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September 6, 2025 8:19 am

जब मोदी PM कैंडिडेट बने तो नीतीश भड़क गए: BJP को किस नेता से ज्यादा खतरा, चंद्रबाबू नायडू ने मोदी को आतंकवादी कहा था….

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नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ ऐसे आक्रामक बयान देने वाले नायडू और नीतीश दोनों का रुख बदल चुका है। 2024 में बिना किसी हिचकिचाहट के दोनों नेताओं ने बीजेपी के साथ प्री-पोल अलायंस किया। नतीजों में बीजेपी बहुमत से 32 सीटें पीछे रह गई। अब दोनों किंगमेकर की भूमिका में हैं।

आया जी नीतीशवा? पता लगाओ कहां है? 12 जून 1994 की सुबह पटना में अणे मार्ग यानी मुख्यमंत्री निवास में धूप सेंक रहे बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रौबदार आवाज में ये सवाल अपने सिपाही से पूछा।

दरअसल, इस दिन पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में लालू के खिलाफ कुर्मी चेतना रैली होने जा रही थी। लालू को आशंका थी कि नीतीश कुमार बगावत करके उस रैली में शामिल हो सकते हैं। लालू की टेंशन इसलिए बढ़ रही थी क्योंकि नीतीश की मदद से ही लालू प्रसाद, रामसुंदर दास को पछाड़कर 1990 में पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन अब नीतीश की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागने लगी थी।

लालू को जिसका डर था, हुआ भी कुछ वैसा ही। दोपहर करीब 3 बजे नीतीश कुर्मी चेतना रैली के मंच पर पहुंचे और लालू को ललकारते हुए बोले, जो सरकार हमारे हितों को नजरअंदाज करती है, वो सरकार सत्ता में रह नहीं सकती। हमें भीख नहीं, हिस्सेदारी चाहिए।

इसके बाद ही नीतीश और लालू का सालों पुराना रिश्ता टूट गया और यहां से शुरू होती है राजनीति में पलटने के लिए मशहूर नीतीश कुमार के बीजेपी से करीब होने की कहानी…

नजदीकीः 28 साल पहले नीतीश ने पहली बार थामा बीजेपी का दामन

नीतीश ने समाजवादी आंदोलन के प्रमुख नेता जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी बना ली। दूसरी तरफ 1996 में बीजेपी को भी सहयोगियों की तलाश थी। दोनों ने हाथ मिला लिया। अटल सरकार में नीतीश को रेल मंत्री बनाया गया। NDA की बदौलत ही नीतीश साल 2000 में पहली बार 7 दिनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने।

फरवरी 2004। पटना में एक नए रेलवे स्टेशन के शिलान्यास समारोह में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के साथ रेल मंत्री नीतीश कुमार।

2003 में नीतीश की समता पार्टी और शरद यादव के जनता दल का विलय हुआ और नई पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) यानी JDU बनी। फिर JDU और बीजेपी का गठबंधन बना। नीतीश 2005 और 2010 में बिहार के एक बार फिर से सीएम बने।

दूरीः 2010 में एक विज्ञापन से नाराजगी बढ़ी, 2013 में रास्ते अलग

पटना में साल 2010 में NDA गठबंधन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। बैठक में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। अगले दिन के अखबारों में बीजेपी ने नीतीश और मोदी की एक-दूसरे का हाथ ऊपर उठाए हुए फोटो को विज्ञापन के तौर पर पूरे पेज में छपवाया। नीतीश ने इस पर ऐतराज जताया।

नीतीश ने इस पर एतराज जताया और NDA के रात्रिभोज कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि वो 2008 के बिहार बाढ़ राहत के लिए गुजरात सरकार द्वारा दिए गए 5 करोड़ रुपए वापस कर देंगे।

10 मई 2009। पंजाब के लुधियाना में एनडीए की रैली में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार।

NDA ने 2014 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री कैंडिडेट घोषित किया। नाराज होकर नीतीश कुमार ने 16 जून 2013 को 17 साल से बीजेपी के साथ चला आ रहा गठबंधन तोड़ दिया।

नीतीश ने उस समय कहा कि गठबंधन का नेता एक ‘स्वच्छ और धर्मनिरपेक्ष छवि’ वाला होना चाहिए। आगे कहा कि मैंने जब बीजेपी में भरोसा किया था, वो अटल जी का युग था। अब पार्टी का नया अवतार हो चुका है। नीतीश ने यह भी कहा, ‘मिट्टी में मिल जाएंगे, भाजपा के साथ वापस नहीं जाएंगे।’

JDU ने 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा और दो सीटों पर सिमट गई। BJP को 22 सीटें मिलीं। नीतीश कुमार ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।

11 अगस्त 2014। बिहार में एक चुनावी रैली में मंच पर राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जदयू नेता नीतीश कुमार गले मिलते हुए। दो दशकों में यह पहली बार था जब दोनों नेता एक ही आधिकारिक मंच पर साथ दिखे।

नजदीकीः 2017 में वापस NDA में लौटे, पीएम मोदी ने स्वागत किया

26 जुलाई 2017 को नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गए। रातों-रात उन्होंने NDA के साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बने। नीतीश के बीजेपी में शामिल होने के बाद लालू प्रसाद यादव ने कहा, ‘नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के पलटू राम हैं। उन्होंने फिर से साबित कर दिया कि वो सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं।’

वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने इस पर नीतीश कुमार को बधाई देते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जुड़ने के लिए नीतीश कुमार जी को बहुत-बहुत बधाई, सवा सौ करोड़ नागरिक ईमानदारी का स्वागत और समर्थन कर रहे हैं।’

बीजेपी के साथ जाने का फायदा नीतीश कुमार को 2019 के चुनाव में भी मिला। उनकी पार्टी JDU ने 16 सीटों पर जीत हासिल की जबकि बीजेपी को 17 सीटें मिलीं।

दूरीः 2022 में फिर पलटी मारी, कहा- मरना कबूल, बीजेपी का साथ नहीं

2022 में पटना स्थित अपने निवास में JDU विधायक दल की बैठक के दौरान नीतीश ने कहा कि बीजेपी ने हमें खत्म करने की साजिश रची। बीजेपी ने हमें अपमानित किया और लगातार पार्टी को कमजोर करने की कोशिश की। 9 अगस्त 2022 को नीतीश ने भाजपा के नेतृत्व वाले NDA के साथ अपना गठबंधन खत्म कर दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने RJD, कांग्रेस और अन्य पार्टियों के साथ मिलकर 164 विधायकों की एक टीम बनाकर नई सरकार बनाई। तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम बनाया गया और खुद 8वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

नीतीश कुमार ने 2022 में बीजेपी को छोड़ राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हो गए।

NDA से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने विपक्षी गठबंधन INDIA को बनाने में भी नीतीश ने अहम भूमिका निभाई। 30 जनवरी 2023 को नीतीश कुमार ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, ‘मर जाना कबूल है, लेकिन उनके साथ जाना हमें कभी कबूल नहीं है।’

अप्रैल 2023 में अमित शाह ने कहा था कि एक बात स्पष्ट कह देता हूं, किसी के मन में अगर ये संशय हो कि चुनाव के परिणामों के बाद नीतीश बाबू को फिर से भाजपा NDA में लेगी, तो मैं बिहार की जनता को स्पष्ट कह देना चाहता हूं और ललन बाबू को भी स्पष्ट कह देना चाहता हूं, आप लोगों के लिए भाजपा के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं।

नजदीकीः 2024 चुनाव से पहले फिर पलटी मारी और किंगमेकर बने

इंडिया गठबंधन बनाने में नीतीश की अहम भूमिका थी, लेकिन कांग्रेस, आप, टीएमसी जैसे दलों को ज्यादा तवज्जो मिल रही थी। नीतीश के इंटरनल सर्वे में भी NDA के साथ चुनाव लड़ने में फायदे का पता लगा। इन तमाम समीकरणों के बीच नीतीश कुमार ने जनवरी 2024 में कांग्रेस वाले महागठबंधन से नाता तोड़ लिया।

नीतीश कुमार ने कहा कि ‘सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था, इसलिए ये निर्णय लिया। थोड़ी परेशानी थी। हम देख रहे थे। हमने नया गठबंधन डेढ साल से बनाया था, लेकिन इधर आकर स्थिति ठीक नहीं थी। सबकी बात सुनकर हमने फैसला लिया है।’6 जून 2024। पीएम आवास में NDA गठबंधन की बैठक के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू।

चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक पारी 1970 के दशक में कांग्रेस के साथ हुई थी। कॉलेज के दिनों में नायडू नेशनल यूथ कांग्रेस से जुड़े। 1978 में कांग्रेस के टिकट से चंद्रगिरी सीट से पहली बार विधायक बने। उस समय 28 साल के नायडू सबसे कम उम्र के विधायक थे। इस दौरान नायडू सिनेमेटोग्राफी मंत्री के तौर पर तेलुगु सिनेमा के स्टार एनटी रामा राव से मिले। रिश्ते इतने मजबूत हो गए कि नायडू ने 1981 में एनटीआर की दूसरी बेटी से शादी कर ली।

1986 में नायडू को TDP का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया। 1989 में नायडू ने चुनाव जीता। एनटीआर का तख्तापलट करने के बाद 1 सितंबर 1995 को 45 वर्ष की उम्र में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राज्य ही नहीं, राष्ट्रीय राजनीति में भी नायडू का दबदबा दिखने को मिल रहा था। उन्हें 13 पार्टियों वाले संयुक्त मोर्चे का संयोजक बनाया गया।

नजदीकीः नायडू ने बाहर से समर्थन किया तब वाजपेयी बने प्रधानमंत्री

1998 देश की राजनीति का वो दौर था जब बीजेपी ने कांग्रेस विरोधी पार्टियों को एकजुट करके NDA गठबंधन बनाया। इसका फायदा बीजेपी को मिला और अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। उस समय TDP ने बाहर से समर्थन दिया। 1999 के चुनाव से पहले ही वाजपेयी और नायडू के बीच में समर्थन को लेकर डील हो चुकी थी। चुनाव के बाद TDP ने NDA गठबंधन को समर्थन दिया।

9 जुलाई 1999। नई दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू।

1999 के लोकसभा चुनाव में TDP ने आंध्र प्रदेश की 42 में से 29 सीटों पर जीत हासिल की। उस समय संख्या के मामले में TDP बीजेपी को समर्थन करने वाली सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन TDP सरकार में शामिल नहीं हुई।

2018 में अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद उन्हें याद करते हुए चंद्रबाबू नायडू ने कहा था कि 1999 में वाजपेयी ने उन्हें 8 कैबिनेट सीटों का ऑफर किया था, लेकिन TDP ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से दूर रहने का फैसला लिया और NDA की सरकार को बाहर से समर्थन दिया।

दूरीः गुजरात दंगों के बाद नायडू ने मांगा मुख्यमंत्री मोदी का इस्तीफा

TDP के सहयोग से ही वाजपेयी 2004 तक देश के प्रधानमंत्री बने रहे। इसी दौरान चंद्रबाबू नायडू जोर-शोर से सेक्युलरिज्म की वकालत करने लगे। 2002 में गुजरात में हुए साम्प्रदायिक दंगों के बाद नायडू ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का इस्तीफा मांगा। हालांकि उस वक्त BJP ने कहा कि सहयोगियों की किसी भी तरह की बकवास को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

हालांकि नायडू ने धैर्य रखते हुए उस समय कोई सख्त निर्णय नहीं लिया। बीजेपी के मुख्य सचेतक वीके मल्होत्रा ​​ने कहा- बीजेपी NDA के सहयोगियों की बात एक हद तक ही सुनेगी। उस समय आंध्र प्रदेश के मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि नायडू बिना कपड़ों के किंगमेकर हैं।

तमाम विवाद के बाद भी TDP ने 2004 का विधानसभा और लोकसभा चुनाव NDA के साथ मिलकर ही लड़ा। राज्य और केंद्र दोनों में करारी हार मिली। कांग्रेस पार्टी ने 185 सीटें जीतीं जबकि TDP केवल 47 सीटों पर ही सिमट गई जो पार्टी के चुनावी इतिहास में अब तक की सबसे कम सीटें थीं। वहीं लोकसभा में भी पार्टी 42 में से केवल 5 सीटों पर सिमट गई।

6 जून 2002। नई दिल्ली में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनके आवास पर एक बैठक के दौरान टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू।

चुनाव हारने का असर ये हुआ कि नायडू ने गुजरात दंगों और अन्य मुद्दों का हवाला देते हुए NDA का दामन छोड़ दिया। नायडू ने इस दौरान कहा कि गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों का आंध्र प्रदेश में हम पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। 1999 में राज्य के सभी मुस्लिमों ने हमें वोट दिया था। गुजरात दंगों की वजह से 2004 में ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने पहले ही बताया था कि गुजरात मुद्दे पर TDP और बीजेपी के बीच मतभेद बने हुए हैं।

नजदीकीः 2013 में एक बार फिर नायडू ने थामा बीजेपी का हाथ

2013 में नई दिल्ली में नायडू और मोदी के बीच एक बैठक हुई। इसमें बीजेपी और TDP ने साथ चुनाव लड़ने का फैसला लिया। दरअसल, 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर नया राज्य तेलंगाना बना। नए राज्य में नायडू को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। इस दौरान नायडू की TDP ने बीजेपी और पवन कल्याण की जनसेना के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने का फैसला लिया। उनके इस फैसले पर नरेंद्र मोदी ने कहा- मोदी, नायडू और पवन ‘वन प्लस वन प्लस वन’ एक तीन नहीं बल्कि 111 हैं।

20 मई 2014। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और एनडी के सहयोगी दलों के नेता।

2014 के आम चुनाव में पार्टी ने 16 सीटें जीतीं और वोट शेयर भी 40% से ज्यादा रहा। वहीं राज्य विधानसभा चुनाव में नायडू के नेतृत्व में पार्टी ने 175 में से 102 सीटें जीतीं। वहीं बीजेपी ने 2% वोट के साथ दो लोकसभा सीटें जीतीं। TDP को केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह मिली। जबकि बीजेपी के विधायकों को नायडू सरकार में मंत्री बनाया गया।

दूरीः 2017 में गहरी हुई दरार, नायडू ने NDA छोड़ा

अगस्त 2017 में वेंकैया नायडू को सरकार से हटाकर उपराष्ट्रपति बना दिया गया। इससे वेंकैया नायडू आंध्र प्रदेश की राजनीति से बाहर हो गए। 2014 में TDP का NDA के साथ चुनाव लड़ने की एक वजह वेंकैया नायडू भी थे, लेकिन बीजेपी ने राज्य में खुद की पकड़ बनाने के लिए यह फैसला लिया। वेंकैया नायडू नई दिल्ली में चंद्रबाबू नायडू के सबसे भरोसेमंद व्यक्ति थे और वेंकैया के जाने के बाद सत्ता के गलियारों में आंध्र के मुख्यमंत्री का दबदबा कम हो गया।यह दरार और गहरी हो गई, क्योंकि नायडू को पूरे एक साल तक प्रधानमंत्री से मिलने का समय नहीं मिला।

उधर पवन कल्याण ने नायडू के बेटे नारा लोकेश के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जिससे TDP को लगने लगा कि उनके खिलाफ ये सब कहानी बीजेपी ने लिखी है।

नायडू ने 2018 में आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग जोर-शोर से उठाई। यहां तक कि मोदी सरकार में अपने दोनों नेताओं को भी वापस ले लिया। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने की वजह से भी TDP ने NDA गठबंधन से किनारा कर लिया। इस मुद्दे पर नायडू ने दिल्ली में ‘धर्म पोराता दीक्षा’ के नाम से जानी जाने वाली भूख हड़ताल की और इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की आलोचना की। NDA से अलग होने के बाद TDP ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। हालांकि ये प्रस्ताव खारिज हो गया।

मार्च 2018 में चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने मोदी सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पास किया था। आंध्र प्रदेश विधानसभा में नायडू ने इसकी जानकारी दी थी।

2018 में तेलंगाना विधानसभा में TDP के महज 2 विधायक रह गए थे। जबकि 2019 के चुनाव में आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव में टीडीपी केवल 23 सीटों पर सिमट गई। जगनमोहन रेड्डी की सरकार आने के बाद TDP राज्य में पंचायत, नगरपालिका, उपचुनाव समेत सभी चुनाव हार गई।

पीएम मोदी ने गठबंधन से अलग होने पर नायडू को यू-टर्न बाबू कहा था। 2019 की एक चुनावी रैली में 2002 गुजरात दंगों का जिक्र करते हुए नायडू ने कहा, ‘मैं पहला व्यक्ति था, जिसने उनका इस्तीफा मांगा था। इसके बाद कई देशों ने उनकी एंट्री पर बैन लगा दिया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद वो एक बार फिर अल्पसंख्यकों पर हमला करने की कोशिश कर रहे हैं।’

फरवरी 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि नायडू के लिए NDA के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। उन्होंने नायडू को ‘यू-टर्न सीएम’ करार दिया था।

फरवरी 2019। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर दिल्ली में भूख हड़ताल की।

चंद्रबाबू ने एक चुनावी रैली में कहा- नरेंद्र मोदी एक कट्टर आतंकवादी हैं। वह एक अच्छे व्यक्ति नहीं हैं। मैं यहां मौजूद अल्पसंख्यक भाइयों से केवल एक बात की विनती करता हूं। अगर आप मोदी को वोट देंगे, तो कई समस्याएं पैदा होंगी।

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नजदीकीः फरवरी 2024 में वापस NDA में शामिल हुई TDP

21 दिसंबर 2022 को पार्टी कैडर में जोश भरने के लिए तेलंगाना की खम्मम में एक जनसभा का आयोजन किया गया। चंद्रबाबू नायडू ने पार्टी छोड़ अन्य दलों में शामिल होने वाले नेताओं को वापस आने की बात कही। 2018 के बाद यह पहली बार था जब TDP ने तेलंगाना में शक्ति प्रदर्शन किया।

पिछले साल 73 साल के नायडू को लगा कि उनका राजनीतिक करियर खत्म हो सकता है। एक रैली के दौरान वोटर्स से भावनात्मक अपील करते हुए उन्होंने कहा- अगर TDP सत्ता में नहीं आती है तो 2024 मेरा आखिरी चुनाव होगा।

जून 2023 में पांच साल में नायडू ने पहली बार अमित शाह से मुलाकात की। एक्टर से राजनेता बने पवन कल्याण ने भी मोदी और नायडू को साथ लाने का काम किया। 2024 के चुनाव के एक महीने पहले मार्च में TDP एनडीए में शामिल हो गई।

बीजेपी के साथ हाथ मिलाना TDP के लिए सही साबित हुआ। आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में 175 में से 135 सीटों पर उसे जीत मिली और 16 लोकसभा सीटें भी उसकी झोली में आईं। ऐसे में नायडू भी किंग मेकर की भूमिका में हैं। देखना दिलचस्प होगा कि उनका लव-हेट रिलेशन आगे क्या रुख अख्तियार करता है।

Seema Reporter
Author: Seema Reporter

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