500 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद बने भव्य मंदिर में विराजे रामलला का ठीक 12 बजे भगवान सूर्यदेव ने जब अपनी रश्मियों से तिलक किया तो त्रेता युग जीवंत हो उठा। सूर्य की किरणें पांच मिनट तक रामलला के मस्तक पर विराजीं। इसका साक्षी बनकर भक्त निहाल हो उठे।
राम जन्मोत्सव के पावन मुहूर्त ठीक 12:00 बजे राम मंदिर सहित रामनगरी के हजारों मंदिरों में शंख ध्वनि व घण्टा घड़ियाल की ध्वनि ने यह बता दिया कि रामलला प्रकट हो गए हैं।
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भय प्रगट कृपाला, दीनदयाला की स्तुति गूँजने लगीं। भक्त आह्लादित होकर नृत्य करने लगे। इससे पहले भगवान श्री रामलला को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया गया। पीतांबरी व सोने के मुकुट में सजे रामलला का दर्शन कर भक्त भावविभोर होते रहे।
रामजन्मभूमि में पुण्य अवसर का साक्षी बनने के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल सहित रामनगरी के अन्य संत व सूर्य तिलक की परियोजना को साकार करने वाले वैज्ञानिक भी मौजूद रहे।
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इस क्षण को दुनिया भर में फैले करोड़ों लोगों ने देखा और प्रभु श्रीराम का दर्शन किया। जन्मोत्सव की पूर्व संध्या पर मंगलवार को वैज्ञानिकों ने एक बार फिर सूर्य तिलक का सफल ट्रायल किया। कई बार के ट्रायल के बाद समय तय किया गया। मंदिर व्यवस्था से जुड़े लोग इसे विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय कह रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने बीते 20 वर्षों में अयोध्या के आकाश में सूर्य की गति अध्ययन किया है। सटीक दिशा आदि का निर्धारण करके मंदिर के ऊपरी तल पर रिफ्लेक्टर और लेंस स्थापित किया है। सूर्य रश्मियों को घुमा फिराकर रामलला के ललाट तक पहुंचाया गया। सूर्य की किरणें ऊपरी तल के लेंस पर पड़ीं। उसके बाद तीन लेंस से होती हुई दूसरे तल के मिरर पर पड़ीं। अंत में सूर्य की किरणें रामलला के ललाट पर 75 मिलीमीटर के टीके के रूप में दैदीप्तिमान हुईं। यह समय भी सूर्य की गति और दिशा पर निर्भर है।