भारत अब कई सेक्टर्स में चीन को टक्कर दे रहा है. वो भी ऐसे समय पर जब अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर चल रहा है. साथ ही दोनों देश एक दूसरे साथ आम सहमति नहीं बना पा रहे हैं. खासकर फार्मा सेक्टर में भारत का दबदबा पूरी दुनिया में बढ़ रहा है, जो कभी चीन का हुआ करता था. भारत की फार्मा कंपनियां तेजी के साथ मेडिसिन पर काम कर रही हैं. साथ ह विदेशी कंपनियों के साथ डील कर रही हैं. दुनिया के तमाम देशों में भारतीय दवाओं की तूती बोल रही है. साथ ही दुनिया के तमाम बड़े देश भारत की दवाओं पर भरोसा भी कर रहे हैं. इसका मतलब है कि भारत की दवाएं चीन के लिए एक बड़ा सिरदर्द बनती जा रही हैं.
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अप्रैल महीने में सुवेन फार्मास्युटिकल्स के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन विवेक शर्मा विदेशी कंपनी के साथ एक बड़ी डील के बातचीत कर रहे थे. से कंपनी दवाईयों का जरूरी सामान मैन्युफैक्चरिंग करती है. सुवेन फार्मास्युटिकल्स हैदराबाद बेस्ड कंपनी है. सुवेन फार्मा की नजर ऐसी कंपनियों को खरीदने पर है, जोकि तकनीति रूप से सक्षम हों. ताकि वो अमेरिका और यूरोप के देशों के लिए दवा बना सकें.
अमेरिका में बढ़ाई पहुंच
सुवेन फार्मा ने अपनी पहुंच को अमेरिका तक बढ़ा दिया है. दिसंबर के महीने में कंपनी ने अमेरिकी कंपनी एनजे बायो इंक की मैज्योरिटी हिस्सेदारी अपने नाम की थी. एनजे बायो इंक प्रिंसटन में मौजूद एक रिसर्च बेस्ड कंपनी है. जोकि कैंसर की दवाओं पर काम करती है. सुवेन ने इस कंपनी को 65 मिलियन डॉलर यानी करीब 564 करोड़ रुपए में खरीदा है. जिसके बाद सुवेन Contract Development and Manufacturing Organizations यानी CDMOs मार्केट की लीडिंग कंपनियों में से एक हो गई है. CDMOs वो कंपनियां होती हैं जोकि दूसरे फार्मा कंपनियों के लिए मेडिसिन बनाने का काम करती हैं. खास बात तो ये है कि CDMOs मेडिसिन मेकिंग से लेकर उसे मार्केट करने तक सारा काम करती हैं.
वहीं दूसरी ओर देश की बड़ी फार्मा कंपनियों में शुमार बायोकोन भी पीछे नहीं है. इसकी सिंजीन इंटरनेशनल ने अमेरिकी कंपनी इमर्जेंट बायो सॉल्यूशंस का अधिग्रहण किया है. बाल्टीमोर बेस्ड ये कंपनी प्रोटीन और जीन जैसी मेडिसिन का निर्माण करती है. ये डील 36.5 मिलियन डॉलर में हुई है। सिंजीन इंटरनेशनल के एमडी और सीईओ, पीटर बैंस के अनुसार इस डील से सिंजीन को अमेरिका में पैर जमाने में मदद मिलने के साथ कस्टमर बढ़ाने में भी मदद मिलेगी.
अमेरिका और यूरोप पर नजर
भारत की कई सीडीएमओ कंपनियां वेस्टर्न देशों में बड़ी फार्मा कंपनियों के लिए मेडिसिन बनाने में मदद कर रही हैं. ये सीडीएमओ अमेरिका और यूरोप में ऐसी कंपनियों की तलाश कर रही हैं जिनका अधिग्रहण कर अपनी कैपेसिटी में इजाफा कर सकें. जानकारों की मानें तो भारत की सभी सीडीएमओ के अधिकारी अमेरिका और यूरोप पर ऐसी कंपनियों की तलाश कर रहे हैं, जिन्हें वो खरीद सकें. खास बात तो ये है कि भारत में सीडीएमओं की फैक्ट्रीज सालों से विदेशी फार्मा कंपनियों की मदद कर रही हैं. अब सीडीएमओ कंपनियों उन कंपनियों को अपने हाथों में लेलनना चाहती हैं जो कैंसर, जीन थेरेपी और बायोलॉजी के सेक्टर में काम कर रही हैं.
चीन की हेकड़ी कम करना जरूरी
भारत समेत कई देश अब चीन की इस सेक्टर में हेकड़ी कम करना चाहते हैं. जिसकी वजह से वो अब अपनी सप्लाई चेन को बदलना चाहते हैं. इसका एक और कारण भी है. ग्लोबल मार्केअ में चीन की विश्वसनीयता भी काफी कम हो गई है. वहीं दूसरी ओर चीन और अमेरिका साथ ही यूरोप के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं. ऐसे में अमेरिका और यूरोप अपने देश के करीब ही दवाएं बनाना चाहती हैं.
कंसल्टिंग फर्म लोएस्ट्रो की रिपोर्ट के अनुसार वेस्टर्न देशों की फार्मा कंपनियां अपने देश में ही फैक्ट्रीज लगा रही हैं. ताकि सप्लाई चेन कोई परेशानी ना हो, नियम का ठीक से पालन हो सके साथ ही दवा बनाने में कोई परेशानी ना हो. हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने फार्मा कंपनियों को 30 दिनों में दवाओं के दाम कम करने के आदेश दिए थे. जानकारों का मानना है कि इससे फार्मा कंपनियां भारत में अपने पार्टनर्स की तलाश करेंगी ताकि रिसर्च और प्रोडक्शन दोनों की कॉस्ट में कमी आ सके.
