आंदोलन से जुड़े पेंशनभोगियों का कहना है कि एनएसी और इसके नेता अशोक राउत ईपीएस पेंशन वृद्धि और न्यूनतम पेंशन तथा अन्य सुविधाओं की मांग को लेकर बहुत मेहनत कर रहे हैं।
इसके अलावा, बड़ी संख्या में पेंशनभोगी रोजाना अपनी समस्याएं व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन हमारी सरकार और प्रधानमंत्री ईपीएस पेंशन के बारे में एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में जीत के बाद शायद मोदी और उनकी पार्टी यह सोच रही है कि कोई भी अन्य पार्टी भाजपा को नहीं हरा सकती।
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लेकिन जनता जानती है कि भाजपा और उसके साथी कैसे चुनाव जीत रहे हैं। यह चाल हमेशा नहीं चल सकती। ईपीएस द्वारा रोजाना सोशल मीडिया के माध्यम से कई शिकायतों के बावजूद न तो सर्वोच्च न्यायालय और न ही सरकार ने ईपीएस पेंशनभोगियों को जवाब देने की जहमत उठाई है।
2014 से पहले सेवानिवृत्त हुए लगभग 70 लाख या उससे अधिक पेंशनभोगियों में से लगभग 90% 75 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं और अब वे धरती पर अपने अंतिम कुछ दिन गिन रहे हैं। मोदी/ सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर विचार करना चाहिए था और इन वृद्धावस्था पेंशनभोगियों के प्रति कुछ सहानुभूति दिखानी चाहिए थी।
पेंशनभोगी बोल रहे हैं कि मोदी हर दिन सरकारी कर्मचारियों और सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों के लिए खुशखबरी की बात करते रहते हैं। लेकिन वे उन कर्मचारियों के बारे में कभी बात नहीं करते जो निजी कंपनियों से सेवानिवृत्त हुए हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद पेंशन फंड में योगदान दिया है।
पीएम की इस हरकत से हमें लगता है कि या तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट की परवाह नहीं है या फिर उन्हें सुप्रीम कोर्ट से अपने आदेश को लागू न करने की हरी झंडी मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आए हुए 2 साल से ज्यादा हो गए हैं। लेकिन ईपीएफओ (EPFO) या सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई है। अब केवल भगवान ही जानता है कि पेंशनभोगियों का क्या होगा।