मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं वैश्विक स्तर पर गंभीर चिंता का कारण बनी हुई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में, दुनियाभर में 970 मिलियन (97 लाख) से अधिक लोग मानसिक स्वास्थ्य विकारों से पीड़ित थे, जिनमें चिंता और अवसाद जैसी बीमारियां सबसे प्रमुख देखी जा रही हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, ऑफिस में काम करने वाले लोगों में मानसिक स्वास्थ्य विकारों के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। कुछ हालिया रिपोर्ट्स में कथित तौर पर इसी वजह से मौत के मामले भी सामने आए थे।
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मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों को शिक्षित और जागरूक करने के साथ सामाजिक कलंक की भावना दूर के लिए हर साल 10 अक्तूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day) मनाया जाता है। इस साल का थीम है- इट्स टाइम टू प्रयोरिटाइज मेंटल हेल्थ एट वर्कप्लेस यानी कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दिया जाना जरूरी है। आइए इस बारे में विस्तार से समझते हैं।
वर्कप्लेस में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, करीब 50% से अधिक आबादी को अपने जीवनकाल में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा रहता है। एक तिहाई अमेरिकियों का कहना है कि काम का दबाव और वर्कप्लेस से संबंधित समस्याएं उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। 80% का कहना है कि वे काम के दौरान अक्सर तनाव महसूस करते हैं।
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन ने इस समस्याओं को लेकर किए गए एक सर्वे में पुष्टि की है कि मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना कर्मचारियों के लिए उच्च प्राथमिकता होनी चाहिए है। रिपोर्ट में महिला कर्मचारियों में बर्नआउट की चिंताजनक दर का खुलासा किया गया है, जिसके मुताबिक एक तिहाई से ज्यादा महिलाएं बर्नआउट की शिकायत करती हैं।
बर्नआउट और कर्मचारियों में मेंटल हेल्थ की समस्या
बर्नआउट, तनाव से अलग स्थिति है जिसमें कर्मचारी अपने सामान्य स्तर पर काम करने में असमर्थ होते हैं, जिसके कारण कार्य की गुणवत्ता तो प्रभावित होती ही है साथ ही ये स्थिति मानसिक दबाव को भी बढ़ाने वाली मानी जाती है। साल 2022 में किए गए एक सर्वे में 44% नियोक्ताओं ने कर्मचारियों में कई तरह की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ते हुए देखा।
रिपोर्ट से पता चलता है कि लंबे या अनियमित समय पर काम करने, वर्क-लाइफ बैलेंस प्रभावित होने, कर्मचारियों पर अत्यधिक काम का भार होने जैसी स्थितियां मेंटल हेल्थ की समस्याओं को बढ़ा रही हैं। इसके अलावा ज्यादातर कर्मचारियों को नौकरी जाने की चिंता बनी रहती है, इसका भी मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर देखा जा रहा है।
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक?
अमर उजाला से बातचीत में भोपाल स्थित वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं, कर्मचारियों में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को कम करने के लिए ऑफिस प्रबंधन को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी नियोक्ता अपने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें। इससे कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ेगी जो सीधे तौर पर उस कंपनी के विकास से जुड़ी होती है।
इसके साथ जिस तरह से नियमित रूप से ऑफिसों में हेल्थ चेकअप किए जाते हैं उसी तरह से ऑफिस में मेंटल हेल्थ स्क्रीनिंग की जानी चाहिए। ये बदलाव, बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को कंट्रोल करने के लिए बहुत जरूरी है।
मेंटल हेल्थ स्क्रीनिंग की सरलीकरण जरूरी
डॉ सत्यकांत कहते हैं, कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य की जांच तो जरूरी है ही साथ ही जरूरी है कि इस प्रक्रिया का सरलीकरण किया जाए। इससे लोग खुद से जांच के लिए आगे आएंगे और कलंक की भावना दूर होगी। उदाहरण के लिए किसी कर्मचारी को डिप्रेशन है तो ऐसा लग सकता है कि मेरी स्थिति का कंपनी पर असर पड़ सकता है, इस वजह से कई लोग निदान के लिए आगे ही नहीं आते हैं। पेशेवर रवैया और स्क्रीनिंग का सरलीकरण करके कर्मचारियों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का पता लगाना और इलाज प्राप्त करना आसान बनाया जा सकता है।
