बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल (यूनाइटेड) पार्टी वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 के समर्थन को लेकर अंदरूनी कलह का सामना कर रही है। कई मुस्लिम नेताओं ने पार्ची से इस्तीफा भी दे दिया है। इस्तीफा देने वाले जदयू नेताओं में नदीम अख्तर, राजू नैयर, जदयू अल्पसंख्यक विभाग के महासचिव तबरेज सिद्दीकी अलीग, जदयू के अल्पसंख्यक राज्य सचिव मोहम्मद शाहनवाज मलिक और मोहम्मद कासिम अंसारी शामिल हैं। हालांकि, पार्टी ने इसे डैमेज कंट्रोल की भी कोशिश की। शनिवार को मुस्लिम नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान पार्टी के तीन मुस्लिम नेता भी मौजूद थे जो लगातार वक्फ कै विरोध कर रहे थे।
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मुस्लिम संगठन नाराज
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह विधेयक अब कानून बन चुका है। विधेयक पारित होने से पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), इमारत-ए-शरिया और जमीयत उलमा-ए-हिंद समेत आठ प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने 23 मार्च को नीतीश कुमार द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी का बहिष्कार किया था। पार्टी के कुछ प्रमुख गैर-मुस्लिम नेता भी पार्टी के रुख से नाखुश बताए जा रहे हैं। बावजूद इसके नीतीश कुमार की पार्टी ने वक्फ बिल का समर्थन किया। अक्टूबर में राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए जेडी(यू) पर इसके संभावित चुनावी प्रभाव पर बिहार की राजनीति में तीखी बहस चल रही है।
नीतीश पर दवाब
इससे यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि क्या नीतीश कुमार और उनकी पार्टी का वक्फ संशोधन विधेयक को समर्थन आगामी बिहार चुनावों में उनकी संभावनाओं को प्रभावित करेगा। 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव सभी 243 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए संभवतः अक्टूबर-नवंबर 2025 में होंगे। नीतीश कुमार को धर्मनिरपेक्ष समाजवाद विरासत में मिला है, लेकिन उन्होंने भाजपा के साथ रणनीतिक गठबंधन बनाने में भी बेहिचक तत्परता दिखाई है। इन दोनों दृष्टिकोणों के बीच तनाव समय-समय पर स्पष्ट होता रहा है। इसके अलावा अब की स्थिति में जदयू ने मान कर चलती है कि भाजपा के साथ गठबंधन के बाद उसे मुसलमानों का साथ नहीं मिलता है। बावजूद इसके नीतीश कुमार ये बताते रहते है कि उन्होंने मुसलमानों के किया बिहार में क्या-क्या किया है।
पार्टी को कोई नुकसान नहीं
नीतीश कुमार के पास अब मुसलमानों का बहुत ज़्यादा समर्थन नहीं बचा है। इसलिए वक्फ को समर्थन देना एक सोचा-समझा जोखिम है। हालांकि, जेडीयू के पास एक “प्लस पॉइंट” है। जेडी(यू) को हर चुनाव में लगभग समान वोट शेयर मिलता है, लेकिन पार्टी के मतदाता आधार की “संरचना” उसके गठबंधन सहयोगियों के आधार पर बदलती रहती है। जेडी(यू) के पास करीब 12 प्रतिशत का एक निश्चित वोट शेयर है। इसमें आरजेडी के साथ गठबंधन की स्थिति में 4-5 प्रतिशत मुस्लिम-यादव वोट शेयर और बीजेपी के साथ गठबंधन की स्थिति में 4-5 प्रतिशत उच्च जाति, ओबीसी और ईबीसी वोट शेयर शामिल है। इस तरह दोनों मामलों में जेडी(यू) का वोट शेयर 16-17 प्रतिशत हो जाता है। जद(यू) का सकारात्मक पक्ष यह है कि जब जद(यू) किसी पार्टी के साथ गठबंधन करती है, तो इससे उसके गठबंधन सहयोगियों को कोई नुकसान नहीं होता।
