दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान भले ही ना हुआ हो, लेकिन प्रत्याशियों के ऐलान से प्रचार अभियान तक जोर पकड़ चुका है। मुख्य मुकाबला भले ही सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच दिख रहा हो, लेकिन 10 सालों से विधानसभा से ‘आउट’ कांग्रेस भी अहम फैक्टर है। दिल्ली का चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा यह पूरी तरह कांग्रेस की मजबूती और कमजोरी पर निर्भर करता है। पिछले तीन चुनाव के नतीजों के विश्लेषण से तो यही पता चलता है।
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2013 में जब कांग्रेस थी मजबूत तो BJP से पिछड़ गई AAP
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोख से जन्मी ‘आप’ जब 2013 में पहली बार चुनावी मैदान में उतरी तो उसने सबको चौंकाते हुए 28 सीटों पर कब्जा जमा लिया। 31 सीटों के साथ भाजपा सबसे आगे थी तो 15 साल के शासन के बाद कांग्रेस 8 सीटों पर सिमट गई थी। तब भाजपा को 33.3 फीसदी वोट शेयर मिला था तो ‘आप’ को 29.7 फीसदी वोटर्स ने चुना था। कांग्रेस 24.7 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रही थी।
2015 में कांग्रेस घटी तो प्रचंड बहुमत तक पहुंच गई AAP
कांग्रेस की कमजोरी का फायदा किस तरह ‘आप’ ने उठाया यह 2015 के चुनावी नतीजों में साफ दिखता है। दो साल पहले 24 फीसदी से अधिक वोट शेयर हासिल करने वाली ‘आप’ तब 9 पर्सेंट वोटर्स को ही अपने साथ रख पाई थी। नतीजा यह हुआ कि ‘आप’ को 54 फीसदी वोट मिले और उसने 70 में से 68 सीटों पर जीत हासिल की। मुस्लिम, दलित और कांग्रेस के अन्य परंपरागत वोटर्स ‘आप’ की ओर शिफ्ट हो गए थे। तब से ये वोटर्स ‘आप’ के साथ बने हुए हैं।
2020 में और कमजोर हो गई कांग्रेस
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और ज्यादा कमजोर हो गई। यही वजह है कि पहले से अधिक वोट शेयर लाकर भी भाजपा महज 8 सीटों पर जीत हासिल कर सकी और ‘आप’ ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की। पिछले चुनाव में ‘आप’ को 53.8 फीसदी वोट मिले थे तो भाजपा ने करीब 39 फीसदी वोट पर कब्जा किया था। कांग्रेस तब 9 से घटकर 4.3 फीसदी वोटों पर सिमट गई थी। कांग्रेस के और अधिक वोटर्स के ‘आप’ में शिफ्ट हो जाने की वजह से भाजपा 8 सीटों पर ही सिमट गई थी।
क्या अपने वोटर्स को वापस खींच पाएगी कांग्रेस?
दिल्ली में विधानसभा चुनाव का नतीजा काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस अपने वोटर्स को वापस अपनी ओर खींच पाती है या नहीं। पार्टी ने इस बार काफी होमवर्क करने के बाद आधी से अधिक सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की है। आप मुखिया अरविंद केजरीवाल के खिलाफ जहां पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को उतारा गया है तो जंगपुरा से फरहाद सूरी को टिकट देकर मनीष सिसोदिया की मुश्किलें बढ़ाने का पूरा इंतजाम किया गया है।मुस्लिम और दलित वोटर्स को ध्यान में रखकर कई सीटों पर मजबूत प्रत्याशियों को उतारा गया है। वहीं, कई सीटों पर नए और युवा चेहरों को भी मौका देकर अपना हाल बदलने की कोशिश की गई है। केजरीवाल पर आक्रामक रुख के जरिए पार्टी खुद को टक्कर में लाने की कोशिश में जुटी है। कांग्रेस के इस तेवर ने ‘आप’ की चिंता बढ़ा दी है। पार्टी के रणनीतिकार जानते हैं कि यदि कांग्रेस अपने वोटबैंक का एक बड़ा हिस्सा अपनी ओर खींचने में कामयाब रही तो उसके लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। ‘आप’ नहीं चाहेगी कि कांग्रेस 11 साल पुराने प्रदर्शन को दोहराए।