ऑपरेशन सिंदूर की सबसे बड़ी सीख ये है कि भारत अब जान गया है कि पाकिस्तान के खिलाफ जंग सिर्फ एक देश के साथ नहीं, बल्कि एक साथ तीन देशों के साथ जंग है। भारत के खिलाफ सिर्फ पाकिस्तान अकेला नहीं, बल्कि तुर्की और चीन भी लड़ रहे थे।
तुर्की और चीन सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि उससे भी कहीं ज्यादा पाकिस्तान की मदद कर रहे थेलेकिन भारत के खिलाफ भारत के दुश्मनों को जितना नेक्सस चलाना हो चला ले। क्योंकि भारत ने अभी ट्रम्प कार्ड खोले ही नहीं है। पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ आंख उठाने की कोशिश की। आतंकवाद के जरिये भारत को भेदने की कोशिश की। भारत ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे दिया। और साफ हो गया कि पाकिस्तान के साथ मिलकर कितने देश भारत का बुरा चाहते हैं। जिस तरीके से पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ आतंकवाद को हथियार बना रखा है।
ऐसा लगता है कि भारत सिर्फ ऑपरेशन सिंदूर तक नहीं रुकने वाला। पाकिस्तान को रोकने के लिए जो भी कोशिश की जा सकती है वो अब भारत करेगा। ताजा घटनाक्रम में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री के साथ भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से सीधी बात हुई है। तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद से यानी 2021 से कभी भी ये डायनमिक देखने को नहीं मिलेगा। ऑपेरशन सिंदूर के तुरंत बाद इस तरह की गतिविधियां हो रही हैं जो इसे अपने आप अहम बना देती हैं।
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जयशंकर और तालिबानी मंत्री में क्या बात हुई?
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी के साथ फोन पर बात की। इस बातचीत में भारत और अफगानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने के कोशिशों का भी जिक्र हुआ। पिछले दिनों पाकिस्तानी सेना ने दावा किया था कि भारत ने अफगानिस्तान को भी मिसाइलों से निशाना बनाया था। भारत ने इसे सिरे से खारिज किया था।
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि उनकी मुत्ताकी के साथ अच्छी बात हुई। जयशंकर ने एक्स पर लिखा कि वह पहलगाम आतंकी हमलों को लेकर उनकी ओर से की गई भर्त्सना को सराहते हैं। साथ ही उन्होंने आधारहीन रिपोर्ट के जरिए दोनों देशों के बीच अविश्वास पैदा करने की कोशिशों को मुत्ताकी की ओर से खारिज किए जाने का स्वागत किया। जयशंकर ने लिखा कि अफगान लोगों के साथ पारंपरिक दोस्ती को रेखांकित किया गया।
इसके साथ ही इस बात पर भी चर्चा हुई कि इस सहयोग को आगे कैसे लेकर जाया जा सकता है। मुत्ताकी ने भारत को एक बड़ी क्षेत्रीय ताकत वताया और जयशंकर के सामने भारत के साथ ऐतिहासिक रिश्तों का भी जिक्र किया। मुत्ताकी ने इलाज और बिजनेस के लिए भारत जाने वाले अफगान नागरिकों के वीजा जारी किए जाने का मामला भी उठाया। वहीं भारतीय जेलों में बंद अफगान नागरिकों की रिहाई और प्रत्यर्पण का मसला भी इस बातचीत में उठाया।
भारत-तालिबान एक दूसरे के करीब आ रहे हैं
2021 में अफ़गानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के बाद से नई दिल्ली इस शासन के प्रति सतर्क रही है, उसे आधिकारिक मान्यता नहीं दी है। हालाँकि, भारत वरिष्ठ राजनयिकों के माध्यम से तालिबान के साथ बातचीत कर रहा है। उदाहरण के लिए, पिछले साल, वरिष्ठ भारतीय राजनयिक जेपी सिंह ने दो बार अफ़गानिस्तान का दौरा किया।
एक बार मार्च में मुत्ताकी से मिलने के लिए और फिर नवंबर में कार्यवाहक रक्षा मंत्री मोहम्मद याकूब मुजाहिद से मिलने के लिए। फिर इस जनवरी में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में आमिर खान मुत्ताकी के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक में वरिष्ठ भारतीय राजनयिकों के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया।
तालिबान सरकार ने भारत के साथ राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत रखने की इच्छा जताई। भारत को एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और आर्थिक शक्ति बताया। कथित तौर पर बातचीत व्यापार का विस्तार करने और ईरान के चाबहार बंदरगाह का लाभ उठाने पर केंद्रित थी, जिसे भारत पाकिस्तान के कराची और ग्वादर बंदरगाहों को बायपास करने के लिए विकसित कर रहा है।
अप्रैल के आखिरी हफ़्ते में दिल्ली ने विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और ईरान के प्रभारी संयुक्त सचिव एम आनंद प्रकाश को काबुल भेजा। उल्लेखनीय है कि यह यात्रा पहलगाम आतंकी हमले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच हुई। हालाँकि, यह पता नहीं चल पाया है कि प्रकाश-मुत्तकी वार्ता में यह मुद्दा उठा या नहीं।
लेकिन साथ ही, अफ़गान विदेश मंत्रालय ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की। इसके प्रवक्ता अब्दुल कहर बल्खी ने कहा कि अफ़गानिस्तान के इस्लामिक अमीरात का विदेश मंत्रालय जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में पर्यटकों पर हाल ही में हुए हमले की कड़ी निंदा करता है और शोक संतप्त परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है।
भारत तालिबान को अपने साथ क्यों ला रहा है
अफ़गानिस्तान के साथ भारत का जुड़ाव रणनीतिक है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि तालिबान के साथ जुड़कर नई दिल्ली पाकिस्तान को दूर रख रही है। जैसा कि द डिप्लोमैट ने बताया है, अगर भारत तालिबान के साथ जुड़ता है, तो इससे भारत को निशाना बनाने वाले आतंकवादियों के प्रवाह को रोकने में मदद मिल सकती है।
पाकिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत अजय बिसारिया भी बताते हैं कि तालिबान के साथ जुड़कर नई दिल्ली एक ऐसा समझौता करने की उम्मीद कर रही है, जिसमें यह सुनिश्चित हो कि अफ़गान धरती का इस्तेमाल किसी भी भारत विरोधी गतिविधि के लिए न किया जाए। चीन फैक्टर भी है। जैसा कि अफगानिस्तान विशेषज्ञ शांति मैरिएट डिसूजा ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारत का लक्ष्य उस क्षेत्र में अपना प्रभाव बहाल करना है, जहां चीन ने अगस्त 2021 से अपनी उपस्थिति काफी बढ़ा दी है। यह देखना बाकी है कि आगे क्या होता है, लेकिन फिलहाल अनिश्चितता सामान्य बात लगती है।
