Rajasthan Road Accident Death: जयपुर शहर की सड़कों पर दौड़ती रफ्तार कई बार किसी परिवार की जिंदगी को रोक देती है। दुर्घटनाएं सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि उन घरों की चीखें हैं जहां हंसते हुए निकले लोग तस्वीर बनकर लौटते हैं। नियमों की अनदेखी, ओवरस्पीड और लापरवाही का बोझ सर्वाधिक उन पर पड़ता है जिनका कोई कसूर नहीं होता। बच्चों के सिर से पिता का साया उठ जाता है, आर्थिक सहारा खत्म हो जाता है। हाल के हादसों ने फिर साबित कर दिया कि सड़क सुरक्षा विकल्प नहीं बल्कि जीवन और परिवारों की सुरक्षा की अंतिम उम्मीद है।
हाथ जोड़कर विनती है, शराब पीकर गाड़ी मत चलाओ, रॉन्ग साइड मत चलो, सड़क हादसे ने मेरे पापा को हमेशा के लिए छीन लिया। अब किसी के पापा को मत छीनना यह कहते ही 12 वर्षीय तन्वी की आंखें भर आईं। सड़क सुरक्षा से जुड़े एक सवाल पर तन्वी की यह मार्मिक अपील बताती है कि यातायात नियमों की अनदेखी कितनी गहरी चोट दे जाती है।
शहर की व्यस्त सड़कों पर हर दिन दौड़ती जिंदगी के बीच अचानक कुछ घरों की खुशियां थम जाती हैं। सड़क हादसों के आंकड़े भले ही हर महीने बदलते रहें लेकिन इन हादसों के पीछे छिपा दर्द कभी कम नहीं होता। कहीं परिवार का भविष्य खत्म हो जाता है, कहीं कमाऊ सदस्य चला जाता है। किसी बच्चे का पिता, किसी बेटी का सपना, किसी मां का बेटा हमेशा के लिए खो जाता है। सड़क हादसे केवल दुर्घटनाएं नहीं, बल्कि समाज को चेताने वाली घटनाएं हैं, जो बताती हैं कि सड़क सुरक्षा की अनदेखी की कीमत कितनी भारी है।
माता-पिता की मौत ने बच्चों से छीन लिया सहारा
नया बांस डूरावता, जयपुर में 13 जून का दिन चार मासूम बच्चों पर कहर बनकर टूटा। छोटेलाल बैरवा, जो चिनाई का काम कर परिवार चलाते थे, पत्नी मीरा देवी के साथ एसएमएस अस्पताल रिश्तेदार से मिलने जा रहे थे। मोहनपुरा पुलिया के पास एनएच 21 पर हुए हादसे में दोनों की मौत हो गई। घर में 17 साल की मंजू, सुशील, रत्ना और सबसे छोटा सूरज, चारों बच्चे अकेले रह गए।
हादसे के बाद से बच्चे पढ़ाई और जिम्मेदारियों के बीच संघर्ष कर रहे हैं। ताऊ का बेटा पूरण उनकी देखरेख कर रहा है। परिवार की सबसे बड़ी चिंता हर दिन यही रहती है कि रात का खाना मिल जाए तो सुबह का इंतज़ाम कैसे होगा। एक ही घर से दो जनों की मौत ने पूरे परिवार को सदमे में डाल दिया है। परिजन का कहना है कि अब तक न तो सरकारी सहायता मिली और न किसी अन्य तरफ से मदद।
बूढ़ी मां का सहारा कौन बनेगा
हरमाड़ा डंपर हादसे ने तन्वी के पिता श्रवण सैनी को हमेशा के लिए उससे दूर कर दिया। श्रवण घर का मुखिया थे और परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य। उनकी मौत ने पूरे परिवार को आर्थिक संकट में धकेल दिया है। घर में बूढ़ी मां, पत्नी पिंकी, दो बेटियां (12 और 9 वर्ष) और पांच वर्ष का एक बेटा है। पिंकी आज भी सदमे से बाहर नहीं आ पाई। आर्थिक सहारे के बारे में पूछने पर वह मौन हो गई और बस इतना कह पाई, एक की गलती ने सब छीन लिया। बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी, उनका पेट कैसे भरेगा, बूढ़ी मां का सहारा कौन बनेगा। श्रवण के भाई सुरेन्द्र ने बताया कि हादसे को 15 दिन हो गए हैं, लेकिन अब तक सरकार से किसी भी तरह की सहायता नहीं मिली।
डंपर हादसे में उजड़ गया एक और घर
हरमाड़ा में हुए डंपर हादसे ने अजय बारीक के परिवार की खुशियां भी छीन लीं। उनकी मौत से बेटे ज्ञान रंजन के सिर से पिता का साया उठ गया। ज्ञान अपनी पढ़ाई पूरी कर बिजनेस शुरू करने की तैयारी कर रहा था। पिता ने उसके लिए कालवाड़ रोड पर एक मकान खरीदा था, जिसकी किस्तें चल रही थीं। पिता के चले जाने के बाद किस्तें भरने का संकट खड़ा हो गया है। ज्ञान रंजन का कहना है कि हादसे के बाद उसे अब तक सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं मिली है।





