Explore

Search
Close this search box.

Search

October 10, 2024 11:35 pm

लेटेस्ट न्यूज़

आखिर क्या कहना चाहते हैं चिराग पासवान? मोदी के हनुमान और ‘मंत्री पद को लात’ मारने वाली जुबान…….

WhatsApp
Facebook
Twitter
Email

खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते आए चिराग पासवान अलग ही मोड में दिख रहे हैं. हाल के दिनों लेटरल एंट्री से कोटे के भीतर कोटा तक, कई मुद्दों पर एनडीए से अलग रुख दिखा चुके चिराग पासवान ने अब तो एक मिनट में मंत्री पद को लात मारने की बात कह दी है. पटना के एसके मेमोरियल हॉल में पार्टी के एससी-एसटी प्रकोष्ठ की ओर से आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “चाहे किसी भी गठबंधन में रहूं, किसी भी मंत्री पद पर रहूं, जिस दिन मुझे लगेगा कि संविधान और आरक्षण के साथ खिलवाड़ हो रहा है, उसी वक्त मंत्री पद को लात मार दूंगा. जैसे मेरे पिता ने एक मिनट में मंत्री पद त्याग दिया था, उसी तरह एक मिनट में मंत्री पद त्याग दूंगा.”

चिराग ने कब-कब ली एनडीए से अलग लाइन

चिराग पासवान मोदी सरकार 3.0 के गठन के बाद शुरुआती दिनों से ही तेवर दिखाते आ रहे हैं. चिराग और उनकी पार्टी इन मुद्दों पर भी एनडीए से अलग लाइन ले चुकी है. चिराग ने हाल ही में राहुल गांधी की तारीफ करते हुए उन्हें दूरदर्शी नेता बताया था और कहा था कि उनके पास विजन है.

कोटे के भीतर कोटाः

अगस्त महीने की शुरुआत में कोटे के भीतर कोटा को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का चिराग ने विरोध किया था. चिराग की पार्टी जिस एनडीए में शामिल है, उसके ही घटक दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के संस्थापक जीतनराम मांझी समेत कई नेता कोर्ट के फैसले का समर्थन कर रहे थे.

लेटरल एंट्रीः

यूपीएससी ने केंद्र सरकार में जॉइंट सेक्रेटरी, सेक्रेटरी और निदेशक लेवल के 45 रिक्त पद लेटरल एंट्री के जरिये भरने के लिए विज्ञापन जारी किया था. चिराग पासवान खुलकर इसके विरोध में उतर आए. बाद में सरकार ने यूपीएससी को पत्र लिखकर ये विज्ञापन रद्द करने का आग्रह किया.

भारत बंदः

कोटे के भीतर कोटा के विरोध में विपक्षी दलों ने 21 अगस्त को भारत बंद का आह्वान किया था. केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी ने भी इस बंद को समर्थन दिया था. चिराग ने कहा था कि एससी-एसटी आरक्षण का आधार आर्थिक असमानता नहीं, छुआछूत जैसी कुप्रथा है.

जातिगत जनगणनाः

चिराग पासवान ने रांची में अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में जाति जनगणना की मांग का समर्थन करते हुए कहा था कि हम चाहते हैं कि जाति जनगणना हो. कई बार राज्य सरकार और केंद्र सरकार जाति को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाती हैं. सरकार के पास उस जाति की जनसंख्या की जानकारी होनी चाहिए.

वक्फ बिलः चिराग पासवान की पार्टी ने वक्फ बिल को लेकर मुस्लिमों के मन में दुविधा होने की बात कही थी. चिराग की पार्टी ने इस दुविधा को दूर करने के लिए इसे

चिराग के हालिया बयान के मायने क्या

चिराग पासवान के ताजा बयान को बिहार चुनाव और एनडीए में उनकी असहजता से जोड़कर भी देखा जा रहा है. बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि चिराग पासवान एनडीए में परेशान हैं. इसकी दो वजहें हैं- एक ये कि चिराग अलग पार्टी लाइन पर चलना चाहते हैं जो एनडीए से मेल नहीं खाता. अलग आइडेंटिटी के लिए ये जरूरी भी है. दूसरी वजह ये है कि बिहार में गठबंधन में रहते हुए भी चिराग को कुछ खास हासिल नहीं हुआ. केंद्र में मंत्री ठीक है लेकिन चिराग का फोकस तो बिहार की राजनीति ही है.

चिराग पासवान अगर एक मिनट में मंत्री पद छोड़ने की बात कर रहे हैं तो इसे नीतीश कुमार के बाद बिहार के सीएम को लेकर जारी रेस भी है. प्रशांत किशोर भले ही पार्टी और सरकार के नेतृत्व से इनकार कर रहे हों, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि जन सुराज का चेहरा वही माने जाएंगे. सीएम बनने की जिनकी महत्वाकांक्षाएं हैं, उनमें आरजेडी के तेजस्वी यादव के साथ चिराग पासवान का नाम भी शामिल रहा है. तेजस्वी यादव भी मैदान में हैं, चुनावी तैयारियों के लिए संगठन के कील-कांटे दुरुस्त करने में जुटे हैं.

जेडीयू में नीतीश के बाद इतने मजबूत दावेदार का अभाव है तो वहीं चिराग भी इस आपदा में अवसर की तलाश में जुटे हैं. उनकी नजर दलित के साथ मुस्लिम को जोड़ नया वोट गणित गढ़ने पर है और यही वजह है कि वह बार-बार एनडीए से अलग लाइन ले रहे हैं, एलजेपीआर को सबकी पार्टी बता रहे हैं.

Health Tips: आप भी करते हैं इस्तेमाल तो जरूर जान लें सही तरीका……..’कान में ईयरबड फटने से बहरी हुई महिला……

क्या चिराग नाराज हैं?

चिराग के हालिया बयान को एनडीए में उनकी नाराजगी से जोड़कर भी देखा जा रहा है. इसकी भी अपनी वजहें हैं. चिराग पासवान की रणनीति अब बिहार के साथ ही दूसरे राज्यों में भी एलजेपीआर के प्रसार की है. वह नगालैंड में विधायक होने का हवाला देते हैं और झारखंड की 40 विधानसभा सीटों पर अच्छे जनाधार का दावा करते हैं तो यह भी इसी तरफ संकेत है. चिराग की नाराजगी के पीछे मुख्य रूप से तीन वजहें बताई जा रही हैं.

1- झारखंड चुनाव

चिराग पासवान की पार्टी काफी समय से झारखंड चुनाव के लिए तैयारी में जुटी है. चिराग ने एलजेपीआर की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की और इसके बाद लातेहार में रैली भी. चिराग ने हाल ही में धनबाद में जनसभा को संबोधित किया था. एलजेपीआर की प्रदेश इकाई भी विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है.

चिराग एनडीए के घटक दल के रूप में चुनाव मैदान में उतरने की बात कर रहे थे और सूबे में एनडीए का जो स्वरूप बीजेपी के सहप्रभारी हिमंत बिस्वा शर्मा ने बताया, उसमें एलजेपीआर का कहीं नाम ही नहीं है. हिमंता ने हाल ही में कहा था कि बीजेपी सूबे में जेडीयू और आजसू के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ेगी. चिराग झारखंड में एनडीए को जिताने की अपील कर रहे थे और सूबे में उनका ही पत्ता गोल करने का संकेत मिल रहा है.

2- पशुपति पारस चैप्टर

चिराग पासवान ने आरक्षण में क्रीमी लेयर, लैटरल एंट्री और वक्फ बिल पर अलग लाइन ली तो लोकसभा चुनाव के समय से ही एनडीए में हाशिए पर चल रहे पशुपति पारस एक्टिव हो गए. बिहार बीजेपी के अध्यक्ष ने पशुपति पारस से मुलाकात की और फिर चिराग के चाचा दिल्ली पहुंच गृह मंत्री अमित शाह से मिले. पशुपति पारस की बीजेपी में अचानक बढ़ी पूछ को लेकर भी चिराग नाराज हैं. एसके मेमोरियल वाले कार्यक्रम में ही चिराग ने चाचा पशुपति पर भी निशाना साधा.

उन्होंने कहा, “कुछ ऐसी मानसिकता के लोग हैं जो चिराग पासवान को तोड़ना चाहते हैं. चिराग पासवान अपने समाज को आगे बढ़ा रहा है इसलिए हमें समाप्त करना चाहते हैं. उन्हें पसंद नहीं आता कि अपने पिता की सोच को क्यों यह आगे बढ़ा कर लेना जाना चाहता है, लेकिन जो लोग मुझे तोड़ना चाहते हैं वह भूल जाते हैं कि मैं शेर का बेटा हूं. मैं किसी के सामने झुकने वाला नहीं हूं. डरता तो मैं किसी से भी नहीं हूं.”

3- बिहार चुनाव

पशुपति पारस ने बीजेपी के शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद कहा था कि विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव जैसा नहीं होगा. यह इस बात का संकेत है कि पशुपति पारस की पार्टी बिहार चुनाव में मैदान खाली छोड़ने के मूड में नहीं है. अगर ऐसा हुआ तो चिराग की पार्टी का कोटा ही कम होगा. चिराग पासवान की नाराजगी की एक वजह ये भी है.

चिराग पासवान 2020 में जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतार अपनी ताकत दिखा भी चुके हैं. तब उनकी पार्टी ने 134 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और करीब तीन दर्जन सीटों पर जेडीयू की हार के अंतर से अधिक वोट पाने में भी सफल रहे थे. इस प्रदर्शन के जरिये चिराग ने ये संदेश तो दे ही दिया था कि उनकी पार्टी अकेले जीत भले न पाए लेकिन बैलेंस बना और बिगाड़ सकती है.

हर विकल्प खुला रखने की रणनीति

चिराग पासवान के एनडीए से अलग स्टैंड के पीछे एक रणनीति हर विकल्प खुला रखने की भी हो सकती है. बिहार चुनाव में अगर हंग असेंबली की स्थिति बनती है और चिराग की पार्टी किंगमेकर के रोल में उभरती है तो उनके लिए बार्गेनिंग कर किंग बनने का रास्ता भी बन सकता है. ऐसे में वह हर विकल्प खुला रखना चाहते हैं. आखिर ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नारा देने वाले चिराग की पार्टी की कर्मभूमि तो बिहार ही है और उन्हें करनी यहीं की सियासत है. चिराग बिहार चुनाव में मजबूत नहीं होंगे तो उनके लिए लोकसभा चुनाव भी मुश्किल होगा.

ताजा खबरों के लिए एक क्लिक पर ज्वाइन करे व्हाट्सएप ग्रुप

Leave a Comment

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर