उस देश का शासक कुछ बोलता हुआ सा, कुछ करता हुआ सा लगता था मगर वह इतना निरीह, इतना बेचारा, इतना दब्बू, इतना कायर, इतना टायर था कि जैसा लगता था, वैसा था नहीं और जैसा था, वैसा लगता नहीं था। उसका अमीर मालिक- जो रोल उसे देता था- उसे ये बेचारा निभा देता था। उसे जब जो कहा जाता था, बिना रुके, बिना थके, बिना सोचे करना होता था। नींद से उठाकर, पेशाब करते समय भी कहा जाता तो पेशाब रोक कर भी, जितना और जो कहा जाता था, पहले उसे करना होता था। उसे जो स्क्रिप्ट और डायलाग दिए जाते थे, उस पर उसे केवल होंठ हिलाने होते थे, हाव-भाव दिखाने होते थे। आवाज़ किसी और की होती थी।
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स्क्रिप्ट कैसी भी हो, कुछ भी हो, किसी भी विषय पर हो, निर्देशक कोई हो, प्रोड्यूसर और वितरक कोई और हो, जो कहा जाए, उसे करना होता था। इनकार करने का विकल्प उसके सामने नहीं था। कुएं में कूदने को कहा जाता तो कुएं में कूदना होता था। मरने से डरना उसके लिए मना था। अगले जन्म में विश्वास रखकर उसे सब करना होता था।
जब तक कैमरामैन कट न कहे, तब तक उसे वही- वही करते रहना होता था। उसकी जिम्मेदारी यह थी कि दुनिया को ऐसा भ्रम होना चाहिए कि जैसे वह यह सब अपनी इच्छा से कर रहा है, उसे हुक्म देनेवाला कोई नहीं है। वह किसी के आदेश से कुछ नहीं करता। वह स्वयंभू है। आत्मनिर्भर है। वह किसी और की नहीं अपने मन की बात करता है।
वे कहें, ‘विकास’ शब्द पर होंठ हिलाने हैं तो उसे होंठ हिलाने होते थे। एक बार में शाट ठीक न आए तो दस बार, दस तरह से ‘विकास’- ‘विकास’ पर होंठ हिलाने होते थे। वे कहते, जय श्री राम, तो जयश्री राम पर होंठ हिलाने होते थे। वे कहें, दंगा तो दंगा बोलना और करवाना होता था। वे कहते, शांति, सौहार्द, भाईचारा और संविधान शब्दों पर होंठ हिलाओ, तो उसे होंठ हिलाने होते थे।
वे कहते, कहो कि वे तुम्हारी भैंस उठा ले जाएंगे, तुम्हारे आधे खेत पर कब्जा कर लेंगे, वे तुम्हारा मंगलसूत्र चुरा लेंगे, इस पर होंठ हिलाओ तो होंठ हिलाना होता था।वह गुलाम था पर ऐसा गुलाम जो पर्दे पर राजा जैसा दिखे। अपनी फिल्म का हीरो, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर वह खुद है, ऐसा एहसास उसे दिलाना होता था। मालिक के आदेश पर उसे जमीन, पहाड़, पेड़, समुद्र, सब खुदवा देना होता था। उसे सड़कें वहां बनवानी होती थीं, जहां वे कहें। वे कहें कि हमें फलां जगह ठेका दिलवाओ तो दिलवाने का प्रयास दिल से करना होता था। दिमाग मालिक लगाता था।
उसकी किसी फिल्म का निर्माता कभी कोई बड़ा धन्ना सेठ, कभी कोई गुंडा, कभी कोई हत्यारा, कभी कोई बलात्कारी, कभी कोई बिल्डर, कभी कोई दलाल, कभी कोई राम-रहीम टाइप होता था। कभी कोई अमेरिका या अमेरिका टाइप होता, कभी ये सब मिलकर फिल्म को सुपर- डुपर हिट बनाने के लिए संयुक्त रूप से फिल्म प्रोड्यूस और डायरेक्ट करते थे। फिल्म किसी की हो, उसे तो बस होंठ हिलाने थे, हाव-भाव दिखाने थे। अनेक बार देखा गया कि सिंक्रोनाइजेशन में गड़बड़ी हो जाती थी। होंठ कुछ और कह रहे होते, आवाज कहीं और जा रही होती पर वह क्या करता, यह जिम्मेदारी उसकी नहीं, साउंड रिकॉर्डर की थी, निर्देशक और निर्माता की थी।उसे तो होंठ हिलाने थे, हिला देता था। उसे दो ही बातें याद रखनी थीं, जब तक कट न कहा जाए, होंठ हिलाने हैं, हाव-भाव दिखाने हैं।
जिन्होंने उसे होंठ हिलाने का काम दिया था, उन्होंने उसे पूरा का पूरा, समूचा का समूचा खरीद लिया था। उसका भेजा, उसके कान, उसकी नाक, उसकी आंखें, उसका मुंह, उसका गला, उसका सीना, उसका पेट, उसका अगवाड़ा, उसका पिछवाड़ा सबका मुंह मांगा मोल दिया था। उसका मुंह खरीदते समय उसके होंठों की कीमत अलग से चुकाई थी। वह अपने दांत तक अपनी मर्जी से खुरच नहीं सकता था, शरीर में कहीं खुजली चल होती तो भी अपनी इच्छा से हाथ हिला नहीं सकता था। उसे प्रोड्यूसर-डायरेक्टर से इसकी लिखित अनुमति लेना होती थी। आप उसकी इस यातना को समझ सकते हैं मगर फिर भी वह खुश था कि वह कितना योग्य है, उसकी कितनी मांग है। अपने देश का वह एक अकेला एक इंसान है, जिसके सिर से लेकर पैर तक, कान से नाक तक,आगे से पीछे तक सबके सब मुंहमांगे दाम पर बिके चुके हैं, जबकि कुछ ऐसे होते हैं, जिनका कुछ भी बिकता नहीं ,जो सब बेचते भी नहीं। कुछ उनका अपना भी रह जाता है.
मगर उसे गर्व है कि उसका सबकुछ बिक चुका है। सबकुछ अच्छी कीमत पर दूसरों के हवाले हो चुका है। वह सारी जिम्मेदारियों से बरी किया जा चुका है। उसे अपना शरीर रूपी माल का एक -एक अंग खुदरा सामान की तरह बेचना नहीं पड़ा है। उसे मोलभाव नहीं करना पड़ा है। जो कीमत उसने मांगी है, उसे दी गई है। उसका बुढ़ापा अब सुख से कटेगा। बस उसे होंठ हिलाने हैं और होंठ हिलाने हैं और होंठ हिलाते रहना है। उसकी आत्मा पर कोई बोझ नहीं है। उसे होंठ हिलाने हैं, भाव दिखाने हैं और इसी तरह इस दुनिया से एक दिन विदा हो जाना है। उसे हुक्म देनेवाले जिंदा रहेंगे मगर उसे इससे क्या!