हे दिव्यवाणी के पुत्र !
अपना मुखड़ा मेरी ओर कर और मेरे अतिरिक्त अ सभी कुछ त्याग दे, क्योंकि मुझ महान की सत्ता शाश्वत उसका अन्त नहीं। यदि मेरे अतिरिक्त तुझे किसी अन्य व लालसा है, तो समझ ले कि भले ही कल्पान्त तक तू संपू ब्रह्माण्ड को भी खोजता रहेगा तो निराशा को ही प्राण होगा।-बहाई लेखों से
Author: Sanjeevni Today
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