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April 2, 2025 2:17 pm

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चुनाव आयुक्त के सिलेक्शन से पहले क्यों बरसे उपराष्ट्रपति…….’ये काम चीफ जस्टिस कैसे कर सकता है’

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जल्द ही देश को नया चुनाव आयुक्त मिलने वाला है, इसके लिए 17 फरवरी को बैठक भी होनी है लेकिन उससे पहले उपराष्ट्रपित जगदीप धनखड़ ने बड़ा बयान दे दिया है. किसी भी तरह के एग्जीक्यूटिव अपॉइंटमेंट में देश के चीफ जस्टिस को हिस्सा नहीं लेना चाहिए. धनखड़ ने शुक्रवार को सवाल उठाया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के निदेशक या किसी अन्य कार्यकारी नियुक्ति के सलेक्शन में कैसे हिस्सा ले सकते हैं.

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बहुत पतली रेखा होती है लेकिन…

भोपाल में नेशनल जुडिशियल एकेडमी में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा,’न्यायिक सक्रियता और अति-सक्रियता (ओवररीच) के बीच की रेखा बहुत पतली होती है, लेकिन इसका लोकतंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है. यह पतली रेखा लोकतंत्र और तानाशाही के बीच की दूरी को दर्शाती है.’

‘न्यायिक फैसले के आगे झुकी कार्यपालिका’

उप राष्ट्रपति धनखड़ ने आगे आगे कहा,’क्या कोई कानूनी आधार हो सकता है कि चीफ जस्टिस को किसी कार्यकारी नियुक्ति में शामिल किया जाए? यह परंपरा इसलिए बनी क्योंकि उस समय की कार्यपालिका ने एक न्यायिक फैसले के आगे झुककर इसे स्वीकार कर लिया, लेकिन अब इस पर दोबारा विचार करने की जरूरत है.’ धनखड़ ने कहा कि आज के समय में ‘न्यायपालिका के ज़रिए कार्यपालिका की भूमिका निभाने की घटनाएं अक्सर देखी और चर्चा की जा रही हैं.’

बिना बाधा डाले असहमति जतानी चाहिए

उन्होंने यह भी कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को बचाए रखने के लिए संस्थानों को मतभेद करने चाहिए, लेकिन बिना बाधा डाले असहमति व्यक्त करनी चाहिए. धनखड़ ने आगे कहा,’लोकतंत्र संस्थागत अलगाव पर नहीं, बल्कि समन्वित स्वायत्तता (coordinated autonomy) पर आधारित होता है.’ उन्होंने यह भी कहा कि जब कार्यकारी भूमिकाएं चुनी हुई सरकार के ज़रिए निभाई जाती हैं तो उनकी जवाबदेही जनता और संसद के प्रति होती है, लेकिन अगर कार्यपालिका की भूमिका किसी और को दे दी जाती है, तो फिर जवाबदेही तय करना मुश्किल हो जाता है.

संसद में हंगामे पर भी बरसे धनखड़

धनखड़ ने यह भी कहा कि संविधान सभा ने लोकतंत्र के लिए जो उच्च मानक तय किए थे, वे आज कमजोर पड़ रहे हैं. उन्होंने पूछा,’हम लोकतंत्र के मंदिरों (संसद) में हंगामा और बाधाएं कैसे स्वीकार कर सकते हैं? जनता के प्रतिनिधियों को अपने संवैधानिक जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए. राष्ट्रीय हित को दलगत राजनीति से ऊपर रखना चाहिए और टकराव के बजाय सहमति का मार्ग अपनाना चाहिए.’

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