जनता जब मैंडेट देती है, तो बेशुमार ताकत आ ही जाती है. राहुल गांधी भले अखिलेश यादव सहित विपक्ष के नेताओं को साथ लेकर इंडिया गठबंधन को सत्ता न दिला पाये हों, लेकिन इतनी राजनीतिक एनर्जी तो हासिल कर ही ली है कि सड़क से संसद तक मजबूती से मैदान में डटे रहें.
हो सकता है राहुल गांधी के ताजा आक्रामक रूख को बीजेपी नेतृत्व नई लांचिंग करार दे, लेकिन विपक्ष के नेता का तेवर बीजेपी के लिए बर्दाश्त के बाहर होने लगा है – और मोदी-शाह से लेकर बीजेपी के तमाम बड़े बड़े दिग्गजों के लिए राहुल गांधी को रोक पाना काफी मुश्किल हो रहा है.
लगातार 10 साल तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के हमलावर रुख ने कांग्रेस नेतृत्व के लिए चैन की सांस ले पाना भी मुश्किल होने लगा था, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों की बदौलत तो लगता है बीजेपी का कांग्रेस मुक्त अभियान ही औंधे मुंह लुढ़क गया है.
खास बात ये है कि कांग्रेस की नई रणनीति में राहुल गांधी और उनके साथियों के निशाने पर बीजेपी के वही एजेंडे हैं, जिनकी बदौलत केंद्र में सत्ताधारी पार्टी अब तक ज्यादातर चुनाव जीतती रही है, और लगातार हार की वजह से विपक्ष हाशिये की तरफ फिसलता जा रहा था, लेकिन लोगों ने इस बार चुनाव में विपक्ष को हवा का रुख बदलने की ताकत से नवाज दिया – और राहुल गांधी, अखिलेश यादव से लेकर महुआ मोइत्रा तक मौके का भरपूर फायदा उठा रहे हैं.
1. कांग्रेस के निशाने पर बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा
बीजेपी को अयोध्या की हार बहुत भारी पड़ रही है. फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद के कंधे पर बंदूक रख कर राहुल गांधी, अखिलेश यादव के साथ मिलकर संसद सत्र के पहले ही दिन से आक्रामक हैं – और वैसे ही राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे भी दहाड़ने लगे हैं. जब पैर का दर्द बार बार उनको परेशान करता है, तो थोड़ा रुक कर वो फिर से फायरिंग चालू कर देते हैं.
लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान तो राहुल गांधी ऐसे तरन्नुम में नजर आये कि सत्ता पक्ष को कुछ सूझ ही नहीं रहा था. राहुल गांधी के निशाने पर तो हमेशा की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नजर आ रहे थे, लेकिन उनके बहाने ही वो स्पीकर ओम बिरला को भी नहीं बख्श रहे थे. स्पीकर ओम बिरला पर माइक बंद करने को लेकर सवाल पूछने से लेकर मोदी के सामने झुकने तक पर सवाल दाग रहे थे.
राहुल गांधी पूरी महफिल अकेले न लूट लें, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के अलावा भी राजनाथ सिंह और शिवराज सिंह चौहान जैसे सीनियर मंत्रियों को खड़े होकर रिएक्शन देना पड़ रहा था – लेकिन उसमें से भी राहुल गांधी अपने आक्रमण के लिए जरूरी चीजें निकाल ले रहे थे.
जब हिंसा और नफरत से हिंदुत्व को जोड़ने पर सत्ता पक्ष ने काउंटर करने की कोशिश की, तो राहुल गांधी कहने लगे मोदी, बीजेपी या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही पूरा हिंदू समाज नहीं है, और पूरी मोदी सरकार को काफी देर तक मन की बात सुनाते रहे.
राहुल गांधी ने हिंदुत्व की नई व्याख्या पेश की, जो उनके पहले वाले हिंदू-हिंदुत्व-हिंदूवादी वाले स्टैंड से काफी अलग रहा. असल में पहले राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व को लेकर आगे बढ़ रहे थे, लेकिन अयोध्या में राम मंदिर उद्धाटन का बहिष्कार करने और एवज में अयोध्या की सीट समाजवादी पार्टी के जीत लेने के बाद से पूरी रणनीति बदल डाली है.
असल में बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे की धार अयोध्या की हार ने कुंद कर दी है. यही वजह है कि राहुल गांधी हद से ज्यादा आक्रामक हो गये हैं, और बीजेपी नेतृत्व के लिए आसानी से काउंटर करना मुश्किल हो रहा है.
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2. बीजेपी का राष्ट्रवाद भी कांग्रेस के निशाने पर
जैसे हिंदुत्व में कांग्रेस ने विपक्ष को साथ लेकर अयोध्या के जरिये सेंधमारी कर ली है, ठीक वैसे ही अग्निवीर स्कीम को भी निशाने पर ले लिया है. लोकसभा चुनाव के दौरान अग्निवीर योजना को मुद्दा बनाने में सफल रहा इंडिया गठबंधन अब उसे भुनाने की भरपूर कोशिश कर रहा है. चुनावों के दौरान राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव तक अपनी रैलियों में कह रहे थे कि सत्ता में आने पर वे अग्निवीर योजना खत्म कर देंगे.
संसद में राहुल गांधी का इल्जाम है कि मोदी सरकार अग्निवीरों को ‘यूज-एंड-थ्रो मजदूर’ की तरह इस्तेमाल कर रही है. राहुल गांधी के इस आरोप पर कि अग्निवीरों को न शहीद का दर्जा दिया जाता है, न सेना के जवानों की तरह कोई मदद – रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह खारिज करते हैं, और सरकार सरकार क्या करती है समझाने की कोशिश करते हैं. सरकार की तरफ से बताया जाता है कि अग्निवीर के परिवार को एक करोड़ रुपये की मदद दी जाती है.
अग्निवीर योजना को लेकर युवाओं के गुस्से का राहुल गांधी हर संभव फायदा उठा रहे हैं, और यही वजह है कि अग्निवीर योजना की आलोचना को सेना से जोड़ने के आरोपों का कांग्रेस नेता पर कोई खास असर नहीं होता. राहुल गांधी ये समझाने की कोशिश करते हैं कि अग्निवीर योजना सेना की नहीं बल्कि सिर्फ मोदी के मन की योजना है.
जो बीजेपी राष्ट्रवाद के नाम पर कांग्रेस को कभी भी तपाक से कठघरे में खड़ा कर दिया करती थी, वही बीजेपी नेता राहुल गांधी को अग्निवीर के नाम पर चुप कराने के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं.
3. कांग्रेस के निशाने पर बीजेपी राज का भ्रष्टाचार
2014 में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने सबसे बड़ी भूमिका भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे की रही. यूपीए 2 के आखिरी दौर में अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे को आगे करके रामलीला मैदान में आंदोलन खड़ा किया, और लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उसका पूरा फायदा उठा लिया.
तब से लेकर 2024 के आम चुनाव तक बीजेपी कांग्रेस और साथियों को भ्रष्टाचारी बताकर धावा बोल देती रही. राहुल गांधी और सोनिया गांधी के नेशनल हेराल्ड केस में जमानत पर होने, और ईडी की पूछताछ से लेकर अरविंद केजरीवाल को जेल भेजे जाने तक, ऐसे सभी मामलों को बीजेपी चोरों के खिलाफ मोदी सरकार के एक्शन के रूप में प्रोजेक्ट करती रही है.
लेकिन अब ये रणनीति बेअसर होने लगी है – और सबसे बड़ी वजह है NEET-UG पेपर लीक केस.
पेपर लीक के मुद्दे पर भी मोदी सरकार बुरी तरह घिरी हुई है. शुरू में तो केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अपनी तरफ से पूरे मामले को ही खारिज करने की कोशिश की, लेकिन छात्रों के विरोध प्रदर्शन और आरोपियों की गिरफ्तारी के चलते मामला तेजी से तूल पकड़ लिया – और एनटीए के प्रमुख को हटाने के साथ ही हाई लेवल जांच कमेटी की घोषणा करनी पड़ी.
बीजेपी के रणनीतिकारों को भी अब ये समझ आ चुका है कि स्पीकर के चुनाव के ठीक बाद इमरजेंसी के मुद्दे पर मौन धारण कर लेने और निंदा करने से अब काम नहीं चलने वाला है – और विपक्ष नीट पेपर लीक का मामला यूं ही नहीं जाने देने वाला है.
हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के साथ कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा अब बीजेपी पर ही बैकफायर करने लगा है – ऐसे में राहुल गांधी और उनके साथियों को रोकने के लिए टीम मोदी को भी नये सिरे से रणनीति बनानी होगी, क्योंकि कांग्रेस मुक्त भारत की मुहिम हाल फिलहाल तो आगे बढ़ने से रही.