जयपुर। राजस्थान में भजन लाल सरकार पहली बार सभी अधिस्वीकृत पत्रकारों की जांच करवा रही है। इससे कुछ पत्रकारों की मान्यता पर संकट आने की आशंका है। सभी पत्रकारों की जांच के संबंध में सूचना एवं जन संपर्क निदेशालय की ओर से सभी जिला जन संपर्क अधिकारियों को आधिकारिक पत्र भेजा गया है।
सूजस निदेशालय की ओऱ से 2 सितंबर, 2024 को जारी पत्र में हालांकि सूचना एवं जन संपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत पत्रकारों की सूची को अपग्रेड करने का जिक्र किया गया है। इसके तहत सभी जिला पीआरओ से कहा गया है कि वे इस बात की जांच करें कि संबंधित पत्रकार ने जिस मीडिया संस्थान से खुद को संबद्ध बताकर अधीस्वीकरण (एक्रिडेशन) कराया हुआ है, वह वास्तव में उसी संस्थान में काम कर रहा है अथवा नहीं। कहीं वह पत्रकार अन्यत्र काम तो नहीं कर रहा है। इसकी सूचना यथाशीघ्र भिजवाई जाए।
निदेशालय सूत्रों की मानें तो अधिस्वीकृत पत्रकारों की सूची अपडेट करना तो बहाना है। दरअसल, उन पत्रकारों पर निशाना है जो मुख्यमंत्री और सरकार की आलोचनात्मक खबरें ज्यादा लिखते हैं अथवा विरोधियों को ज्यादा तवज्जो देते हैं। मीडिया एडवाइजर और मीडिया कोर्डिनेटर की राय से लिए गए इस फैसले के पीछे एक मंशा मीडिया संस्थानों के साथ-साथ पत्रकारों को भी दवाब बनाकर सरकार के पक्ष में लिखने के लिए बाध्य करना है। क्योंकि मीडिया संस्थानों को तो विज्ञापनों से पक्ष में किया जा सकता है। लेकिन, पत्रकारों की स्वतंत्र लेखनी को रोक पाना मुश्किल होता है।
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उल्लेखनीय है कि राजस्थान में 3000 से ज्यादा पत्रकार सरकार से मान्यता प्राप्त हैं। आम तौर पर पत्रकार जिस मीडिया संस्थान से मान्यता प्राप्त होता है, उस संस्थान की ओर से बकायदा विभाग को लिखित में बताया जाता है कि अमुक व्यक्ति उनके यहां काम कर रहा है। यदि किसी कारणवश कोई पत्रकार संस्थान बदलता भी है तो संबंधित मीडिया संस्थान तुरंत उसका अधीस्वीकरण रद्द करने के लिए सूचना एवं जन संपर्क विभाग को सूचित करता है। ऐसे में उस पत्रकार के लिए अपना अधिस्वीकरण नए संस्थान से बदलवाना बहुत बड़ी सिर दर्दी हो जाती है। क्योंकि उसे फिर से पूरी प्रक्रिया अपनानी होती है और इसमें महीनों तक पीआरओ, पुलिस और अन्य कार्यालयों में धक्के खाने होते हैं। भजनलाल सरकार से इस फैसले से पत्रकारों में काफी आक्रोश बढ़ रहा है।