
“हे दुनिया के लोगों ! सत्यत: तुम जानो कि एक आदृश्य विपत्ति तुम्हारा पीछा कर रही है और घोर यातना तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है।

है बांधवो! परस्पर सहनशील रहो और हीन वस्तुओं में अनुराग न रखो। अपनी समृद्धि का अहंकार न करो और अनादर में लज्जित न हो। मेरे

हे बांधवो ! परस्पर सहनशील रहो और हीन वस्तुओं में अनुराग न रखो। अपनी समृद्धि का अहंकार न करो और अनादर में लज्जित न हो।

हे धूल की संतानो ! धनिकों को निर्धन की अर्द्धरात्रि की आहों से परिचित कराओ, कहीं प्रमाद उन्हें विनाश के मार्ग पर न पहुंचा दे

हे अस्तित्व के पुत्र ! यदि दरिद्रता तुझे ग्रस्त कर ले तो दुःखी न हो, क्योंकि यथासमय वैभव का स्वामी तुझ तक पदार्पण करेगा। दुर्भाग

हे मनुष्य के पुत्र ! यदि तुझे अपार वैभव प्राप्त हो जाए तो हर्षोन्मादि हो और यदि तुझ पर दुर्भाग्य टूट पड़े तो शोकाकुल न

हे चेतना के पुत्र ! मुझसे वह न मांग जिसे हम तेरे लिए नहीं चाहते। तेरे हित हमने जो उपलब्ध कराया है, उस पर संतोष

हे मनुष्य के पुत्र ! जब तक तू स्वयं पाप कर्म में लिप्त है, दूसरे पापों का विचार भी न कर । यदि तूने इस

हे चेतना के पुत्र ! दीन-हीन पर शेखी न बघार, क्योंकि मैं उस मार्गदर्शन करता हूँ और जब तुझे कुचेष्टा करते हुए देखन हूँ तब

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