आजकल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे इंस्टाग्राम, टिकटॉक, फेसबुक और यूट्यूब पर शॉर्ट वीडियो देखने का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. हालांकि, यह आदत अब न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य बल्कि आंखों के लिए भी खतरनाक साबित हो रही है. डॉक्टरों का कहना है कि ज्यादा समय तक लगातार रील्स देखने से ‘रील-इंड्यूस्ड आई डैमेज’ यानी आंखों से जुड़ी गंभीर समस्याएं बढ़ रही हैं. खासतौर पर बच्चे और युवा इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं.
हेल्थ भी रहेगी मस्त-मस्त……’समर सीजन में लुत्फ उठाएं विटामिन सी रिच ये 9 चीजें……
दिल्ली में हुई एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी और ऑल इंडिया ऑप्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी की बैठक में विशेषज्ञों ने इस विषय पर चर्चा की. एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी के अध्यक्ष डॉ. ललित वर्मा ने बताया कि लंबे समय तक स्क्रीन देखने से ड्राई आई सिंड्रोम, मायोपिया (नजर कमजोर होना), आंखों में जलन, सिरदर्द, नींद की समस्या और यहां तक कि भेंगापन (Squinting) जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
डॉ ललित वर्मा ने एक उदाहरण साझा करते हुए बताया कि एक छात्र लगातार आंखों में जलन और धुंधलेपन की शिकायत लेकर आया. जांच करने पर पता चला कि लंबे समय तक रील्स देखने के कारण उसकी आंखों में आंसू बनना कम हो गए थे. उसे तुरंत आई ड्रॉप दी गई और 20-20-20 नियम अपनाने की सलाह दी गई.
रील्स देखने से क्यों बढ़ रही हैं आंखों की बीमारियां?
ऑल इंडिया ऑप्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष और आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. हरबंश लाल ने बताया कि रील्स का डिज़ाइन इस तरह से किया गया है कि यह लोगों का ध्यान लंबे समय तक आकर्षित रखती हैं. इससे लोग बिना पलक झपकाए स्क्रीन पर लगे रहते हैं, जिससे पलक झपकाने की दर 50% तक घट जाती है. इससे आंखों में सूखापन, नजर कमजोर होना और सिरदर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस आदत पर नियंत्रण नहीं किया गया तो यह स्थायी रूप से आंखों की रोशनी कमजोर कर सकती है. इसके अलावा, बच्चे जो रोजाना घंटों तक रील्स देखते हैं, वे कम उम्र में ही मायोपिया के शिकार हो रहे हैं.
2050 तक आधी दुनिया हो सकती है मायोपिया की शिकार
सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष और आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. हरबंश लाल ने एक शोध का हवाला देते हुए कहा कि 2050 तक दुनिया की 50% आबादी मायोपिया से पीड़ित हो सकती है. उन्होंने यह भी बताया कि पहले नजर का नंबर 21 साल की उम्र तक स्थिर हो जाता था, लेकिन अब स्क्रीन टाइम बढ़ने की वजह से यह 30 साल तक बदलता रहता है.
ऑफिस में काम करने वाले प्रोफेशनल्स और स्टूडेंट्स में डिजिटल आई स्ट्रेन, भेंगापन, और कमजोर नजर की समस्या तेजी से बढ़ रही है. इसके अलावा, ज्यादा स्क्रीन देखने से सामाजिक जीवन पर भी बुरा असर पड़ रहा है.
रील्स देखने से मानसिक और सामाजिक नुकसान
ऑल इंडिया ऑप्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. समर बसाक ने बताया कि लोग रील्स में इतने ज्यादा उलझ जाते हैं कि वे असल जिंदगी की बातचीत और सामाजिक रिश्तों को नजरअंदाज करने लगते हैं. इससे पढ़ाई और काम पर ध्यान केंद्रित करने में भी परेशानी होती है.
रील्स देखने की आदत को कैसे करें नियंत्रित?
रील्स और स्क्रीन टाइम अधिक होने से आज बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक परेशान हो रहे हैं. आंखों और सिरदर्द की समस्या लेकर लोग डॉक्टरों के पास पहुंच रहे हैं. विशेषज्ञों ने आंखों को सुरक्षित रखने के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं. जिसे अपनाकर आप अपनी आंखों की सुरक्षा कर सकते हैं.
- 20-20-20 नियम अपनाएं- हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें, इससे आंखों को आराम मिलेग
- पलक झपकाने की आदत डालें- स्क्रीन पर देखने के दौरान बार-बार पलक झपकाएं, ताकि आंखें सूखी न रहें.
- स्क्रीन टाइम कम करें- रील्स देखने का समय सीमित करें और अनावश्यक स्क्रीन एक्सपोजर से बचें.
- डिजिटल डिटॉक्स करें- हफ्ते में कम से कम एक दिन बिना स्क्रीन के बिताएं, जिससे आंखों और दिमाग को आराम मिले.
- ब्लू लाइट फिल्टर का इस्तेमाल करें- स्मार्टफोन और कंप्यूटर में ब्लू लाइट फिल्टर ऑन करें या एंटी-ग्लेयर चश्मा पहनें.
- रात में मोबाइल कम इस्तेमाल करें- सोने से पहले स्क्रीन देखने से बचें, ताकि आंखों पर कम दबाव पड़े और नींद सही से आए.
