डेस्क। कैथोलिक धर्म जिसे रोमन कैथोलिक धर्म भी कहते हैं ईसाई धर्म की एक प्रमुख शाखा है। इसके अनुयायी रोम के वैटिकन सिटी में स्थित पोप को अपना धर्माध्यक्ष मानते हैं। ईसाई धर्म की दूसरी मुख्य शाखा प्रोटेस्टैंट कहलाती है और उसके अनुयायी पोप के धार्मिक नेतृत्व को नहीं मानते। कैथोलिकों और प्रोटेस्टैंटों की धार्मिक मान्यताओं में और भी बड़े अंतर हैं।
रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट में अंतर:
जानकरी के अनुसार कैथोलिक मानते हैं कि उनका धार्मिक संगठन आरंभिक ईसाई संगठन के रिवायत को जारी रखता है और उसका एकमात्र वारिस है। वे मानते हैं कि उनकी प्रार्थना रीतियों में जो रोटी और मदिरा का पान किया जाता है वह धार्मिक अर्थ में यीशु मसीह का मास और रक्त बन जाते हैं जिन्हें प्रार्थना करने वाले ग्रहण करते हैं।प्रोटेस्टैंटों की रीतियों में ऐसा नहीं होता।
-कैथोलिक पोप को ईसाई धर्म का पृथ्वी पर परम अध्यक्ष मानते हैं जो कि प्रोटेस्टैंट नहीं मानते।
-इस धार्मिक संगठन में हर पादरी के ऊपर एक उस से उच्च कोटि का पादरी होता है और अंत में सभी के ऊपर पोप होता है। कैथोलिक मत में पादरियों को विवाह करने की अनुमति नहीं है और उन्हें आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। कुछ स्त्रियाँ भी अपना जीवन धर्म के नाम कर देती हैं और आजीवन कुँवारी रहती हैं। इन्हें “नन” कहा जाता है। जब यह नन बनाने की शपथ लेतीं हैं तो एक औपचारिक समारोह में विवाह के वस्त्र धारण किए इनका “ईसा से विवाह” रचाया जाता है।
-कैथोलिक संगठनों द्वारा चलाये गए पाठशालाओं में अक्सर यही ननें अध्यापिकाएँ हुआ करती हैं।कैथोलिक धर्म में कुछ भक्तों को औपचारिक रूप से संतों का दर्जा दिया जाता है और कैथोलिकों को अनुमति है कि वे इनकी पूजा कर सकें।
-बहुत से कैथोलिक देशों में किसी स्थानीय कैथोलिक संत को बहुत मान्य समझा जाता है, जैसे की आयरलैंड में “संत पैट्रिक” को और पोलैंड में “संत स्तानिस्लाउस” को। इन्हें उन राष्ट्रों का “पालक संत”, पेट्रन सेंट) कहा जाता है।