11 सितंबर को पोर्टलैंड के होटल कम्फर्ट इन का कमरा नंबर 232। सुबह चार बजे अलार्म बजा और आतंकी महमूद अता ने बिस्तर छोड़ दिया। उसने अपने साथी अब्दुल अजीज अल ओमारी को फोन लगाया। इसके बाद उसने शॉवर लिया। अपने पायलटों की तरह दिखने वाली नीले कलर की शर्ट और ब्लैक पैंट पहनी।
इसके बाद उसने अपना लैपटॉप खोला और वसीयत को पढ़ने लगा, जो उसने 11 अप्रैल 1996 को लिखी थी। आतंकी मोहम्मद अता ने वसीयत अरबी में 18 पैराग्राफ में लिखी थी। उसने लिखा था, ‘जब मैं मर जाऊं, तो जो लोग मेरी संपत्ति के वारिस होंगे, वे ये करें। मेरे मरने के बाद जो लोग मेरे शरीर को तैयार करें, वे अच्छे मुसलमान हों।
जो मेरी बॉडी को अंतिम संस्कार के लिए तैयार करें वे प्रार्थना करें कि मैं जन्नत जाऊं। वहां मुझे नए कपड़े मिलें, वो नहीं जिनमें मैं मरा था। मेरे मरने पर कोई रोए, चिल्लाए या छाती नहीं पीटे। कोई मेरे मृत शरीर को चूमे या अलविदा नहीं कहे। मुझे दफनाने वाले अच्छे मुसलमान होना चाहिए। कोई गर्भवती महिला या गंदा व्यक्ति मेरे शरीर के पास भी न आए।
अगर जरूरी न हो तो बहुत सारे लोग मेरे शरीर को नहीं नहलाएं। मेरे गुप्तांग को जो भी धोएगा वो दस्ताने पहने, ताकि उन्हें कोई छू न पाए। अंतिम संस्कार में कोई महिला मेरी कब्र पर न जाए। जो मेरे अंतिम संस्कार में शामिल होंगे वे मेरी कब्र में एक घंटे बैठें, ताकि मैं संगीत का आनंद ले सकूं और जानवरों की बलि दे सकूं।’
हालांकि, मोहम्मद अता की कोई भी मुराद पूरी न हो सकी, क्योंकि उसकी लाश मिली ही नहीं जिसे दफनाया जा सके।
अपनी वसीयत पढ़ने के बाद मोहम्मद अता ने तीन पेज की चिट्ठी पढ़ी। इसमें हिम्मत बढ़ाने वाली जोशीली बातें थीं जो उसे आतंकी संगठन अलकायदा ने सौंपी थी। अरबी में लिखी ये चिट्ठी सभी 19 आतंकियों को दी गई थी। अमेरिकी अधिकारियों को मोहम्मद अता के सूटकेस से ये चिट्ठी मिली थी। इसमें इस्लामी प्रार्थनाएं, जीवन की अंतिम रात के लिए निर्देश और अंतिम ऑपरेशन के लिए चेकलिस्ट थी।
इसमें लिखा था कि मरने की कसम खाएं। बॉडी से एक्स्ट्रा बाल हटा दें। इत्र लगाएं। अगर आप मुश्किल में पड़ जाएं, यानी पकड़े जाएं तो याद रखें जो आपके साथ हो रहा है उसे टाला नहीं जा सकता। अल्लाह ने ये इम्तिहान मौत के बाद आपके जन्नत को एक पायदान बढ़ाने के लिए लिया है। मिशन पर जाने से पहले अपने हथियार की जांच करो। चाकू की धार बहुत तेज होना चाहिए। जब आप किसी को मार रहे तो उस पशु को दिक्कत न हो। यहां इंसान को पशु कहा गया है।
सुबह ग्रुप में नमाज पढ़ें। कन्फ्यूज न दिखें या नर्वस टेंशन के लक्षण न दिखाएं। खुश रहे, शांत रहें, क्योंकि आप एक ऐसे काम की ओर बढ़ रहे हैं जिसे भगवान प्यार करते हैं। वो दिन जल्द आएगा जब आप जन्नत में हूरों के साथ होंगे। जब टकराव शुरू हो तो अल्लाह हु अकबर चिल्लाओ… इससे दुश्मन डर जाएंगे। इनकी गर्दन के ऊपर वार करो। इतना जान लो कि जन्नत के बगीचे अपनी पूरी खूबसूरती के साथ तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। जन्नत की औरतें तुम्हारा इंतजार कर रही हैं। बेहद सुंदर कपड़े पहने हुए हैं और वे तुम्हें पुकार रही हैं।
किस्मत ने साथ दिया- आतंकियों की कोई चेकिंग नहीं हुई
डेढ़ घंटे बाद मोहम्मद अता और ओमारी 5:33 बजे होटल से बिल पे करके बाहर निकले। कुछ ही मिनटों में दोनों पोर्टलैंड एयरपोर्ट पहुंच गए। पोर्टलैंड के टिकट काउंटर पर अता ने एक एजेंट से अपनी अगली उड़ान का बोर्डिंग पास मांगा। यह उड़ान अमेरिकन AA11 थी, जो बोस्टन के लोगान एयरपोर्ट से लॉस एंजिलस के लिए थी।
एजेंट ने कहा कि उन्हें बोस्टन में दोबारा जांच करवाना होगी। ये सुनते ही मोहम्मद अता के चेहरे का भाव बदल गया। एजेंट ने गुस्सा भांपा और बोला सर आपको मामूली जांच से गुजरना होगा। इतना नहीं जितना अभी कर रहे हैं। एजेंट ने देखा कि अता अभी भी गुस्से में है। उसने कहा सर आप अपनी फ्लाइट मिस नहीं करना चाहते तो जल्दी कीजिए। इसके बाद ओमारी और अता टिकट काउंटर से पोर्टलैंड एयरपोर्ट के सिक्योरिटी चेक की तरफ निकल पड़े।
कुछ महीने पहले ही चाकू ले जाने की परमिशन मिली
अता और ओमारी मेटल डिटेक्टर से क्रॉस हुए बिना अंदर आ गए। इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। ये डिटेक्टर बंदूक, चाकू या कोई धातु का पता लगाने के लिए लगाया था। अता ने अपने कंधे से ब्लैक बैग उतारा और एक्सरे मशीन पर रख दिया। अता और ओमारी दोनों चौंक गए कि उन्हें टोका क्यों नहीं गया। जो बैग वे अपने साथ ले गए थे उनकी खोलकर कोई तलाशी नहीं ली गई थी।
दो महीने पहले अता ने दो तेज धार वाले स्विस चाकू और एक टूल किट खरीदा था, जिसमें एक और तेज धार वाला चाकू था। वे पोर्टलैंड या बोस्टन किसी भी एयरपोर्ट पर पकड़े भी जाते तो उनका कुछ नहीं होता। दरअसल कुछ ही माह पूर्व नए नियमों के तहत एयरलाइन के पैंसेजर्स को चार इंच से छोटे ब्लेड वाले चाकू ले जाने की अनुमति दी थी। नियम के तहत सिक्योरिटी चाहती तो चाकू जब्त कर सकती थी, लेकिन अता के मामले में ऐसा नहीं हुआ। जांच के बाद अता और ओमारी बोस्टन के लिए छोटे जेट विमान की सबसे आखिरी वाली सीट पर बैठे।
6:45 पर दोनों की फ्लाइट बोस्टन पहुंची। दोनों टर्मिनल बी की ओर बढ़े। 7:30 पर मोहम्मद अता अपने साथी ओमारी के साथ विमान में चढ़ गया। अता को 8डी और ओमारी को 8जी सीट मिली। इससे पहले अता के तीन अन्य साथी भी पहुंच गए थे। पांचों ने अपनी सीटें ऐसी चुनी थीं कि वे गलियारे तक आसानी से पहुंच सकें। 7:59 बजे विमान ने टेकऑफ किया। फ्लाइट नंबर 11 में 158 पैसेंजर्स बैठ सकते थे, लेकिन 81 सीटें भर पाई थीं। इसमें फर्स्ट क्लास में 9, बिजनेस क्लास में 19 और सामान्य में 53 यात्री थे।
सुरक्षा जांच से बचने के लिए छोटे एयरपोर्ट पहुंचे
आतंकियों को फ्लाइट बोस्टन से ही पकड़नी थी फिर भी वे रातभर कार चलाकर पोर्टलैंड गए और वहां से फिर बोस्टन आए। इसका असली कारण तो उनके साथ मर गया। फिर भी जांचकर्ताओं का मानना था कि मोहम्मद अता ने ये इसलिए किया था, क्योंकि पोर्टलैंड एक छोटा एयरपोर्ट था। यहां सुरक्षा इतनी कड़ी नहीं थी। उनके बैगेज वगैरा आसानी से यही से सीधे बोस्टन एयरपोर्ट जाते और ‘फ्लाइट 11’ में सामान लोड हो जाता।
जैसा आतंकियों ने सोचा था वैसा ही हुआ। अता और अल ओमारी ने पहले स्ट्रिप-मॉल एरिया के पिज्जा हट में खाना खाया। इसके बाद वे 90 मैन मॉल रोड के लो बजट वाले होटल कम्फर्ट इन में ठहरे। यहां इन्हें दूसरी मंजिल पर कमरा नंबर 232 दिया गया।
फ्लाइट नीचे जा रही है, पानी और बिल्डिंग्स नजर आ रही हैं
अपने चाकुओं से पायलटों की हत्या करने के बाद मोहम्मद अता ने खुद विमान की कमान संभाली। इस दौरान एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने एक अस्पष्ट संदेश सुना जिसमें कहा गया कि कोई हिले नहीं। सब ठीक रहेगा। आप आप कुछ हरकत करेंगे तो खुद को और विमान काे खतरे में डालेंगे।
विमान के पिछले हिस्स में फ्लाइट अटेंडेंट एमी स्वीनी ने बोस्टन एयरपोर्ट पर मैनेजर माइकल वुडवर्ड से फोन पर कहा कि विमान डिसबैलेंस हो रहा है। यह न्यूयॉर्क सिटी की ओर मुड़ता दिख रहा है।
8.45 बजे विमान तेजी से न्यूयॉर्क शहर की ओर बढ़ रहा था। एमी स्वीनी मैनेजर माइकल वुडवर्ड से जमीन पर कहती है कि कुछ गड़बड़ है। हम तेजी से नीचे उतर रहे हैं।
मैनेजर उसे खिड़की से बाहर देखने के लिए कहता है, ताकि पता चल सके कि वे कहां हैं। वो कहती है कि मुझे पानी दिखाई देता है। मुझे इमारतें दिखाई देती हैं। हम बहुत, बहुत नीचे उड़ रहे हैं।’ कुछ देर रुकने के बाद, वह धीरे से कहती है ‘हे भगवान। हम बहुत नीचे हैं! मोहम्मद अता 460 मील प्रति घंटे से अधिक की गति से उड़ रही फ्लाइट AA11 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी टॉवर से टकरा देता है। आग का बड़ा गोला दिखाई देता है और चीख पुकार मच जाती है।
मिस्र का नागरिक जिसने हमले के लिए विमान उड़ाना सीखा
मोहम्मद अत्ता का जन्म इजिप्ट के एक धार्मिक मुस्लिम परिवार में हुआ। वह दो बहनों का इकलौता भाई था। उसकी एक बहन डॉक्टर दूसरी प्रोफेसर थी। 1990 में उसने काहिरा यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चरल इंजीनियरिंग की। इसके बाद वह पिता के कहने पर आगे की पढ़ाई के लिए जर्मनी गया। 1992 में मास्टर डिग्री के लिए हैम्बर्ग की टेक्निकल यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। यहां वह कट्टरपंथियों के संपर्क में आया।
अता मस्जिद में ही रहने लगा। उसने दाढ़ी बढ़ा ली। वह इस्लामिक नियमों का कट्टरता से पालन करने लगा। वह अलकायदा के संपर्क में आया। आतंकी ओसामा बिन लादेन उससे इम्प्रेस हुआ। 9/11 में चार हमलों का उसे कमांडर बनाया। हमले की सारी प्लानिंग और जिम्मेदारी अता की थी।
नया पासपोर्ट बनवाया ताकि ट्रैवल हिस्ट्री पता न चले
अमेरिका आने से पहले उसने नया पासपोर्ट बनवाया, ताकि ये पता न चले कि पहले उसने कहां-कहां यात्रा की है। अमेरिका का वीजा लिया और विमान उड़ाने की ट्रेनिंग ली। मार्च 2000 वह अमेरिका आया। उसने अपनी लंबी दाढ़ी मुंडवा ली। वेस्टर्न कपड़े पहनने लगा। मस्जिदों से दूर रहने लगा। वो अमेरिकी होने का नाटक करने लगा।
उसने फ्लोरिडा में विमान उड़ाना सीखा। अता फ्लोरिडा के सस्ते होटल में रह रहा था। उसने होटल मैनेजर से कहा कि हमें 24 घंटे इंटनेट चाहिए। जब मैनेजर ने मना कर दिया तो उसने गुस्से में कहा कि हम यहां एक मिशन पर हैं। आप हमारा टाइम बर्बाद कर रहे हो। मैनेजर ने पूछा कैसा मिशन है इस्लाम का मिशन? तब अता कुछ देर रुका और बोला नहीं-नहीं हम इससे दूर हैं।
इतना कट्टर हो गया था कि केवल आलू उबालकर खाता था
एलए टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार टेरी मैकडरमॉट अपनी किताब ‘परफेक्ट सोल्जर्स: 9/11 हाईजैकर्स: हू दे वर, वाय दे डिड इट’ में लिखते हैं कि अपने लक्ष्य को पाने के आखिरी दिनों में अता ने जिंदगी को बेहद सीमित कर दिया था। वो बेहद जरूरी चीजें ही अपने पास रखता था।
मैकडरमॉट लिखते हैं कि जब मैंने जर्मनी में अता के दोस्तों और रूममेट से बात की तो उन्होंने बताया कि वो वो जिहाद के चक्कर में इतना जुनूनी हो चुका था कि उसे खाना भी पसंद नहीं था। उसे खाना बोरिंग लगता था।
जब भी उसे भूख लगती वह कुछ आलू उबालता, उन्हें मसलता था। इसके बाद उन्हें फ्रिज में एक प्लेट पर ढेर लगा कर छोड़ देता। जब उसे भूख लगती तो वह चम्मच से आलू के ढेर से एक टुकड़ा निकालता और खा लेता। हम कई बार उसे देखकर आश्चर्य करते कि कोई कैसे इतना कम खाकर जिंदा रह सकता है।