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February 4, 2025 7:24 pm

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मकान मालिक या किरायेदार…….’प्रॉपर्टी के इस्‍तेमाल का तरीका कौन बताएगा……

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किरायेदार को यह तय करने का अधिकार नहीं है कि मकान मालिक अपनी संपत्ति का सबसे अच्छा इस्‍तेमाल कैसे करे. वह प्रॉपर्टी के यूज को लेकर मकान मालिक को निर्देश नहीं दे सकता. यह कहना है दिल्‍ली हाईकोर्ट का. किरायेदार को बेदखल करने के लिए हाईकोर्ट में दायर की गई एक याचिका का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया गया. कोर्ट ने कहा कि किरायेदार मकान मालिक को संपत्ति के इस्‍तेमाल की शर्तें तय करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता. मकान मालिक अपनी आवश्यकताओं का सबसे अच्छा जज होता है. यह अदालत का काम नहीं है कि वह तय करे कि मकान मालिक को किस तरीके से और कैसे रहना चाहिए. हाई कोर्ट ने किरायेदार को छह महीने का समय दिया है कि वह परिसर खाली करे और शांतिपूर्ण कब्जा सौंप दे.

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यह मामला उस याचिका से संबंधित था जिसे एक परेशान दंपति ने दायर किया था, जो अपने मकान के एक हिस्से में रह रहे किरायेदार को बेदखल करना चाहते थे. किरायेदार 1989 में उनके घर में रहना शुरू किया था और 2003 तक किरायेदारी जारी रही. इसके बाद मकान मालिक ने उससे घर खाली करने को कहा. लेकिन, किरायेदार ने घर नहीं छोडा. मकान मालिक का कहना था कि बीमारी की वजह से उसे नर्सिंग स्‍टाफ और अपनी तलाकशुदा बेटी को अपने घर में रखने के लिए जगह चाहिए. वहीं, किरायेदार ने तर्क दिया कि मकान में पर्याप्त जगह है, जिससे मकान मालिक अपनी तलाकशुदा बेटी या स्टाफ को समायोजित कर सकता है.

निचली अदालत ने किरायेदार के हक में दिया था फैसला

मकान मालिक ने किराया नियंत्रण अदालत के फैसले को चुनौती दी. निचली कोर्ट ने मकान मालिक की दलीलों को न मानते हुए किरायेदार के हक में फैसला दिया था. अदालत ने कहा था कि उनकी चिकित्सा स्थिति के पर्याप्त सबूत पेश नहीं किए गए. वहीं हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति तारा वितस्ता गंजू ने ट्रायल कोर्ट के फैसले से असहमति जताई और कहा कि “उपलब्ध रिकॉर्ड यह भी दिखाते हैं कि याचिकाकर्ता ने अपनी दलीलों के समर्थन में पर्याप्त दस्तावेज प्रस्तुत किए, जिनमें चिकित्सा दस्तावेज, याचिकाकर्ता और उनकी पत्नी की स्थिति की तस्वीरें, याचिकाकर्ता की बेटी का तलाक डिक्री और उसकी अस्थायी रोजगार प्रमाणपत्र शामिल हैं.”

मकान मालिक की ओर से पेश वकील संजय कटयाल और देविका मोहन ने बताया कि याचिकाकर्ता 80 वर्ष के हैं और 1966 से 1972 तक भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं. वह 1971 के युद्ध के योद्धा हैं. उन्होंने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता पार्किंसन, पल्मोनरी फाइब्रोसिस जैसी कई बीमारियों से पीड़ित हैं, जिससे वह बिस्तर पर हैं और दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं. वकीलों ने बताया कि पत्नी भी 76 वर्ष की हैं और गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं.

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