रूसी क्रांति के जनक और सोवियत संघ के संस्थापक लेनिन का शव आज भी सुरक्षित है. रूस हर साल अपने इस सबसे बड़े नेता का शव सुरक्षित रखने के लिए काफी रकम खर्च करता है. इसे लोगों के दर्शन के लिए भी रखा जाता है. 22 अप्रैल को 1870 को जन्मे लेनिन का निधन 21 जनवरी 1924 को हुआ था. इसके बाद सौ साल से रूस की बॉडी को क्यों और कैसे संरक्षित रखा गया है, आइए जानने की कोशिश करते हैं.
व्लादिमीर इलिच उल्यानोव उर्फ व्लादिमीर लेनिन जब 16 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था. इससे पूरे घर के पालन-पोषण की जिम्मेदारी लेनिन पर आ गई थी. अगले ही साल 1887 में बड़े भाई का साया भी उनके सिर से हट गया. रूस के तानाशाह जार की हत्या रचने वालों में शामिल होने का आरोप लगाकर उनको फांसी दे दी गई थी.
इस घटना के बाद लेनिन भी रूस की क्रांतिकारी समाजवादी राजनीति के करीब होते गए और जार के शासन के खिलाफ हो गए. जार का विरोध करने का नतीजा यह हुआ कि उनको कजन इंपीरियल यूनिवर्सिटी से निष्कासित कर दिया गया.
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निर्वासन के दौरान की थी शादी
साल 1893 में लेनिन सेंट पीटर्सबर्ग चले गए. वहां एक बड़े मार्क्सवादी कार्यकर्ता के रूप में उभरे. साल 1897 में जार ने उन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. तीन सालों के लिए लेनिन को निर्वासित कर दिया गया. निर्वासन के दौरान ही उन्होंने नाडेज्डा कृपकाया के साथ शादी कर ली. इसी दौरान पश्चिमी यूरोप भी गए और मार्क्सवादी रूसी सामाजिक डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी (आरएसडीएलपी) में नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरे.
1905 की क्रांति की असफलता के बाद भी जारी रखा अभियान
यह रूस में हुई 1905 की क्रांति की बात है. जब यह क्रांति विफल हो गई तो भी लेनिन ने जार शासन के खिलाफ झंडा बुलंद रखा. पहले विश्व युद्ध के समय लेनिन ने एक अभियान चला कर यूरोप में सर्वहारा वर्ग के खिलाफ क्रांति का सूत्रपात किया. उनका मानना था कि इसके कारण रूस में पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने के साथ ही समाजवाद की स्थापना में मदद मिलेगी. हुआ भी ऐसा ही.
जार शासन के अंत के बाद संभाली देश की बागडोर
साल 1917 की रूसी क्रांति या बोल्शेविक क्रांति की सफलता के बाद रूस में जार के शासन का अंत हो गया. इसके बाद वहां अंतरिम सरकार बनी और लेनिन ने रूस की कमान संभाल ली. वह साल 1917 से 1924 तक रूस के मुखिया रहे. उन्हीं के समय में सोवियत संघ का गठन हुआ और साल 1922 से 1924 तक वह सोवियत संघ के हेड ऑफ गवर्नमेंट रहे.
जानलेवा हमले के बाद तबीयत नहीं सुधरी
यह 1918 की बात है. लेनिन पर जानलेवा हमला हुआ था, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इसके कारण उनकी सेहत में सुधार होने के बजाय तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई. साल 1922 में सोवियत संघ का गठन हुआ और उसी साल उन्हें जबरदस्त स्ट्रोक पड़ा. रूस के गोर्की शहर में रह रहे लेनिन के आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया. वह बोलने में भी दिक्कत महसूस करते थे. इसी हाल में 21 जनवरी 1924 को उन्होंने हमेशा के लिए आंखें बंद कर लीं.
श्रद्धांजलि देने के लिए दो महीने लगा रहा तांता
लेनिन के निधन के दो दिन बाद उनका पार्थिव शरीर विशेष ट्रेन से गोर्की से मास्को पहुंचाया गया. मास्को में रेड स्क्वायर पर उनका ताबूत लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया. रूस की खून जमा देने वाली सर्दी के बावजूद जार के शासन से मुक्ति दिलाने वाले इस नेता के दर्शन के लिए लाखों लोग उमड़ पड़े.
उनको श्रद्धांजलि देने वाले कम ही नहीं हो रहे थे. दो महीने तक लगातार उतनी ही भीड़ उमड़ती रही, जितनी पहले दिन थी. इसको देख कर सोवियत संघ के तत्कालीन नेताओं ने निर्णय लिया कि कुछ समय के लिए उनके शव को संरक्षित कर दिया जाए. इससे लोगों को उनके अंतिम दर्शन का मौका मिलता रहेगा.
पहले ही कर लिया गया था तय!
बताया तो यह भी जाता है कि सोवियत संघ के बड़े नेताओं ने पहले ही तय कर लिया था कि लेनिन की मौत के बाद उनके शव को संरक्षित रखा जाएगा. वास्तव में साल 1923 में सोवियत संघ में हुई एक गोपनीय बैठक में चर्चा हुई थी कि देश के सबसे बड़े नेता लेनिन का निधन होने पर उनके पार्थिव शरीर का क्या किया जाएगा. जोजेफ स्टालिन तब सोवियत संघ के मुखिया थे. उन्होंने ही प्रस्ताव रखा था कि लेनिन का शव संरक्षित कर लिया जाए, जिससे पीढ़ियों को उनके बारे में जानकारी मिलती रहे. हालांकि, तब कुछ नेताओं ने इसका विरोध भी किया था.
यह विरोध उस वक्त कमजोर पड़ गया, जब लेनिन की मौक के बाद उनकी लोकप्रियता का पता चला. लोगों की भीड़ अपने इस नेता के दर्शन के लिए इस कदर उमड़ती रही कि कुछ समय के लिए शव को संरक्षित करना ही पड़ा. हालांकि, लेनिन की पत्नी नेज्दका क्रुप्सकाया ऐसा नहीं चाहती थीं. उनकी इच्छा थी कि लेनिन के शव को दफन कर दिया जाए पर स्टालिन ने शव को संरक्षित करवा दिया.
इस तरह से रखा जाता है संरक्षित
लेनिन का शव शुरू में कुछ समय के लिए संरक्षित करने की जिम्मेदारी दो शरीर संरचना विशेषज्ञों व्लादीमीर वोरोबीव और बॉयोकेमिस्ट बोरिस जबरस्की को दी गई थी. वे दोनों इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स के वैज्ञानिक थे. उन्होंने मार्च 1924 में लेनिन के शव पर एक लेप लगाया. इससे जुलाई 1924 तक लेनिन का शव संरक्षित रहा. फिर शव को संरक्षित करने के लिए नए-नए तरीके खोजे जाते रहे. स्टालिन के पूरे शासन काल में यह प्रक्रिया चलती रही.
हालांकि, स्टालिन के बाद भी किसी ने लेनिन का शव दफनाने के बारे में नहीं सोचा. तब से अब तक हर साल लेनिन के शव पर एक बार खास लेप लगाया जाता है. इसकी प्रक्रिया पूरी होने से 15 से 30 दिन लगते हैं. इसके बाद शव साल भर संरक्षित रहता है.
जहां अंतिम दर्शन को रखा शव, वहीं बना म्यूजियम
इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स के वैज्ञानिकों ने अब तो ऐसी तकनीक विकसित कर ली है कि लेनिन के शव की त्वचा की रंगत भी निखर आई है. मॉस्को के उसी रेड स्क्वायर पर लेनिन म्यूजियम बनाकर शव रखा गया है, जहां निधन के बाद पहली बार अंतिम दर्शन को रखा गया था. यहां शव की देखरेख मॉस्को के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स के पांच-छह वैज्ञानिकों का एक समूह करता है. इनमें बॉयोकेमिस्ट से लेकर सर्जन और शरीर संरचना विशेषज्ञ तक शामिल हैं. लेनिन के लिए बेहद बारीक रबर का एक खास सूट भी बनाया गया है.
