना चाहिए की आज की विजुअल लैंग्वेज, इंडियन कल्चर की ग्रेटनेस को कितना शानदार दिखा सकती है. फिल्म के पहले एक घंटे को थोड़ी से सब्र के साथ देखने के बाद आपको वो ग्रैंड तमाशा देखने को मिलता है, जिसकी उम्मीद फिल्म के फर्स्ट लुक से ही आपको रही होगी. हमने इंडिया में ऐसी फिल्म बना ली है, ये यकीन करने के लिए ‘कल्कि 2898 AD’ जरूर देखे जाने लायक फिल्म है.

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