नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच के संबंध हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहे हैं और हाल के वर्षों में चीन की आर्थिक और भू-राजनीतिक समस्याएं भारत के लिए एक नया सिरदर्द बनी हुई हैं. चीन के आर्थिक संकट और वैश्विक कंपनियों द्वारा “चाइना प्लस वन” नीति के तहत भारत को एक विकल्प के रूप में देखने की प्रवृत्ति ने भारत की स्थिति को मजबूत किया है.
दूसरी ओर चीन की बढ़ती क्षमता और आर्थिक मंदी ने भी भारत के लिए कई नए प्रश्न खड़े किए हैं जो भविष्य मे भारत जैसे देश के लिए मह्त्वपूर्ण है जो भारतीय व्यापार नीति, कूटनीति और रणनीति की दिशा और दशा तय करेंगे.
चीन की फिस्कल स्टिमुलश नीति भारत के लिए खतरा?
हाल ही में चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए प्रोत्साहन उपायों की घोषणा की है. चीन की सरकार ने ब्याज दरों में कटौती की है होम लोन की खरीद पर नियमों में ढील दी है और कुछ बेरोजगार स्नातकों के लिए नई सब्सिडी की पेशकश की है. ये उपाय लगभग एक ट्रिलियन युआन ($141.7 बिलियन) की दीर्घकालिक तरलता को बाजार में injecting करने की उम्मीद रखते हैं.
इसका सीधा असर भारतीय शेयर बाजार पर पड़ा है. एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) ने पिछले कुछ समय में भारतीय बाजार से निकासी की है, जबकि चीन के स्टॉक मार्केट में तेजी आई है. उदाहरण के लिए चीनी CSI300 इंडेक्स एक सप्ताह में 25% की वृद्धि देख चुका है जबकि भारतीय निफ्टी और सेंसेक्स में गिरावट आई है.
भारतीय बाजार पर एफआईआई का प्रभाव
पिछले दो वर्षों में ‘बाइ इंडिया, सेल चाइना’ मंत्र का पालन करने के बाद चीनी फिस्कल स्टिमुलश के बाद निवेशक अब उलटे कदम उठाने लगे हैं और ‘बाइ चाइना, सेल इंडिया’ के मंत्र का पालन करने लगे है. अन्य उभरते बाजार साथियों के मुकाबले सुस्त पड़ने के बाद, चीनी शेयर बाजार एक सप्ताह में CSI300 में 25% की उछाल और हैंग सेंग में 16% की तेजी के साथ वापस आ गया है. दूसरी ओर निफ्टी और सेंसेक्स दोनों ही बिकवाली के दबाव में हैं क्योंकि सोमवार के कारोबार में FII ने एक बिलियन डॉलर से अधिक की निकासी की जब सेंसेक्स लगभग 1,300 अंक नीचे बंद हुआ.
मीडियन टर्म मे होगा भारत मे संतुलन
अर्नब दास, वैश्विक मैक्रो रणनीतिकार, ने कहा, “जब चीन का बाजार खराब स्थिति में होता है, तो लोगों को उभरते बाजारों के ईटीएफ खरीदने के लिए प्रोत्साहित करना बहुत कठिन होता है. अगर भारत की स्थिति मजबूत है और बाजार में अच्छी गति है, तो यह वैश्विक निवेशकों के लिए आकर्षक होगा.”
ईएम-इक्विटी रणनीतिकार एड्रियन मोवाट ने कहा, “मध्यम अवधि में, यह उभरते बाजारों में प्रवाह के लिए सकारात्मक होगा. शुरू में भारत को निकासी का सामना करना पड़ेगा लेकिन जैसे-जैसे सक्रिय प्रबंधक अपने पोर्टफोलियो को संतुलित करने का प्रयास करेंगे भारत इस प्रक्रिया में लाभान्वित होगा.”
व्यापार घाटा एक नई चुनौती
चीन के साथ व्यापार घाटा भी भारत के लिए एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है. 2023-24 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा $85.08 बिलियन था जो पिछले वर्ष की तुलना में अधिक है. भारत ने चीनी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने की कोशिश की है खासकर सौर पैनलों और स्टील के क्षेत्रों में ताकि स्थानीय उद्योगों को नुकसान से बचाया जा सके.
भारतीय स्टील निर्माताओं ने हाल ही में सरकार से आयात पर शुल्क दोगुना करने की अपील की है, क्योंकि चीन से आने वाले सस्ते स्टील ने बाजार को प्रभावित किया है. भारत जो विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा स्टील उत्पादक है, इस वित्तीय वर्ष में स्टील का शुद्ध आयातक बन गया है.
क्या चीन एक स्थायी समस्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का आर्थिक संकट और उसके बाद के प्रोत्साहन उपाय भारतीय बाजार के लिए चिंताजनक हैं. जोआने सिव चिन, DBS ग्रुप की विशेषज्ञ के अनुसार, “भारत ने मजबूत प्रदर्शन किया है, लेकिन चीन और एशियाई देशों में निवेशक अब वहां की ओर रुख कर रहे हैं.”
इंवेस्को के वैश्विक मैक्रो रणनीतिकार, अर्नब दास ने भी बताया कि चीन का बाजार भारतीय बाजार की तुलना में मूल्यांकन के मामले में कहीं अधिक सस्ता है. यह भारत के लिए एक संकेत है कि उसे अपनी घरेलू आर्थिक नीतियों में बदलाव करने की आवश्यकता हो सकती है.
क्या भारत अपनी स्थिति मजबूत कर पाएगा?
भारत को चीन के आर्थिक संकट से उत्पन्न होने वाले संभावित लाभों को समझना होगा साथ ही साथ स्थानीय उद्योगों की सुरक्षा के लिए उचित नीतियों को लागू करना होगा. अगर भारत अपनी घरेलू नीतियों में सुधार कर सकता है और स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा दे सकता है तो संभव है कि वह चीन के विपरीत एक स्थायी विकल्प के रूप में उभर सके.
लेकिन यह भी सच है कि चीन की समस्याएं एक स्थायी समस्या बन सकती हैं. भारत को निरंतर सतर्क रहना होगा