जयपुर। बड़े शहरों में कॅरियर और सपनों की तलाश में आई महिलाएं और लड़कियां के लिए पीजी और हॉस्टल एक अहम विकल्प बनकर सामने आते हैं। लेकिन क्या इनमें रहने वाली महिलाएं सच में सुरक्षित है? क्या उन्हें वह सुरक्षा मिल रही जिसकी वे हकदार है? कारण कि शहर में संचालित हो रहे अधिकांश पीजी का न तो कोई पंजीकरण है और न ही वहां के स्टाफ का संबंधित इलाके के थाने में कोई पुलिस वैरिफिकेशन हो रहा है।
केस-1: दूसरी चाबी मकान-मालिक के पास
दिल्ली से आने के बाद यहां टोंक रोड़ एक पीजी में 8 हजार रुपए किराया में रह रही थी। पीजी रेजीडेंट था। सिक्योरिटी और मेंटेनेंस चार्ज के तौर पर 10 हजार रुपए लेते हैं, लेकिन सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। प्राइवेसी नहीं होती मकान मालिक के बेटे और भाई कभी भी गर्ल्स के एरिया में आ जाते, जिससे लड़कियां असहज हो जाती हैं। यही नहीं कमरे की दूसरी चाबी अपने पास रखते थे।
केस-2: सिक्योरिटी जैसी सुविधाएं नहीं
पीजी का रेंट 10 हजार रुपए प्रति माह है। लेकिन बेसिक सुविधा तक उपलब्ध नहीं है। हमसे 15 हजार सिक्योरिटी डिपोजिट तो ले रहे, लेकिन बदले में सामान्य सुविधा, सिक्योरिटी जैसी सुविधाएं भी प्रोवाइड नहीं करवा रहे। जो स्टाफ यहां काम कर रहा है उनका भी वैरिफिकेशन नहीं है। पीजी को महिला पुलिस थाने से जोड़ा जाना चाहिए।
सत्यापन कराना अनिवार्य
सत्यापन कराना अनिवार्य नजर ऐप के जरिए अधिक से अधिक तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। स्टाफ का पुलिस सत्यापन अनिवार्य है, अगर कोई नहीं करवाता तो इसकी सूचना मिलते ही हम उस पर कार्रवाई करते हैं।
प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत
पीजी में सुरक्षा के इंतजाम मापदंडों की पालना कुछ जगहों पर नहीं हो रही। हालांकि वार्डन और गार्ड 24 घंटे रहते हैं इसका पूरा रेकॉर्ड मेंटेन किया जाता है। शहर में रेजिडेंस में जो पीजी हैं. उनके कोई मापदंड नहीं हैं। इस पर प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है।
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