धर्मशास्त्रों ने श्राद्ध न करने पर जिस भीषण कष्ट का वर्णन किया है, वह अत्यंत मार्मिक है। इसीलिए शास्त्रों में पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने को कहा गया है। आमतौर पर जीव इस जीवन में पाप भी करते हैं और पुण्य भी करते हैं। पुण्य के फल में जहां स्वर्ग मिलता है, वहीं पाप का फल नरक के रूप में मिलता है। स्वर्ग-नरक भोगने के बाद जीव को फिर से अपने कर्मों के अनुसार चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ता है। पुण्यात्मा देव योनि या मनुष्य योनि प्राप्त करते हैं और पापात्मा पशु-पक्षी, कीट-पतंगे आदि तिर्यक योनि को प्राप्त होते हैं। इसलिए शास्त्रों के अनुसार, पुत्र-पौत्रादि का यह कर्तव्य है कि वे अपने मृत माता-पिता और पूर्वजों के लिए श्रद्धापूर्वक कुछ ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें, जिनसे उन मृत-प्राणियों को परलोक में अथवा अन्य योनियों में भी सुख प्राप्त हो सके। सनातन धर्म में पितृऋण से मुक्त होने के लिए परिवार के मृत प्राणियों का श्राद्ध करने की अत्यंत आवश्यकता बताई गई है।
आज का सुविचार: ऐसा कोई भी काम न करो जिससे तुम्हें लज्जित होना पड़े अथवा…..
यह सर्वविदित है कि मृत प्राणी इस महाप्रयाण में अपना स्थूल शरीर भी अपने साथ नहीं ले जा सकता है। तब इस महायात्रा में अपने लिए पाथेय (अन्न-जल) कैसे ले जा सकता है? उस समय उसके सगे-संबंधी श्राद्ध विधि से उसे जो कुछ देते हैं, वही उसे मिलता है। शास्त्र में मरणोपरांत पिंडदान की व्यवस्था बनाई गई है। सर्वप्रथम शवयात्रा के अंतर्गत छह पिंड दिए जाते हैं, जिनसे भूमि के अधिष्ठातृ देवताओं की प्रसन्नता और भूत-पिशाचों द्वारा होने वाली बाधाओं के निराकरण आदि प्रयोजन सिद्ध होते हैं। इसके साथ ही दशगात्र में दिए जाने वाले दस पिंडों के द्वारा जीव को आतिवाहिक सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति होती है। यह मृत व्यक्ति की महायात्रा के प्रारंभ की बात हुई।
अब आगे उसे रास्ते के भोजन-अन्न-जल आदि की आवश्यकता पड़ती है, जो पितृ पक्ष में दिए जाने वाले पिंडदान और श्राद्ध में दिए जाने वाले अन्न से उसे प्राप्त होता है। यदि पुत्र-पौत्रादि, सगे-संबंधी उसे ये सब न दें, तो भूख-प्यास से उसे वहां उसे दुख होता है। इस प्रकार जब श्राद्ध न करने से मृत प्राणी को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है, तो श्राद्ध न करने वाले मृत प्राणी के सगे-संबंधियों को भी कदम-कदम पर कष्ट और अनेक पीड़ाओं का सामना करना पड़ता है।
शास्त्रों ने तो यहां तक कहा है कि मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-संबंधियों का रक्त चूसने लगते हैं। साथ ही पितर शाप भी देते हैं। उपनिषद में भी कहा गया है कि देवता और पितरों से संबंधित कार्यों में मनुष्य को कदापि प्रमाद नहीं करना चाहिए। यह अपने पूर्वजों के पुण्य स्मरण का दिन होता है। इसलिए हर व्यक्ति को अपने दिवंगत माता-पिता और अन्य घनिष्ठ संबंधियों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करना चाहिए।
श्राद्ध करना इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि जो प्राणी विधिपूर्वक शांत चित्त और श्रद्धावनत होकर श्राद्ध करता है, वह सभी प्रकार के पापों से रहित होकर मोक्ष को प्राप्त होता है। फिर इस संसार चक्र में नहीं आता। इसलिए सभी धर्मप्राण लोगों को पितृगण की संतुष्टि और अपने कल्याण के लिए भी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। इस संसार में श्राद्ध करने वाले के लिए श्राद्ध से श्रेष्ठ अन्य कोई कल्याणकारी उपाय नहीं है। इस तथ्य की पुष्टि महर्षि सुमन्तु द्वारा भी की गई है।