प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी सरकार को खूब घेर रहे हैं. ये देश के लोकतंत्र के लिए अच्छा है. एक स्वस्थ लोकतंत्र की यही निशानी है कि विपक्ष को बोलने का मौका मिलना चाहिए. पर विपक्ष के पास यह भी जिम्मेदारी होती है कि वह इस स्वतंत्रता का इस्तेमाल इस तरह से न करे कि स्वतंत्रता और स्वच्छंदता का अंतर ही खत्म हो जाए. एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ये जरूरी है कि नेता सत्ता पक्ष ही नहीं प्रतिपक्ष भी जो बोले वो कहीं से भी अनर्गल न लगे. राहुल गांधी ने टैक्स टेरेरिज्म की बात की, प्रेस फ्रीडम की बात की, जाहिर वो देशवासियों को अच्छी लगीं. पर केंद्र सरकार के बजट की तुलना महाभारत के चक्रव्यूह से करना तो ठीक था पर और महाभारत के एक नायक अभिमन्यु को चक्रव्यूह में घेरकर मारने वालों की तुलना पीएम नरे्ंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह सहित 6 लोगों से करने का तुक तो बिल्कुल भी समझ में नहीं आया. क्या इससे लोकतंत्र की शान बढ़ेगी? इतना ही नहीं, राहुल ने कुछ ऐसी बातें भी कहीं जिसकी जिम्मेदार खुद उनकी पार्टी काग्रेस रही है. देश की जनता राहुल गांधी की बातों की अहमियत समझे, इसके लिए राहुल गांधी को कुछ वादा करना चाहिए. वो वादे कर भी सकते हैं, जैसा कि उन्होंने MSP के मामले में अपने भाषण के दौरान किया भी. उन्होंने वादा किया कि जब INDIA गठबंधन की सरकार आएगी तो MSP को कानूनी अधिकार बना देंगे. तो क्या राहुल गांधी के ये 5 वादे और करेंगे.
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1-क्या राहुल गांधी वादा करेंगे कि कांग्रेस शासित राज्यों का बजट दलित और ओबीसी अधिकारी बनाएंगे?
राहुल गांधी आज देश की संसद में एक बार फिर कहा कि देश में तकरीबन 73 फीसदी दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोग हैं. ये मुख्य शक्ति हैं, लेकिन इनको कहीं भी जगह नहीं मिलती. राहुल ने एक फोटो दिखाते हुए कहा कि इसमें बजट का हलवा बंट रहा है. इसमें एक भी आदिवासी, दलित या पिछड़ा अफसर नहीं दिख रहा है. 20 अफसरों ने बजट तैयार किया. हिंदुस्तान का हलवा 20 लोगों ने बांटने का काम किया है. आपने एक माइनॉरिटी और एक ओबीसी को साथ रखा, बाकी को तो फोटो में आने ही नहीं दिया.
दरअसल राहुल गांधी ने महिला आरक्षण विधेयक पर बहस होने के दौरान भी यही कहा था कि देश के सबसे महत्वपूर्ण फैसले लेने वालों में 90 प्रतिशत से अधिक लोग वो होते हैं जो 10 प्रतिशत आबादी से आते हैं. राहुल गांधी को ये बताना चाहिए था कि कांग्रेस शासित राज्यों में ऐसा नहीं होता है. राहुल गांधी यह भी बता सकते थे कि यूपीए गवर्नमेंट में ऐसा नहीं होता था. पर वो ऐसा नहीं कर सकेंगे क्योंकि कांग्रेस शासित राज्यों में भी ऐसा हो रहा है जो केंद्र सरकार में हो रह है. पर आश्चर्यजनक बात ये है कि इन युक्तियों से राहुल बीजेपी के बारे में सवर्ण समर्थक नरेटिव सेट करने में कामयाब हो रहे हैं. पर अगर इसी तरह झूठ के आधार पर नरेटिव सेट करने का बीजेपी भी करनी शुरू करेगी. अन्य दल भी करेंगे जिसके चलते भारतीय लोकतंत्र का ही नुकसान होगा. राहुल गांधी के लिए जरूरी है कि वो जनता से वादा करें कि कांग्रेस शासित राज्यों में अब से बजट बनाने में या कोई महत्वपूर्ण फैसले लेने में दलितों और पिछड़ों की भागीदारी 85 प्रतिशत तक होगी. यह भा वादा करना चाहिए कि सरकार में आने पर कांग्रेस जनसंख्या के हिसाब से सभी जातियों के अधिकारियों की भर्ती कराएगी.
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल एक्स पर लिखते हैं, ‘एससी, एसटी और ओबीसी के लोग बजट का हलवा क्यों नहीं बाँट रहे है? राहुल गांधी आज लोकसभा में इस #Budget_Halwa तस्वीर में एससी, एसटी और ओबीसी आईएएस अधिकारियों को ढूंढ रहे हैं. वे दुखी हो रहे थे कि वहां ऐसा कोई नहीं है. सच है कि इस तस्वीर में एससी, एसटी और ओबीसी के अफ़सर नहीं हैं. लेकिन क्यों नहीं हैं, आइए तथ्यों की जाँच करें. इस फ़ोटो में हलवा बाँट रहे आईएएस अधिकारी पांडे, सेठ और सोमनाथन 1987 बैच के IAS हैं, जोशी 1989 के हैं और मल्होत्रा 1990 के हैं. तस्वीर में सभी पांच आईएएस अधिकारी 27% ओबीसी कोटा लागू होने से पहले, यानी मंडल युग से पहले के हैं. इसलिए यह उच्च जाति के क्लब जैसा दिखता है.’
लेकिन राहुल को पूछना चाहिए:
– इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों (1980-89) ने मंडल आयोग की रिपोर्ट, जिसे 1980 से ठंडे बस्ते में रखा गया था, को क्यों लागू नहीं किया. बी.पी. मंडल जी ने अपनी रिपोर्ट 1980 में ही सौंपी थी. अगर मंडल समय पर लागू हुआ होता तो आज राहुल गांधी को दुखी न होना पड़ता.
क्यों 27% ओबीसी कोटा 1990 में गैर-कांग्रेसी, बीजेपी समर्थित सरकार के सत्ता में आने तक लागू नहीं किया गया? अदालत के मामलों के कारण, ओबीसी कोटा आखिरकार 1993 में लागू हुआ.
ऐसा लगता है कि 1993 बैच के कोई अधिकारी हलवा समारोह में होने वरिष्ठता प्राप्त नहीं कर पाए हैं!
संविधान में अनुच्छेद 340 है. ओबीसी कोटा 1950 से लागू होना चाहिए था. ओबीसी कोटा पर कांग्रेस पार्टी की हिचकिचाहट डॉ. अंबेडकर के नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के कारणों में से एक थी. ओबीसी कोटा विश्वासघात का इतिहास रहा है.
इसलिए हमारे पास शीर्ष पदों पर ओबीसी अधिकारी नहीं हैं.
– अब उन बैचों के वरिष्ठ एससी, एसटी अधिकारी क्यों नहीं हैं? उनके साथ बीच में क्या हुआ? मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान नागराज फैसले को क्यों नहीं ठीक किया गया?
भारतीय निम्नवर्ग, जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी शामिल हैं, लंबे समय पहले उत्पन्न हुई समस्याओं के कारण पीड़ित हैं. ये अतीत से चले आ रहे मुद्दे हैं.
मुझे उम्मीद है कि वर्तमान सरकार इस विसंगति और अन्याय को ठीक करने के लिए कदम उठाएगी.
एससी, एसटी और ओबीसी अधिकारी नौकरशाही और देश को मजबूत करेंगे. विविधता अच्छी है. हमें अमेरिका और यूरोपीय देशों से सीखना चाहिए.
2-क्या सत्ता में आने पर संसद परिसर में किसी को भी बाइट देने की इजाजत दिलवाएंगे?
राहुल गांधी ने कहा कि किसान MSP पर लीगल गारंटी मांग रहे, आप 3 काले कानून लाए. आपने किसानों के लिए क्या किया, तीन काले कानून? किसान आपसे एमएसपी की लीगल गारंटी की मांग कर रहे हैं. आपने उनको बॉर्डर पर रोक रखा है. किसान मुझसे मिलने यहां आना चाहते थे. आपने उनको यहां आने नहीं दिया. इस पर स्पीकर ओम बिरला ने उन्हें टोका और कहा कि सदन में गलत ना बोलें. राहुल ने कहा कि जब मैं वहां गया तब उन्हें आने दिया गया. वह भी इस कारण क्योंकि मीडिया मेरे साथ था. लोकसभा अध्यक्ष ने कहा किसानों के प्रतिनिधियों को आने से मना नहीं किया गया. संसद परिसर में केवल सांसदों को बाइट देने का अधिकार है.राहुल गांधी को देश से वादा करना चाहिए कि उनके सत्ता में आने के बाद संसद परिसर में सबको जाने और देश के हर मुद्दे पर बोलने की राइट्स मिलेंगी.
3-आज अभिमन्यु के हत्यारों में पीएम का नाम ले रहे हैं, वादा करे जब उन्हें कोई रावण या कंस कहेगा तो बुरा नहीं मानेंगे
लोकसभा में अपने स्पीच की शुरुआत ही राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के बजट की तुलना महाभारत के चक्रव्यूह से करते हुए की. राहुल ने कहा- हजारों साल पहले कुरुक्षेत्र में अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाकर 6 लोगों ने मारा गया था.चक्रव्यूह का दूसरा नाम है- पद्मव्यूह, जो कमल के फूल के शेप में होता है.इसके अंदर डर और हिंसा होती है.
21वीं सदी में एक नया ‘चक्रव्यूह’ रचा गया है- वो भी कमल के फूल के रूप में तैयार हुआ है. इसका चिह्न प्रधानमंत्री अपने सीने पर लगाकर चलते हैं. अभिमन्यु के साथ जो किया गया, वह भारत के साथ किया जा रहा है. आज भी चक्रव्यूह के बीच में 6 लोग हैं. ये 6 लोग- नरेंद्र मोदी, अमित शाह, मोहन भागवत, अजित डोभाल, अडाणी और अंबानी हैं.यह करीब वैसा ही आरोप है कि इन छह लोगों के चलते ही कुरुक्षैत्र के मैदान में अभिमन्यु को मारा गया था.
क्या देश को पीएम और होम मिनिस्टर को, देश के सबसे बड़े दो उद्योगपतियों को इस तरह की उपाधि देना शोभा देता है? क्या बीजेपी का कोई नेता राहुल -सोनिया और प्रियंका के व्यक्तित्व को पौराणिक कथाओं में आने नकारात्मक किरदारों से तुलना करे तो यह कांग्रेस को अच्छा लगेगा. खुद मोदी और शाह गांधी फैमिली के बारे में ऐसी ही टिप्पणियां करे तो क्या उचित होगा?
4-क्या अंबानी अडानी को जेल भेजने का वादा करेंगे?
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार को उजागर करने की धमकी देकर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बना ली. नेताओं के झूठ में बड़ी ताकत होती है. राहुल ने लोकसभा में अंबानी-अडाणी का नाम लिया तो स्पीकर ने यह कहकर टोका कि जो लोग सदन के सदस्य नहीं है, उनका नाम न लें. इसके बाद फिर जब राहुल अंबानी-अडाणी बोले तो मुंह पर हाथ रख लिया.क्या राहुल गांधी देश के लोगों से वादा करेंगे कि वे सत्ता में आते ही अंबानी और अडाणी को सरकार गिरफ्तार करके जेल भेजेगी.
राहुल ने लोकसभा में अंबानी-अडाणी का नाम लिया तो स्पीकर ने यह कहकर टोका कि जो लोग सदन के सदस्य नहीं है, उनका नाम न लें। इसके बाद फिर जब राहुल अंबानी-अडाणी बोले तो मुंह पर हाथ रख लिया. 46 मिनट के भाषण में राहुल ने 4 बार अडाणी-अंबानी का नाम लिया. दो बार मुंह पर उंगली रखी. राहुल ने हलवा सेरेमनी का पोस्टर लहराया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सिर पकड़ लिया. स्पीकर ने 4 बार टोका पर राहुल नहीं माने.
राहुल ने लोकसभा में अंबानी-अडाणी का नाम लिया तो स्पीकर ने यह कहकर टोका कि जो लोग सदन के सदस्य नहीं है, उनका नाम न लें। इसके बाद फिर जब राहुल अंबानी-अडाणी बोले तो मुंह पर हाथ रख लिया. राहुल ने लोकसभा में अंबानी-अडाणी का नाम लिया तो स्पीकर ने यह कहकर टोका कि जो लोग सदन के सदस्य नहीं है, उनका नाम न लें। इसके बाद फिर जब राहुल अंबानी-अडाणी बोले तो मुंह पर हाथ रख लिया.
5-वादा करें कि जाति जनगणना की रिपोर्ट कर्नाटक में लागू करेंगे
राहुल गांधी लोकसभा चुनावों से पहले ही जाति जनगणना की बात हर मंच से उठाते रहे हैं. लोकसभा में बोलते हुए उन्होंने कहा कि 95% जनता जानना चाहती है कि हमारी भागीदारी कितनी है. देश के संसाधनों को बांटता कौन है, वही दो-तीन परसेंट लोग और बंटता किनमें हैं? दरअसल राहुल गांधी चाहते थे कि जाति जनगणना की बात उठे. वो कहते हैं कि जाति जनगणना से देश बदल जाएगा. पर सवाल तो उठेगा ही राहुल गांधी कांग्रेस शासित राज्यों में क्यों नहीं क्यों जाति जनगणना का रिपोर्ट सामने ला रहे हैं. कर्नाटक में जाति जनगणना हो चुकी है पर उसकी रिपोर्ट 6-7 साल पहले ही कांग्रेस राज में ही आ चुकी थी. तब भी कांग्रेस ने उस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया. नई सरकार गठन के भी एक महीना से ऊपर हो गया पर सरकार इस रिपोर्ट को जनता के सामने रखने से कतरा रही है. राहुल गांधी की बातों में वजन तभी पैदा होगा जब वो कर्नाटक में वो जाति जनगणना की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखेंगे.
