एक थाना पुलिस को दूसरे थाना पुलिस के क्षेत्र में हुए अपराध की शिकायत मिलती है तो वह एफआइआर दर्ज करती है और जांच के लिए संबंधित थाना पुलिस को भेजती है। यह जीरो नंबर की एफआइआर होती है। गंभीर अपराध के पीड़ितों, नि:शक्त, महिलाओं व बच्चों को एक से दूसरे पुलिस थाने भेजे बिना शीघ्र और सुविधापूर्वक शिकायत दर्ज कराने में मदद करना उद्देश्य है। इसकी सूचना पुलिस अधीक्षक के कार्यालय को दी जाए। थाना पुलिस को शिकायत दर्ज करने के साथ ही यह भी ध्यान देना चाहिए कि साक्ष्य, गवाह नष्ट न हो और घटना स्थल पर छेड़छाड़ न हो।
पीड़ित घायल है तो उसके इलाज की व्यवस्था कर सुरक्षा सुनिश्चित भी करें। थाना पुलिस को शिकायत देने वाले तथ्यों व घटना पर संदेह हो तो वह क्षेत्रीय वृत्ताधिकारी से तुरंत मार्गदर्शन ले सकती है। वृत्ताधिकारी जीरो एफआइआर या प्राथमिक जांच की पालना करवाएंगे।
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प्राथमिक जांच
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (2023) में प्राथमिक जांच संबंधी प्रावधानों को वैधानिक माना है। थानाधिकारी सुनिश्चित करेंगे कि कार्रवाई करने के लिए प्रथम दृष्टयता मामला बनता है या नहीं। ऐसे अपराध जिनमें कम से कम तीन वर्ष और अधिकतम 7 वर्ष कारावास के दंड का प्रावधान हो। जांच 14 दिन के अंदर ही करनी होगी।
इनकी प्राथमिक जांच
पारिवारिक विवाद, वाणिज्यिक अपराध, चिकित्सा लापरवाही संबंधित अपराध एवं पुलिस थाना के क्षेत्र के निर्धारण सहित अन्य मामलों में प्राथमिक जांच की जा सकती है। प्राथमिक जांच में संज्ञेय अपराध होने की पुष्टि होती है तो तुरंत एफआइआर दर्ज की जाए।
एससी-एसटी के मामले, बिना प्राथमिक जांच के दर्ज हो रिपोर्ट:
डीजीपी यू.आर. साहू ने आदेशमें बताया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 कानूनी रूप से इसप्रावधान के अंतर्गत नहीं आता है।इसलिए एफआइआर किसी भी प्राथमिक जांच के बिना दर्ज की जानी चाहिए।
पुलिस थाना को संज्ञेय अपराध की सूचना इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दी जाती है तो उक्त सूचना ई-एफआइआर की श्रेणी में आएगी। थानाधिकारी शिकायत को डाउनलोड कर ई-शिकायत रजिस्टर में दर्ज करेगा। संज्ञेय (गंभीर) अपराध हुआ है तो थानाधिकारी शिकायतकर्ता से संपर्क कर उसे बताएगा कि शिकायत मिलने के तीन दिन के अंदर उसको थाने आकर ई-सूचना को सत्यापित करना है। इसके बाद विधिवत रूप से एफआइआर दर्ज की जाए।