पीएचडी करने की ख्वाहिश रखने वाले युवाओं के लिए यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन-
यूजीसी से बड़ी ख़बर आ रही है। या यूं कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी
चाहिए, पीएचडी की चाह रखने वाले के लिए यूजीसी ने अब नई संजीवनी से
लबरेज़ नायाब तोहफा दिया है। 2024-25 से पीएचडी में प्रवेश के लिए अब केवल
एक राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा- नेट देनी होगी। यह नई शिक्षा नीति-2020 का अहम
हिस्सा है। उच्च शिक्षा के शीर्ष संस्थान के इस कदम से देशभर में कई प्रवेश
परीक्षाओं की अब जरूरत नहीं रहेगी। नेट परीक्षा प्रावधानों की समीक्षा के लिए
नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के बाद यह महत्वपूर्ण फैसला लिया
गया है। यूजीसी की हाल ही में हुई 578वीं बैठक के दौरान इस बड़े बदलाव को
हरी झंडी दे दी गई। यूजीसी ने इसे जून से ही क्रियान्वित करने का ऐलान किया
है। उल्लेखनीय है, एनईपी-2020 को लागू करने की सिफारिशों के संग केन्द्र सरकार
ने गैर जरूरी बताते हुए एम.फिल. की विदाई कर दी थी। यूजीसी के इस फैसले के
बाद देशभर में अब किसी भी सरकारी या प्राइवेट यूनिवर्सिटी में एमफिल की डिग्री
नहीं दी जा रही है। नेट परीक्षा अब तक मुख्य रूप से जूनियर रिसर्च फेलोशिप-
जेआरएफ और सहायक प्रोफेसर्स की नियुक्तियों की पात्रता तय करने के लिए होती
रही है। अब इसका दायरा बढ़ा दिया गया है। ऑल ओवर इंडिया पीएचडी में प्रवेश
के लिए नेट परीक्षा ही पात्रता होगी। पीएचडी में एडमिशन के लिए रिजल्ट
उम्मीदवार के प्राप्त अंकों के साथ परसेंटाइल में जारी किया जाएगा। बताते चलें,
अभी तक पीएचडी रेग्यूलेशन एक्ट-2022 के तहत जेआरएफ पास स्टुडेंट्स को ही
इंटरव्यू बेस पर पीएचडी में एडमिशन मिलता रहा है। यूजीसी की ओर से नए
परिवर्तन की गाइडलाइन्स का नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है।
नए नियमों के मुताबिक जून, 2024 से यूजीसी नेट योग्य उम्मीदवारों की पात्रता
तीन श्रेणियों में होगी। एक- जेआरएफ और सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के संग-
संग पीएचडी प्रवेश के लिए पात्र होंगे। दो- जो आवेदक जेआरएफ के बिना पीएचडी
प्रवेश के लिए पात्र हैं, लेकिन सहायक प्रोफेसर नियुक्ति चाहते हैं। तीन- वे पूरी
तरह से पीएचडी कार्यक्रम में प्रवेश के हकदार होंगे। नेट के माध्यम से पीएचडी
प्रवेश के लिए दो और तीन श्रेणी में नेट स्कोर का वेटेज 70 प्रतिशत होगा, जबकि
30 प्रतिशत वेटेज इंटरव्यू के जरिए दिया जाएगा। यह इंटरव्यू आवेदक उम्मीदवार
की चयनित यूनिवर्सिटी के अंतर्गत होगा। यह प्रमाण पत्र एक वर्ष के लिए वैध
रहेगा। यदि आवेदक ने इस समयावधि में प्रवेश नहीं लिया तो इसके लिए वह
अयोग्य हो जाएगा। ऐसे में अभ्यर्थी को पुनः नेट परीक्षा देनी होगी। जय जवान,
जय किसान, जय विज्ञान में जय अनुसंधान का जुड़ाव यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र
मोदी का शोध के प्रति समर्पण दर्शाता है, हमारी केन्द्र सरकार वैश्विक रैंकिंग को
लेकर कितनी संजीदा है। 2021-22 में पांच साल के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन-
एनआरएफ का बजट 50 हजार करोड़ आवंटित हो चुका है। उम्मीद है, शोध के क्षेत्र
में तरक्की की नई राहें निकलेंगी। श्री मोदी का मानना है, छात्रों को रिसर्च और
इन्नोवेशन को जीने का तरीका बनाना होगा। स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन के फाइनल में
शिरकत कर रहे छात्रों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उन्होंने अपने सारगर्भित
संबोधन में कहा था, समाज में नवाचार को अब अधिक स्वीकृति मिल रही है। जय
अनुसंधान का जिक्र करते हुए बोले, स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन के प्रतिभागी इसके
ध्वजवाहक हैं। जाने-माने शिक्षाविद प्रो. यशपाल का मानना रहा है, जिन शिक्षण
संस्थानों में अनुसंधान और उसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता है, न तो
शिक्षा का भला कर पाती हैं और न ही समाज का।
आत्मविश्वास से लबरेज़ यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. एम. जगदीश कुमार कहते हैं, यह
बदलाव निः संदेह देश में शैक्षणिक खोज और विद्वतापूर्ण उन्नति के लिए अधिक
अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने में अनमोल योगदान देगा। प्रो. कुमार कहते हैं,
राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी-एनटीए अगले सप्ताह से मूर्त रूप देने जा रही है। इससे न
केवल छात्रों को विभिन्न विश्वविद्यालयों की ओर से आयोजित पीएचडी प्रवेश
परीक्षाओं की तैयारी से राहत मिलेगी, बल्कि इससे परीक्षा संसाधन और खर्चों का
बोझ कम होगा। शिक्षाविद मानते हैं, यूजीसी नेट परीक्षा से न केवल आपके अंकों
के आधार पर प्रतिष्ठि विश्वविद्यालयों के द्वार खुलेंगे, बल्कि आपको आकर्षक
छात्रवृत्ति मिलने का रास्ता भी सुगम हो जाएगा। अब आईआईटी, आईआईएम या
दीगर किसी यूनिवर्सिटी में पीएचडी के एडमिशन के लिए अगल से इंट्रेंस एग्जाम
देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि देश में अब वन पीएचडी इंट्रेंस एग्जाम फार्मूला लागू
हो गया है।
भारत दुनिया में सबसे तेजी बढ़ते अनुसंधान देशों में से एक है। क्यूएस रिसर्च
वर्ल्ड यूनिवर्सिटी के मुताबिक 2017-2022 के बीच भारत के अनुसंधान उत्पादन में
लगभग 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह वैश्विक औसत के दो गुने से भी अधिक
है, जबकि वैश्विक औसत 22 प्रतिशत है। इसमें भारत के 66 विश्वविद्यालयों को
शुमार किया गया था। चीन, अमेरिका और यूके के बाद दुनिया में भारत का रिसर्च
चौथे पायदान पर है। क्यूएस के मुताबिक भारत ने 2017-2022 के बीच 1.3
मिलियन अकादमिक पेपर्स तैयार किए हैं। इस अवधि में करीब 15 प्रतिशत रिसर्च
पेपर शीर्ष जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। यह खुलासा क्यूएस ने अपनी रैंकिंग में किया
है। अकादमिक पेपर्स में यूनाइटेड किंगडम का आंकडा 1.4 मिलियन है। इसमें कोई
अतिश्योक्ति नहीं होगी, भारत निकट भविष्य में यूके को पीछे छोड़ देगा। यह बात
दीगर है, साइटेशंस में 8.9 मिलियन उद्धरणों के साथ भारत की नौवीं रैंक है।
क्यूएस रिसर्च वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग ने यह रैंकिंग निर्धारित करने के लिए भारत
समेत दुनिया के 93 देशों के 1300 से अधिक विश्वविद्यालयों के डेटा का विश्लेषण
किया। रैंकिंग निर्धारण में अनुसंधान आउटपुट, शिक्षण गुणवत्ता और नियोक्ता
प्रतिष्ठा जैसे कारक शामिल थे। भारत में अनुसंधान का सबसे प्रचुर क्षेत्र
इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी है। इसके बाद प्राकृतिक विज्ञान, जीव विज्ञान और
चिकित्सा का स्थान आता है। भारत दो या अधिक मुल्कों के साथ अपने
अनुसंधान उत्पादन का 19 प्रतिशत उत्पादन करता है। यह वैश्विक औसत पर 21
प्रतिशत है। इसमें कोई शक नहीं है, भारत दुनिया में सबसे तेज ग्रो करने वाला
रिसर्च हब है।
प्रो. श्याम सुंदर भाटिया