सामान्यतः जब व्यक्ति का लिवर किसी कारणवश खराब हो जाता है और अपने काम को सही तरह से नहीं कर पाता है, तब इसे लिवर फेलियर की स्थिति मानी जाती है। लिवर को खराब करने के लिए हेपेटाइटिस रोग, शराब का ज्यादा सेवन, अधिक ब्लड कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, मोटापा और अधिक फैट युक्त फास्ट फूड भोजन के साथ खराब लाइफस्टाइल जैसे कारक जिम्मेदार होते हैं। लिवर के फेल हो जाने के उपरांत अधिकांश केसेस में लिवर ट्रांसप्लांट किया जाता है। लेकिन अक्सर देखा गया है कि लोगों में लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर कई मिथक रहते हैं। इस लेख में समझते हैं कि लोगों में लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर किस तरह के मिथक फैले हुए हैं और किस तरह की जानकारी होना जरूरी है।
नारायणा हॉस्पिटल, जयपुर के हेपेटोलॉजी एंड लिवर ट्रांसप्लांट फिजिशियन, सीनियर कंसलटेंट, डॉ. राहुल राय, लिवर ट्रांसप्लांट के विषय में बताते हैं कि लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत मुख्य रूप से दो स्थितियों में पड़ती है। पहला जब मरीज का लिवर पूरी तरह से काम करना बंद कर दे या फिर जब मरीज लिवर कैंसर से ग्रसित हो और अन्य उपाय कारगर न हो, तब लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। यह ट्रांसप्लांट या तो किसी ब्रेन डेड अंगदानी के लिवर द्वारा या फिर निकटतम जीवित रिश्तेदार के लिवर के एक भाग के द्वारा किया जा सकता है। कुछ साल पहले तक यह सुविधा सिर्फ बड़े शहरों में उपलब्ध थी एवं काफी महंगी थी, परंतु अब छोटे शहरों में भी कम खर्चे में लिवर ट्रांसप्लांट संभव है।
लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर सही जानकारी होना जरूरी है –
नारायणा हॉस्पिटल, जयपुर के गैस्ट्रो एवं लिवर ट्रांसप्लांट सीनियर सर्जन, डॉ. सुभाष मिश्र ने बताया कि ऐसी स्थिति में डोनर का आधा लिवर मरीज को ट्रांसप्लांट किया जाता है। डोनर मरीज के परिवार का ही होना चाहिए जिसकी उम्र 18 से 55 के बीच में ही होनी चाहिए। इसके साथ ही डोनर का ब्लड ग्रुप मरीज के साथ मैच करना चाहिए। मरीज के हिसाब से उपयुक्त डोनर मिलने के बाद ट्रांसप्लांट के समय मरीज के रोग ग्रस्त लिवर को पूरी तरह से बाहर निकालकर डोनर के लिवर का दायां हिस्सा मरीज के अंदर ट्रांसप्लांट किया जाता है। ट्रांसप्लांट के सफल होने के कुछ महीनों के पश्चात डोनर का बचा हुआ लिवर का बायां भाग और मरीज के अंदर ट्रांसप्लांट हुआ लिवर का दायां भाग पूरी तरह से विकसित हो जाता है और ठीक तरह से काम करने लगता है।
लिवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया से जुड़े कुछ मिथक और तथ्य –
1. लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर लोगों में अक्सर यह भ्रम रहता है कि लिवर कैंसर की स्थिति में ट्रांसप्लांट के बाद दोबारा से कैंसर की संभावना बनी रहती है। लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि लिवर कैंसर के लिए ट्रांसप्लांट तभी किया जाता है जब कैंसर लिवर तक ही सीमित रहता है और जिसे ट्रांसप्लांट के समय निकालकर बाहर कर दिया जाता है और नए लिवर में किसी भी तरह के कैंसर की संभावना नहीं रहती है।
2. बहुत से लोगों में लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर एक मिथक यह भी है कि उम्र अधिक होने से लिवर ट्रांसप्लांट नहीं हो सकता, लेकिन ऐसा नहीं है उम्र को लेकर लिवर ट्रांसप्लांट में कोई दिक्कत नहीं आती है, बशर्ते मरीज लिवर ट्रांसप्लांट के पूर्व फिट हो।
3. लिवर ट्रांसप्लांट में डोनर को लेकर एक सामान्य मिथक यह भी है कि लिवर ट्रांसप्लांट के बाद डोनर को भी अधिक समस्या हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं है ट्रांसप्लांट एक सफल प्रक्रिया है जिसके बाद डोनर अपनी सामान्य जीवनशैली शुरू कर सकता है।
4. लिवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया को लेकर लोगों में एक मिथक यह भी है कि लिवर ट्रांसप्लांट अधिक दिनों तक सफल नहीं रहता और मरीज को कुछ दिनों बाद फिर से दिक्कत हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है, सफल लिवर ट्रांसप्लांट के बाद मरीज का जीवन बिल्कुल सामान्य हो जाता है।
लोगों में लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर सही जानकारी होना बहुत जरूरी है इसलिए लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर फैले भ्रम और मिथकों पर बिल्कुल भी ध्यान ना दें। इसके साथ ही लिवर को स्वस्थ रखने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं।
Author: Sanjeevni Today
ताजा खबरों के लिए एक क्लिक पर ज्वाइन करे व्हाट्सएप ग्रुप