हे धूल की संतानो !
धनिकों को निर्धन की अर्द्धरात्रि की आहों से परिचित कराओ, कहीं प्रमाद उन्हें विनाश के मार्ग पर न पहुंचा दे और उन्हें ‘धन वैभव के वृक्ष’ से विहीन न कर दे। दान देना तथा उदार रहना मेरे गुण हैं सौभाग्यशाली है वह नर जो मुझ महान के गुणों से अपने आपको संवारता है।
-बहाउल्लाह