Financial Fraud Risk Indicator: कई बार ऑनलाइन पेमेंट करते समय हमारा ट्रांजेक्शन फेल हो जाता है या फिर ट्रांजेक्शन में देरी होती है तो हम समझते हैं कि यह नेटवर्क की समस्या है या फिर कोई तकनीकी गड़बड़ी है. लेकिन अब अगर आपके पेमेंट के समय ऐसा कुछ होता है तो जरूरी नहीं कि यह तकनीकी खराबी हो बल्कि यह साइबर फ्रॉड से आपको बचाने के लिए सरकार की एक रणनीति भी हो सकती है. इसलिए अगर आप ऐसा अनुभव करते हैं तो परेशान होने की बात नहीं बल्कि सतर्क होने की जरूरत है. तो आइए जानते हैं क्या है यह नई तकनीक जिसका प्रयोग कंपनियां अपने ग्राहकों को फ्रॉड से बचाने के लिए कर रही हैं.
FRI क्या है
देश में बढ़ते साइबर फ्रॉड के मामलों को देखते हुए डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन ने 21 मई को फाइनेंशियल फ्रॉड रिस्क इंडिकेटर लागू किया है. यह एक रिस्क आधारित स्कोरिंग सिस्टम है जो किसी भी मोबाइल नंबर को तीन कैटेगरी मध्यम, उच्च और बहुत उच्च में बांटता है. यह कैटेगरी उस मोबाइल नंबर के रिस्क को दर्शाती है. इसका डेटा डिजिटल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म के जरिए साझा किया जाता है जो कि इंडियन साइबर रिपोर्टिंग पोर्टल, DoT का Chakshu प्लेटफॉर्म और बैंकों व वित्तीय संस्थानों द्वारा साझा की गई खुफिया जानकारी के आधार पर तैयार किया जाता है.
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कैसे काम करता है यह सिस्टम
DoT की डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट उन मोबाइल नंबरों की रिवोकेशन लिस्ट तैयार करती है जो कि साइबर फ्रॉड, फेक रीवेरिफिकेशन या लिमिट पार करने जैसे कारणों से डिस्कनेक्ट हो चुके हैं. ऐसे नंबरों पर अगर ग्राहक पेमेंट करता है तो फिर सर्विस प्रोवाइडर इसे धीमा कर सकती है या फिर रिजेक्ट कर सकती है.
इन कंपनियों ने लागू किया
PhonePe ऐसा पहला UPI प्लेटफॉर्म बना जिसने बहुत उच्च FRI वाले मोबाइल नंबरों से ट्रांजैक्शन को ब्लॉक करना शुरू किया. साथ ही PhonePe प्रोटेक्ट के जरिए यूजर को स्क्रीन पर चेतावनी दी जाती है. इसके अलावा Google Pay और Paytm जैसे बड़े UPI प्लेटफॉर्म भी DIP अलर्ट्स को अपने सिस्टम में इंटीग्रेट कर रहे हैं. इस सिस्टम को लागू करने से देश में करोड़ों की संख्या में मौजूद ऑनलाइन यूजर्स को फायदा मिलेगा. यह यूजर्स को फ्रॉड और स्कैम से बचाएगा.
