एक जून को शाम सात बजे लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का मतदान खत्म होते ही एग्ज़िट पोल्स आए तो ऐसा लग रहा था कि उत्तर प्रदेश में लड़ाई एकतरफा है. सभी एग्जिट पोल ने भाजपा गठबंधन को उत्तर प्रदेश में 60 से अधिक सीट दे रहे थे. लेकिन 4 जून को नतीजों वाले दिन का आलम ये था कि भाजपा ने 33 सीटों पर सिमट गई. अकेले यूपी में उसे 29 सीटों का नुकसान हुआ. जिस अयोध्या में राम मंदिर को लेकर बीजेपी ने इतना प्रचार-प्रसार किया, वहां से तीन बार के सांसद रहे बीजेपी के लल्लू सिंह को भी हार का सामना करना पड़ा.
कास्ट | सपा+कांग्रेस | भाजपा+ | बसपा |
अपर कास्ट | 16 % | 79 % | 1% |
यादव | 82 % | 15% | 2% |
कुर्मी – कोइरी | 34% | 64 % | 2 % |
अन्य ओबीसी | 34 % | 59 % | 3% |
जाटव | 25 % | 24 % | 44% |
नॉन जाटव | 56 % | 29 % | 15 % |
मुस्लिम | 92 % | 2 % | 5 % |
कास्ट | सपा+बसपा | भाजपा+ | कांग्रेस |
अपर कास्ट | 7 | 77.2 | 5.2 |
यादव | 60 | 23 | 5 |
कुर्मी-कोइरी | 14 | 80 | 5 |
जाटव | 17 | 75 | 1 |
नॉन जाटव | 42 | 48 | 7 |
लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक पिछले एक दशक में बीजेपी ने ओबीसी वोटरों में जबरदस्त पैठ बनाई है. 2014 में बीजेपी को 34 फीसदी ओबीसी वोट मिले और 2019 में 44 फीसदी ओबीसी ने बीजेपी को वोट दिया. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा और बाकी क्षेत्रीय दल सिर्फ 27 फीसदी वोट पा सके. वहीं 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में केवल 10 फीसदी यादव मतदाताओं ने, 57 फीसदी कोइरी-कुर्मी मतदाताओं और 61 फीसदी अन्य ओबीसी मतदाताओं ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को वोट किया था. अगर सीटों की बात करें तो 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने 315 सीटें हासिल की तो वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 65 सीटें हासिल की थी.
2014 के बाद से वोट के इस गणित में बदलाव आया. चुनाव यूपी का हो या केंद्र का, पिछड़ा वोट बहुतायत में बीजेपी के पास एकमुश्त आने लगा. वहीं इस लोकसभी चुनाव में ओबीसी वोट क्षेत्रीय दलों की तरफ जाता दिखा है. वहीं यूपी में एक बार फिर राजनीति ओबीसी वोटों के आस पास घुमता नजर आने लगा है.