जयपुर के पूर्व राजपरिवार के जलेब चौक और उसके आसपास की संपत्ति पर मालिकाना हक जताने के दावे को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। 30 साल पहले पेश किए दावे को खारिज करते हुए जयपुर महानगर द्वितीय की न्यायिक मजिस्ट्रेट उत्तर कोर्ट ने आदेश में कहा.
1994 से चल रहा है केस 1994 में ट्रस्ट ने कोर्ट में दावा पेश करके कहा था कि जलेब चौक में अस्थाई दुकानें उनकी हैं और ये लाइसेंस पर दे रखी हैं। इनका लाइसेंस शुल्क ट्रस्ट में जमा होता है। निगम ने उन्हें हटाने की कार्रवाई की है। ऐसे में निगम को स्थाई रूप से पाबंद किया जाए कि वह ट्रस्ट की संपत्तियों में दखल न दें। इसी मामले पर बुधवार को कोर्ट ने फैसला सुनाया है।
कोवेनेंट का जिक्र कर दावा खारिज करने को कहा
नगर निगम की ओर से एडवोकेट मुकेश जोशी ने पैरवी की। उन्होंने दलील देते हुए कहा- साल 1949 में भारत सरकार और महाराजा सवाई मानसिंह के बीच कोवेनेंट निष्पादित हुआ था। उसमें साफ-साफ लिखा है कि जलेब चौक सहित टाउन हॉल और राजेंद्र हजारी गार्ड बिल्डिंग राज्य सरकार को यूज करने के लिए हैंड ओवर की जाती हैं। वहीं इसकी देखरेख का जिम्मा भी राज्य सरकार के पास ही रहेगा।
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कोवेनेंट में कहीं भी संपत्तियों को पुनः लौटाने या किसी और को हस्तांतरण करने का जिक्र नहीं है। वहीं इस कोवेनेंट को देश की किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
ट्रस्ट की ओर से इसे निजी संपत्ति बताया
ट्रस्ट की ओर से कहा गया कि कोवेनेंट में यह संपत्ति राजपरिवार की निजी संपत्ति बताई गई है। इन्हें राज्य सरकार को केवल इस्तेमाल के लिए लाइसेंस के तौर पर दिया गया था। महाराजा सवाई मानसिंह ने स्वयं ट्रस्ट का गठन 16 अप्रेल 1959 को किया था।
इसके बाद महाराजा ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह ने 30 सितंबर 1972 को जलेब चौक सहित अपनी अन्य संपत्तियां ट्रस्ट में शामिल करते हुए कानूनी रूप से ट्रस्ट डीड निष्पादित की थी। ऐसे में इस संपत्ति पर ट्रस्ट का अधिकार है।
30 साल पुराने मामले में सुनाया फैसला
ट्रस्ट ने 29 जून 1994 को नगर निगम की कार्रवाई के खिलाफ दावा पेश किया था। इसमें कहा गया था कि जलेब चौक और उसके आसपास के भवन ट्रस्ट की संपत्ति है। जलेब चौक की खाली जमीन पर ट्रस्ट द्वारा लाइसेंसी थड़ी-ठेले और अस्थाई दुकानें चल रही है। निगम ने इन्हें नोटिस देकर गलत तरीके से हटाया है। निगम को ट्रस्ट की संपत्ति में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।
इस दावे पर सुनवाई करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट-5 अदालत ने 24 जुलाई 2018 को ट्रस्ट के पक्ष में फैसला दिया था। इसके खिलाफ नगर निगम ने डीजे कोर्ट में अपील की। अपील पर एडीजे-2 कोर्ट ने अधीनस्थ अदालत के फैसले को रद्द करते हुए फिर से सुनवाई के आदेश दिए। इसके बाद दावे पर सुनवाई करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट उत्तर कोर्ट ने दावे को खारिज कर दिया।