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October 16, 2024 8:52 pm

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नितिन गडकरी ने कहा – आखिर गडकरी ने किसे दे दी सलाह……..’लोकतंत्र में शासक को असहमति झेलनी पड़ती है……

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Nitin Gadkari: केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा यह है कि शासक अपनी खिलाफ व्यक्त की गई मजबूत राय को बर्दाश्त करे और आत्मचिंतन करे।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी आमतौर पर अपनी बयानबाजी से सुर्खियों में बने रहते हैं। इस बीच महाराष्ट्र के पुणे में MIT वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में एक पुस्तक विमोचल के दौरान एक ऐसा बयान दिया है। जिससे सियासी गलियारे में हलचल तेज हो गई है। उन्होंने कहा कि हमारे लोकतंत्र की असली परीक्षा यह है कि सत्ता में बैठा व्यक्ति अपने खिलाफ सबसे मजबूत राय को भी बर्दाश्त करे और विरोध है तो आत्ममंथन करें। गडकरी ने आगे कहा कि विचारकों, दार्शनिकों और लेखकों से बिना किसी डर के अपनी राय रखना चाहिए। उनसे यही उम्मीद की जाती है।

बीजेपी नेता ने आगे कहा कि लोकतंत्र की अगर कोई अंतिम कसौटी है तो वह यही है कि आप शासक के सामने चाहे कितनी भी दृढ़ता से अपनी बात रखें। शासक को उसे सहन करना ही होगा। उन्होंने कहा कि भारत में अलग-अलग राय रखने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन यहां राय की कमी की समस्या है।

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छुआछूत पर जताई नाराजगी

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने कहा कि हम न तो दक्षिणपंथी हैं और न ही वामपंथी। हम सिर्फ अवसरवादी हैं। जब तक देश में छुआछूत और श्रेष्ठता की धारणा बनी रहेगी। तब तक राष्ट्र निर्माण का कार्य पूरा नहीं हो सकता है। अगर विचारकों, दार्शनिकों और लेखकों को लगता है कि उनके विचार देश और समाज के हित में हैं, तो उन्हें अपनी राय जरूर रखनी चाहिए। नितिन गडकरी ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि संविधान सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। उन्होंने यह भी कहा, ‘हमें लोकतंत्र की जननी कहा जाता है, जो विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के चार स्तंभों पर खड़ा है। हमारा संविधान सभी के अधिकारों और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है।

जो आपकी आलोचना करें, उसे पड़ोसी बनाएं – नितिन गडकरी

पुणे के एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गडकरी ने कहा कि किसी को अपनी खामियां पहचानने के लिए हमेशा आलोचकों से घिरे रहने की जरूरत होती है। इस दौरान उन्होंने अपनी मां का जिक्र किया। गडकरी ने कहा कि मेरी मां अक्सर मुझसे बचपन में कहा करती थीं कि ‘निंदाचे घर नेहामि असवे शेजारी’। इसका मतलब ये है कि एक आलोचक हमारा पड़ोसी होना चाहिए ताकि वह हमारी खामियां बता सके।

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