मार्केट रेगुलेटर सेबी ने रिटेल ट्रेडर्स को भारी नुकसान से बचाने के लिए फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस यानी futures and options के नियम सख्त कर दिए हैं. इन नियमों में इंडेक्स वायदा में कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ाने, वीकली एक्सपायरी पर लगाम और मार्जिन बढ़ाने जैसे 6 बड़े फैसले किए हैं. हम आपको एक-एक करके समझाते हैं कि ये बड़े फैसले क्या हैं और ट्रेडर्स पर इसका क्या असर पड़ने जा रहा है.
क्या होगा इंडेक्स वायदा का कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ने से?सेबी ने 9 साल बाद इंडेक्स वायदा के कॉन्ट्रैक्ट साइज में बदलाव किया है. अब तक वायदा कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू 5 से 10 लाख रुपये के बीच होती थी. इसे अब कम से कम 15 लाख रुपये कर दिया जाएगा.
धीरे-धीरे इंडेक्स कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू बढ़ाकर 20 लाख रुपये तक की जाएगी. ध्यान रहे ये बदलाव सिर्फ निफ्टी, बैंक निफ्टी, फिन निफ्टी, सेंसेक्स जैसे इंडेक्स के लिए ही है. शेयरों के वायदा कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू में कोई बदलाव नहीं किया गया है. ये फैसला 25 नवंबर से लागू होगा.
अब बात करते हैं असर की? अभी निफ्टी फ्यूचर्स 25976 पर है और लॉट साइज 25 का है. ऐसे में इसकी कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू हुई- 25976×25=649400
अगर मौजूदा भाव पर ही कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू कम से कम 15 लाख रुपये हो जाए लॉट साइज दोगुने से ज्यादा यानी कम से कम 75 का हो जाएगा.
इससे ट्रेडर्स के लिए वायदा ट्रेडिंग न्यूनतम निवेश या मार्जिन की जरूरत बढ़ जाएगी. ये कितनी बढ़ेगी, आइए समझते है-अगर आपको अभी निफ्टी फ्यूचर्स का एक लॉट खरीदना या बेचना हो तो-
निफ्टी फ्यूचर्स का भाव 25976
स्पैन मार्जिन 60,561 रुपये
एक्सपोजर मार्जिन 12,985 रुपये
कुल मार्जिन 73,546 रुपये
>> अगर लॉट साइज 3 गुना हो जाए तो निफ्टी का एक फ्यूचर खरीदने या बेचने में कम से कम 2,20,638 रुपये लगेंगे.
>> साथ में ब्रोकरेज, STT, ट्रांजैक्शन चार्ज जैसे दूसरे खर्चे भी होंगे.
ऑप्शन ट्रेडर्स पर क्या असर?लॉट साइज बढ़ने से ऑप्शंस खरीदारों की लागत भी बढ़ जाएगी. उनका खर्च भी तीन गुना बढ़ जाएगा.
लेकिन ऑप्शन सेलर के लिए मुश्किल बढ़ने वाली है. अगर निफ्टी का एक ऑप्शन अगर नेकेड शॉर्ट करना हो तो अभी करीब `70000 की मार्जिन लगती है. लॉट साइज 75 होने पर मार्जिन की
जरूरत कम से कम 2.1 लाख रुपये की होगी.
कवर्ड कॉल पर क्या असर? बहुत से निवेशक कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू के बराबर का निफ्टी ETF डिलिवरी में खरीदकर उसकी कॉल शॉर्ट करते हैं. इससे उन्हें हर महीने थोड़ी-थोड़ी एक्स्ट्रा कमाई होती है. अब तक उन्हें करीब साढ़े 6 लाख रुपये के निफ्टी ETF खरीदने पड़ते थे.
लेकिन कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू बढ़ने के बाद उन्हें कम से कम 15 लाख रुपये के निफ्टी ETF खरीदने पड़ेंगे.
मार्केट के एक्सपर्ट्स के मुताबिक इंडेक्स वायदा में कॉन्ट्रैक्ट साइज कम से कम 15 लाख रुपये करने के सेबी के फैसले से वायदा में वॉल्यूम पर असर पड़ सकता है. साथ ही इससे ब्रोकर्स के रेवेन्यू पर भी असर पड़ने की आशंका है.
2-वीकली एक्सपायरी कम होगी-अभी NSE पर निफ्टी, बैंक निफ्टी, फिन निफ्टी, मिडकैप सेलेक्ट की वीकली और मंथली तथा निफ्टी नेक्स्ट 50 की मंथली एक्सपायरी होती है. मतलब NSE के 5 इंडेक्स की एक्सपायरी होती है.
इसी तरह BSE पर सेंसेक्स और बैंकेक्स की वीकली और मंथली एक्सपायरी होती है. इसकी वजह से हर रोज किसी ना किसी कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी होती है. सेबी की रिपोर्ट के मुताबिक लोग सबसे ज्यादा पैसा एक्सपायरी पर खोते हैं.
सेबी ने फैसला किया है कि 25 नवंबर से हर हफ्ते एक एक्सचेंज की सिर्फ एक वीकली एक्सपायरी होगी. मतबल NSE को तय करना है कि वो निफ्टी, बैंक निफ्टी, फिन निफ्टी में से किसकी वीकली एक्सपायरी रखता है. इसी तरह BSE को सेंसेक्स और बैंकेक्स में से एक चुनना होगा.
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स की राय में वीकली एक्सपायरी घटाने से एक्सचेंज के वॉल्यूम और रेवेन्यू पर असर पड़ सकता है. यही असर ब्रोकर्स पर भी पड़ने की आशंका है. ब्रोकर्स अब मंथली स्ट्रैटेजी पर ज्यादा फोकस कर सकते हैं. साथ ही मंथली एक्सपायरी पर फोकस वाले एल्गो प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ सकती है.
3- ऑप्शंस खरीदारों से अपफ्रंट प्रीमियम कलेक्शन-सेबी ने तय किया है कि अगले साल एक फरवरी से ऑप्शंस खरीदारों से पूरा ऑप्शंस प्रीमियम पहले ही ले लिया जाएगा.
अभी भी सामान्य तौर पर ऑप्शंस खरीदारों को पूरा प्रीमियम पहले ही देना पड़ता है.
इन्हें कोई मार्जिन का फायदा नहीं मिलता है. लेकिन कई ब्रोकर क्लाइंट्स को खासकर इंट्राडे में ऑप्शन खरीदने पर भी लिमिट दे देते हैं. मलतब आपके पास अगर 100 रुपये हैं तो आप 200 रुपये तक का ट्रेड ले सकते हैं.
इसकी वजह ये है कि अभी तक मार्जिन का कैलकुलेशन ब्रोकर लेवल पर होता है. ब्रोकर की कोलेट्रल वैल्यू के हिसाब से एक्सेंज मार्जिन की गणना करते रहे हैं.
सेबी इस पर साफ कर दिया है कि मार्जिन का कैल्कुलेशन अब क्लाइंट लेवल पर होगा. इससे कोई भी ब्रोकर किसी ऑप्शन खरीदार को एक्स्ट्रा लिमिट नहीं दे पाएगा.
इंट्राडे के लिए ऑप्शन खरीदारी को कोई मार्जिन नहीं मिलेगा और उन्हें पूरा प्रीमियम चुकाना होगा. क्लियरिंग कॉरपोरेशन को ये जिम्मेदारी दी गई है कि वो अपफ्रंट प्रीमियम कलेक्शन को वैरिफाई करें.
4- कैलेंडर स्प्रेड पर मार्जिन लाभ-सेबी ने फैसला किया है कि अगले साल एक फरवरी से एक्सपायरी के दिन कैलेंडर स्प्रेड पर मार्जिन का फायदा नहीं दिया जाएगा.
ऑप्शंस ट्रेडर एक स्ट्राइक की कॉल या पुट को बेचते हैं और अगली एक्सपायरी की उसी स्ट्राइक की कॉल या पुट खरीद लेते हैं. इसे कैलेंडर स्प्रेड कहते हैं.
दरअसल कैलेंडर स्प्रेड में काफी रिस्क होता है. खासकर एक्सपायरी के दिन काफी तेज उतार-चढ़ाव होता है. ऐसे में खासकर ऑप्शंस बिकवाली में बड़ा घाटा हो सकता है.
इस रिस्क को घटाने के लिए अब एक्सपायरी दोनों एक्सपायरी के मार्जिन का कैल्कुलेशन अलग-अलग होगा.
सेबी के फैसले से खासकर कैलेंडर स्प्रेड पर फोकस करने वाले ऑप्शंस ट्रेडर्स के लिए लागत बढ़ जाएगी.
5- इंट्राडे पोजिशन लिमिट की निगरानी-अगले साल एक अप्रैल से स्टॉक एक्सचेंज पर क्लियरिंग कॉरपोरेशन इंडेक्स इंट्राडे में भी F&O पोजिशन लिमिट की निगरानी करेंगे. अभी तक स्टॉक एक्सेंज एंड ऑफ डे यानी EOD के हिसाब से पोजिशन लिमिट की निगरानी करते थे. लेकिन नए फैसले के बाद इंट्राडे में भी पोजिशन लिमिट की निगरानी होगी, ताकि किसी क्लाइंट की पोजिशन लिमिट से ज्यादा ना हो पाए.
इस फैसले के तहत स्टॉक एक्सचेंज कम से कम 4 बार पोजिशन स्नैपशॉट लेंगे. और इसका कोई तय समय नहीं होगा. एक्सचेंज किसी भी समय स्नैपशॉट ले सकेंगे. पोजिशन लिमिट से ज्यादा होने पर जुर्माना लगाया जाता है.
6- ऑप्शन सेलर से ज्यादा मार्जिन-वायदा एक्सपायरी के दिन ऑप्शन सेलर को 2% का अतिरिक्त ELM मार्जिन देना होगा. ELM मतलब है एक्स्ट्रीम लॉस मार्जिन. ऑप्शन सेलर को ये अतिरिक्त मार्जिन पहले से ही ओपन पोजिशन के साथ नई पोजिशन पर भी देना होगा.
ऑप्शन सेलर पर 2% का अतिरिक्त मार्जिन का फैसला 20 नवंबर से लागू होगा.