कहा जाता है कि दूल्हा-दुल्हन की जोड़ी ऊपर वाले ही बनाकर भेजते हैं। इस बात से भले ही कुछ लोग इनकार करते, लेकिन कुछ ऐसी घटनाएं होती है, जिससे यह मानना पड़ता है कि वाकई में ही ईश्वर ही जोड़ी तय करते हैं। शिवहर में दो दिन पूर्व एक घटना घटी है। वाकया काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा हो भी क्यों नहीं। दरअसल, जयमाला हुआ…शादी की रस्म हुई…दूल्हे ने दुल्हन की सिंदूर से मांग भरी… फिर दुल्हन ने दूल्हे के शरीर में ‘वो’ देखी और साथ रहने से इनकार कर दी। काफी प्रयास हुआ, फिर भी दुल्हन साथ रहने को तैयार नहीं हुई। दूल्हे के साथ बारातियों को बिना दुल्हन के बैरंग लौट जाना पड़ा।
शिवहर जिला के तरियानी का मामला
यह वाकया दो दिन पूर्व का है। शिवहर के तरियानी प्रखंड का मामला है। बताया गया है कि पूरे लाव लश्कर और बैंड-बाजे के साथ बारात लगी। जयमाला हुआ। दुल्हन पक्ष ने बाराती का पूरा स्वागत किया। बाराती भोजन किए। दुल्हा शादी के लिए मंडप में पहुंचा। पंडित जी वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ शादी की रस्म पूरी कराने लगे। सिंदूर दान तक तो सबकुछ ठीक रहा। यानी दूल्हे ने दुल्हन की मांग में सिंदूर भर दी। जब दूल्हे के नए कपड़े पहनने की बारी आई, तो उसके पैर देख दुल्हन के मानो होश उड़ गए। बात यह है कि दूल्हे को ‘हाथी पांव’ (मोटा पांव या फिल पांव) था। उसका पैर देखते ही दुल्हन बिदक गई और सीधे मुंह साथ रहने से इनकार कर दी।
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दूल्हे पक्ष ने चुकाया पूरा खर्च
परिजनों ने दुल्हन को काफी समझाया, पर वो मानने को तैयार नहीं हुई। वह लगातार साथ रहने इनकार करती रही। इस पर दूल्हा और दुल्हन पक्ष में विवाद उत्पन्न हो गया। बारात समस्तीपुर जिले से आई थी। विवाद पर ग्रामीण की भीड़ जमा हो गई। फिर पंचायत बैठी। इसमें निर्णय हुआ कि दूल्हे पक्ष को बाराती के स्वागत पर खर्च को चुकता करना पड़ेगा। अंतत: दूल्हा पक्ष को खर्च की पूरी राशि चुकता करनी पड़ी और बिना दुल्हन के बैरंग लौट जाना पड़ा। बारात समस्तीपुर जिला के मुफ्फसिल थाना क्षेत्र के लगुनिया गांव से आई थी।