हाल ही में देश के बड़े उद्योगपति रतन टाटा का 86 साल की उम्र में निधन हो गया था. इसके बाद से उन अटकलों ने सुर्खियां बटोरनी शुरू कर दी हैं कि आखिर उनकी संपत्ति का वारिस कौन होगा? इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिवंगत रतन टाटा ने अपने करीबी दोस्तों मेहली मिस्त्री, डेरियस खंबाटा के साथ-साथ अपनी सौतेली बहनों शिरीन और डीन जेजीभॉय को अपनी वसीयत के एग्जीक्यूटर के रूप में नियुक्त किया था.
दरअसल, अपनी संपत्तियों का बटवारा करने के लिए सिर्फ एक ठोस वसीयत बनाना ही काफी नहीं है. इसके लिए आपको एक काबिल एग्जीक्यूटर की जरूरत भी पड़ती है. इससे यह सुनिश्चित होता है कि आपकी वसीयत ठीक उसी तरह एग्जिक्यूट (बंटे) हो, जैसा आप चाहते थे.
कौन होता है एग्जीक्यूटर?
वसीयतकर्ता (Testator) अपनी वसीयत को ठीक से इम्प्लीमेंट कराने के लिए ‘एग्जीक्यूटर’ को नियुक्त करता है. इस एग्जीक्यूटर की डिटेल्स वसीयत में दी जाती हैं. इसके चलते उसके पास कुछ अधिकार होते हैं. एनट्रस्ट फैमिली ऑफिस की डायरेक्टर और सीओओ श्रीप्रिया एनएस के मुताबिक, “वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद, एग्जीक्यूटर को उसकी जगह लेनी होती है और यह सुनिश्चित करना होता है कि वसीयत को वसीयतकर्ता की अंतिम इच्छा के अनुसार इम्प्लीमेंट किया जाए.”
कानून के अनुसार, एग्जीक्यूटर की उम्र 18 साल से ज्यादा होनी चाहिए और वह मानसिक रूप से भी स्वस्थ होना चाहिए. वह इतना युवा होना चाहिए कि वसीयतकर्ता से ज्यादा समय तक जीवित रह सके. आपको दो फैक्टर्स के आधार पर एग्जीक्यूटर चुनना चाहिए –
वह विश्वास योग्य हो और साथ ही उसे जरूरी कामों को करने के लिए पर्याप्त नॉलेज हो.
उसमें कानूनी मामलों, अकाउंटिंग प्रोसेसेज और प्रशासनिक कामों सहित अन्य को मैनेज करने की समझ और क्षमता होनी चाहिए.
प्लानमाईस्टेट एडवाइजर्स एलएलपी के पार्टनर शैलेंद्र दुबे कहते हैं, “अगर एग्जीक्यूटर में इन स्किल्स की कमी है, तो संपत्ति के इम्प्लीमेंटेशन के पूरे प्रोसेस में देरी हो सकती है.”
कौन बन सकता है एग्जीक्यूटर?
आप वसीयत को एग्जिक्यूट करने के लिए किसी लाभार्थी, दोस्त या रिश्तेदार को एग्जीक्यूटर के रूप में नियुक्त कर सकते हैं या किसी प्रोफेशनल वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट या फाइनेंसियल एडवाइजर को भी यह जिम्मेदारी सौंप सकते हैं. दुबे ने बताया, “आप अपनी वसीयत में एक या एक से ज्यादा एग्जिक्यूटर्स को नियुक्त कर सकते हैं, लेकिन इस दौरान आपको यह साफ करना होगा कि अंतिम निर्णय लेने का अधिकार किसके पास होगा.”
अगर वसीयतकर्ता एग्जीक्यूटर को नियुक्त करते समय असमंजस में हैं, जैसे – उसे संशय है कि उसकी मृत्यु के बाद एग्जीक्यूटर ठीक से काम कर पाएगा या नहीं. इस स्थिति में वह सब्स्टीट्यूट एग्जिक्यूटर्स भी नियुक्त कर सकता है.
लुमियर लॉ पार्टनर्स के पार्टनर अतुल्य शर्मा ने कहा, “भले ही यह जरूरी नहीं है, लेकिन जहां तक संभव हो, वहां एग्जीक्यूटर चुनते समय एक भरोसेमंद प्रोफेशनल आर्गेनाईजेशन को तवज्जो देनी चाहिए. एक ऐसी आर्गेनाईजेशन जिसके पास अच्छा फाइनेंसियल एवं लीगल बैकग्राउंड हो और जो पर्याप्त समय दे सके. क्योंकि पूरी संपत्ति के डिस्ट्रीब्यूशन प्रोसेस में आमतौर पर 6 से 12 महीने लग सकते हैं.”
उन्होंने आगे कहा कि एग्जीक्यूटर भारतीय होना चाहिए, क्योंकि भारत में वसीयत इम्प्लिमेंशन करने का प्रोसेस काफी कठिन है और इसमें नियमित अंतराल पर कई कर्तव्यों या एक्शन्स को एग्जिक्यूट करना होता है.
ये हैं प्रमुख जिम्मेदारियां
एग्जीक्यूटर की मुख्य जिम्मेदारियों में शामिल है –
वसीयत में बताई गई सभी एसेट्स की डिटेल्स को इकट्ठा करना.
इन एसेट्स की सुरक्षा करना.
वसीयत में दिए गए निर्देशों के अनुसार बेनेफिशरीज के बीच डिस्ट्रीब्यूट करना.
एग्जीक्यूटर डिस्ट्रीब्यूशन के लिए निवेश को समाप्त भी कर सकता है या उन्हें बेनेफिशरीज को ट्रांसफर भी कर सकता है. श्रीप्रिया ने बताया, “एग्जीक्यूटर को वसीयतकर्ता के बकाया कर्जे का सेटलमेंट भी करना होता है. यह सुनिश्चित करना उसकी जिम्मेदारी है कि संपत्ति से कर्जों का भुगतान किया जाए.”
अगर वसीयत में बताया गया है, तो मृत व्यक्ति का इनकम टैक्स फाइल करना भी एग्जीक्यूटर का कर्तव्य है.
अगर वसीयतकर्ता की वसीयत के एग्जीक्यूशन के समय लाभार्थियों और कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच कोई विवाद पैदा होता है, तो उस समय एग्जीक्यूटर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. संपत इन्वेस्टमेंट्स के स्ट्रैटजिक सॉल्यूशंस हेड प्रियेश संपत ने कहा, “एग्जीक्यूटर मृतक वसीयतकर्ता के परिवार के सदस्यों के बीच मीडिएटर के रूप में कार्य कर सकता है और संपत्ति का शांतिपूर्ण और उचित निपटान सुनिश्चित कर सकता है.”
एग्जीक्यूटर न होने पर क्या होता है
एग्जीक्यूटर न होने की स्थिति में वसीयत को चुनौती दी जा सकती है. मृतक वसीयतकर्ता की संपत्ति में किसी भी हित या हिस्से का दावा करने वाले हर एक कानूनी उत्तराधिकारी को अपना दावा साबित करना होगा और प्रशासन के पत्र या उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करना होगा. इस दौरान विवाद या देरी होना निश्चित है, जो वसीयतकर्ता की संपत्ति के डिस्ट्रीब्यूशन को प्रभावित कर सकता है. इससे उत्तराधिकार का प्रोसेस, संपत्ति का उत्तराधिकार और वसीयतकर्ता के कर्ज और देनदारियों का सेटलमेंट भी प्रभावित हो सकता है.
इसके अलावा ऐसे उदाहरण भी देखने को मिल सकते हैं, जहां एग्जीक्यूटर अपने दायित्वों को पूरा करने से इनकार कर देते हैं या किसी कारण से ऐसा नहीं कर पाते हैं या कोई अन्य व्यक्ति एग्जीक्यूटर के रूप में कार्य करने के लिए इच्छुक या सक्षम नहीं होता है. ऐसे मामलों में, कोर्ट मृतक वसीयतकर्ता की संपत्ति के सेटलमेंट की देखरेख के लिए एक एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर सकता है. संपत ने बताया, “लाभार्थी एक न्यूट्रल फर्म नियुक्त कर सकते हैं या वसीयतकर्ता की इच्छा के अनुसार वसीयत को एग्जिक्यूट करने के लिए अपने बीच से किसी को नियुक्त कर सकते हैं.”
इंडिविजुअल एग्जीक्यूटर
अगर आप किसी व्यक्ति को एग्जीक्यूटर के रूप में नियुक्त करते हैं, तो हो सकता है कि फीस ज्यादा न हो. क्योंकि वसीयतकर्ता के करीबी दोस्त या रिश्तेदार अपनी सर्विसेज के लिए फीस लेने की संभावना न के बराबर ही रखते हैं. इस दौरान कानूनी मामलों और प्रशासनिक कामों के लिए खर्च होनी वाली राशि ही प्रदान की जाती है. एक्सपर्ट्स की सलाह है कि जब आप वसीयत लिखते हैं, तो एग्जीक्यूशन के खर्चों को पूरा करने के लिए कुछ पैसे अलग रखें.
उदाहरण के लिए, अगर आप अपने पीछे कोई अचल संपत्ति छोड़ते हैं, जिसे आप बेचना चाहते हैं और उससे प्राप्त राशि को अपने कानूनी उत्तराधिकारियों में बांटना चाहते हैं या दान के रूप में देना चाहते हैं, तो आपके एग्जीक्यूटर को अखबार में विज्ञापन देने, ब्रोकर नियुक्त करने और बिक्री की निगरानी करने की जरूरत होगी.
इसके अलावा अगर आपकी संपत्ति दूसरे शहरों में है, तो आपके एग्जीक्यूटर को उन स्थानों पर जाने और रहने-खाने का खर्च उठाने की भी जरूरत पड़ सकती है. ये खर्च आपकी संपत्ति से आने चाहिए, न कि आपके एग्जीक्यूटर की जेब से. आपकी वसीयत में इसका ध्यान रखा जाना चाहिए.
प्रोफेशनल एग्जीक्यूटर
जिन परिवारों में संपत्ति बड़ी होती है, वहां वसीयतकर्ता प्रोफेशनल फर्म नियुक्त करना पसंद करते हैं, जिसमें वकील और चार्टर्ड अकाउंटेंट सहित कई प्रोफेशनल्स शामिल होते हैं. हालांकि, प्रोफेशनल एग्जिक्यूटर्स को हायर करना महंगा सौदा है. दुबे ने बताया, “ज्यादातर मीडियम साइज्ड लॉ फर्म 3 से 5 लाख रुपए के बीच और बड़ी लॉ फर्म 15 से 20 लाख रुपए के बीच फीस लेती हैं. इसके अलाव कुछ प्रोफेशनल्स एग्जीक्यूटर फीस के रूप में संपत्ति की वैल्यू का 0.5 से 2 फीसदी लेते हैं.