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September 8, 2024 8:58 am

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डाॅ. मनीष दवे के संचालन में सम्पन्न……….’मंथन द्वारा ऑनलाइन काव्य गोष्ठी संजय एम तराणेकर के मुख्य आतिथ्य…….

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मंथन साहित्यिक परिवार द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी डाॅ. शिवदत्त शर्मा जयपुर की अध्यक्षता व संजय एम. तराणेकर के मुख्य आतिथ्य तथा डाॅ मनीष दवे, इंदौर के संचालन में संपन्न हुई. बच्चूलाल दीक्षित द्वारा सरस्वती वंदना, प्रो. राम पंचभाई, यवतमाल की‌ मराठी में गणेश वंदना के साथ काव्य पाठ प्रारंभ हुआ.

सुभाषचंद्र शर्मा जयपुर ने गा रही है गान जिंदगी छेड़ रही है तान जिंदगी इस नवीन गीत के साथ जिंदगी को परिभाषित करने वाले सस्वर गीत की प्रस्तुति दी. जिस पर गिरीश पाण्डेय ने प्रशंसात्मक मधुर भाव प्रकट किए. महेश गुप्ता राही ने‌ सावन पावन प्यार का मौसम है,अमुआ की डाली पर बैठी कोयल की मधुर तान का मौसम. समीक्षा मधु पुरोहित ने की. इंजीनियर एन सी खंडेलवाल हास्य व्यंगकार द्वारा प्रस्तुत रचना जिंदगी तुझसे गिला नहीं, गिला उससे है जो जिंदगी में मिला नहीं कहते हैं कि जोडे़ ऊपर से बनकर आते, लगता है मेरा जोडा़ बनाया ही नहीं. जिंदगी की इस प्रस्तुति को डाॅ टी महादेवराव व प्रो.राम पंचभाई ने खूब सराहा. गीता उनियाल ने मन की वेदना इन पंक्तियों के साथ मन की मुसीबत को जरूर बताइए, थककर न बैठो ये मंजिल के मुसाफिर इस पर प्रतिक्रिया प्रो.राम पंचभाई ने दी. गीतकार बृज व्यास शाजापुर के गीत के बोल स्वाधीनता सस्ती नहीं यह मांगती बलिदान है. कुछ सिंह निकले माद से आक्रोश को अपने जगा, सोया हुआ जो तंत्र था वो कांपने कैसे लगा. समीक्षा सुभाषचंद्र शर्मा ने उसी शैली में की.

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डॉ. टी. महादेव राव विशाखापट्टनम ने आफताब शीर्षक के बोल- अजीब बसर है यारो इस शहर के सब हैं आफताब, खोज रहा है कब से खुशियों को इंसा वो जाने कहां छुप गए हैं डर के डाॅ शिवदत्त शर्मा की प्रतिक्रिया इन शब्दों में- जिंदगी में जो जीना है मुस्कराइये, दिल के छाले दबा कर भी गुनगुनाइये. रेखा राठौर, सुसनेर की अभिव्यक्ति रक्षावंधन पर रेशम की ये डोरी भाई जिसका न कोई मोल रे…जिसे प्रतिभा पुरोहित व बृज व्यास ने सराहा. प्रो. राम पंचभाई ने सफर की साथी राह का चित्रण इस पंक्ति के साथ मुश्किल से मंजिल को मैं सफर बनाने निकला हूँ. जिस पर महेश गुप्ता राही ने अपना विचार रखा. प्रतिभा पुरोहित अहमदावाद ने बंगला देश की ज्वलंत समस्या पर कलम गिरी अंगारों से उद्घोष किया. रेखा राठौर ने भावनात्मक प्रतिक्रिया दी. महेन्द्र भट्ट व्यंगकार, ग्वालियर ने अपने चिरपरिचित मुद्रा में इन पंक्तियों के साथ प्रस्तुति दी – आ गया फिर आज मौसम अंगारों की तरह, इनका साथ सुभाषचंद्र शर्मा ने दिया. मुख्य अतिथि संजय एम तराणेकर की प्रस्तुति में कोलकाता में प्रशिक्षु डाक्टर की नृशंस हत्या के संदर्भ में रहीं योनि के भस्मासुर शीर्षक से देते हुए उन पापियों को सजा हो वस्त्रहीन उम्रकैद जैसी हो. का आह्वान किया. जिस पर महेन्द्र भट्ट ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी.

कार्यक्रम के संचालक डॉ. मनीष दवे ने भैया मेरे राखी बंधन को निभाने का वायदा लिया. इस तरह बहन पूछे क्या भैया एक वायदा निभाओगे, तुम हरदम मेरा साथ देना. इस पर संजय एम तराणेकर की वात्सल्य भाव की प्रतिक्रिया का अद्भुत संगम रहा. बच्चूलाल दीक्षित की रचना उपरांत डाॅ. शिवदत्त शर्मा का सारगर्भित अध्यक्षीय उद्बोधन हुआ. अंत में प्रो.राम पंचभाई ने मंचासीन कवियों की प्रस्तुतियों की संक्षिप्त समीक्षा करते हुए सभी का आभार माना.

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