अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ पर लगातार भारत को धमकियां दे रहे हैं. ट्रंप की कोशिश भारत को झुकाने पर है, लेकिन मोदी सरकार सीना तानकर अमेरिका के सामने खड़ी है. सरकार का कहना है कि उसके लिए राष्ट्रहित पहले है. वो जो भी फैसला लेगी देश के हित को ध्यान में रखते हुए लेगी. ट्रंप को बयानों से तो मैसेज दिया ही जा रहा है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसा कुछ किया जा रहा है जिससे उन्हें सीधा संदेश जाए.
काम कर रहा है जो कहीं से भी अमेरिका बिल्कुल नहीं चाहता है. अगर कहें कि भारत ट्रंप को चिढ़ा रहा है तो गलत नहीं होगा. दरअसल, हिंदुस्तान रूस के साथ अपनी दोस्ती को और मजबूत कर रहा है तो वहीं चीन के साथ संबंधों को बेहतर कर रहा है. ट्रंप यही नहीं चाहते.
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रूस और भारत की मजबूत होती दोस्ती
ट्रंप भारत को रूस से दूर करना चाहते हैं. वो जितना ये कर रहे भारत उतना मॉस्को के और करीब जा रहा है. इसी सिलसिले में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल के बाद अब विदेश मंत्री एस जयशंकर रूस के दौरे पर जा रहे हैं. उनकी ये यात्रा अगले हफ्ते होगी. रूस की सरकार के मुताबिक, 21 अगस्त को जयशंकर की रूसी विदेश मंत्री से मुलाकात होगी. दोनों देशों के मंत्रियों की इस बैठक के कुछ ही दिन बाद राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आएंगे.
पुतिन का नई दिल्ली दौरा सितंबर में होगा. पुतिन के भारत दौरे की बात डोभाल की यात्रा के दौरान सामने आई थी. नेताओं के आने-जाने के अलावा भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखा है. ट्रंप को ये रास नहीं आ रहा है और यही वजह है कि वो भारत पर टैरिफ को बढ़ाते जा रहे हैं. रूस भी भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है. तेल विवाद पर रूस का कहना है कि भारत को देशहित में फैसला लेने का अधिकार है.
चीन से भी बेहतर हो रहे संबंध
रूस से दोस्ती को और मजबूत करके भारत ट्रंप को मैसेज तो दे ही रहा है साथ ही चीन से अपने संबंधों को सुधार रहा है. ऐसा नहीं है कि भारत ही हाथ बढ़ा रहा है, चीन भी खुलकर साथ खड़ा है. उसके विदेश मंत्री वांग यी 18 अगस्त को नई दिल्ली आ सकते हैं, जहां उनकी मुलाकात अजीत डोभाल से हो सकती है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद चीन के किसी नेता का ये पहला भारत दौरा होगा. वांग यी का ये दौरा अगस्त के आखिर में होने वाले SCO समिट से पहले हो रहा है.
सितंबर को चीन में होने वाले इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लेंगे. पीएम मोदी 7 साल बाद चीन के दौरे पर जाएंगे. इससे पहले 2018 में वह चीन गए थे, तब भी SCO समिट में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे. वांग यी के आने और पीएम मोदी के जाने से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, NSA अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर का भी चीन दौरा हो चुका है.
राजनाथ सिंह जून के आखिर में SCO समिट में हिस्सा लेने के लिए चीन गए थे तो जयशंकर जुलाई में पड़ोसी मुल्क गए थे. डोभाल भी जून की शुरुआत में चीन के दौरे पर गए थे. रूस और चीन के साथ बातचीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि बीजिंग रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय बैठक के लिए दबाव बना रहा है. हालांकि दिल्ली ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
ट्रंप की और कौन सी बात नहीं मान रहा भारत
टैरिफ पर झुक नहीं रहा- ट्रंप चाहते हैं कि भारत उनकी सारी बात मान ले. रूस से तेल खरीदना बंद कर दे. डेयरी और फार्म सेक्टर को अमेरिका के लिए खोल दे. लेकिन भारत अड़ा हुआ है. यही वजह है कि ट्रंप टैरिफ को बढ़ाते जा रहे हैं. पहले 25 परसेंट किए थे. बाद में 50 परसेंट कर दिए.
सीजफायर पर ट्रंप को क्रेडिट नहीं दे रहा- डोनाल्ड ट्रंप भारत-पाकिस्तान के बीच शांति कराने का श्रेय अब तक कई बार ले चुके हैं. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस और अलग-अलग मंचों से कई बार कहा कि भारत-पाकिस्तान के बीच उन्होंने सीजफायर कराया, नहीं तो लड़ाई परमाणु वाली हो जाती है. पाकिस्तान तो ट्रंप की बात मान लिया. उसने कहा भी कि ट्रंप ने उसकी जान बचा दी, लेकिन भारत ने अब तक एक बार भी सीजफायर का श्रेय ट्रंप को नहीं दिया.
यही बात ट्रंप मान नहीं पा रहे हैं. ट्रंप सोच रहे हैं कि आखिर कैसे भारत उनको श्रेय नहीं दे रहा है. जिस मजबूती के साथ हिंदुस्तान ट्रंप के सामने डटा हुआ है, वो अमेरिका और पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा संदेश है.
नोबेल के लिए ट्रंप को नॉमिनेट नहीं कर रहा-
डोनाल्ड ट्रंप की ख्वाहिश नोबेल पुरस्कार की है. वह शांति का नोबेल पुरस्कार चाहते हैं. इजराइल-ईरान लड़ाई, अजरबैजान-आर्मेनिया जंग और भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध को खत्म करके वह खुद को इसका दावेदार बता रहे हैं. पाकिस्तान और कई अन्य मुल्क तो उनको नॉमिनेट भी कर चुके हैं, लेकिन भारत से उनको भाव ही नहीं मिल रहा है.
