कल्पना कीजिए अगर डोनाल्ड ट्रंप 20वीं सदी में राष्ट्रपति होते तो क्या होता? शायद, बहुत कुछ टल सकता था। फर्स्ट वर्ल्ड वार, सेकेंड वर्ल्ड वार, भारत-पाकिस्तान का विभाजन, बर्लिन की दीवार, कोल्ड वार, परमाणु हथियारों की होड़ सब कुछ रुक जाता। मुझे लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप को अपना सरनेम सीजफायर कर लेना चाहिए, क्योंकि व्हाइट हाउस की मानें तो ट्रंप का काम केवल सीजफायर करवाना ही है।
ज्यादातर नेता अक्सर आत्ममुग्ध होते हैं। घमंड, दिखावा, बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप दो कदम आगे हैं। बेहिचक, बेशर्मी से खुद की तारीफ करते हैं और हद तो ये है कि अब व्हाइट हाउस ने खुलेआम ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग कर दी है। इसके लिए तर्क दिया गया कि ट्रंप ने थाईलैंड और कंबोडिया, इजरायल और ईरान, रवांडा और कांगो, भारत और पाकिस्तान, सर्बिया और कोसोवो, और मिस्र और इथियोपिया के बीच शांति स्थापित कर दी है।
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सच कहूं तो मुझे लगता है कि व्हाइट हाउस की ओर से कुछ नाम छूट ही गए। जब कुछ भी बोलना ही है तो व्हाइट हाउस को बोलना चाहिए कि ट्रंप की वजह से शक्तिमान और किलविश ट्रंप की दखल के बाद दोनों मिलकर बच्चों को योग सिखा रहे हैं। WWE के अंडरटेकर और ब्रॉक लेसनर ट्रंप की वजह से जिगरी दोस्त बन चुके हैं।
WWE में कोई रेसलर अब किसी से लड़ना ही नहीं चाहता। सब रिंग में खड़े होकर शांति वार्ता कर रहे हैं। ट्रंप की वजह से टॉम एंड जेरी अब साथ में एक कैट-एंड-माउस कुकिंग शो होस्ट कर रहे हैं। मतलब अगर कुछ भी बोलना है, तो फिर खुलकर बोलो। ग्लोबल लेवल पर बोलो, पूरी सिनेमाई यूनिवर्स को शामिल करके बोलो। बोलने में क्या जाता है? क्या पता ये सब बोलने से नोबेल मिल ही जाए।
ट्रंप ने सिर्फ 6 महीनों में 529 बम गिरा दिए
आपको लग सकता है कि कई बार नोबेल पुरस्कार ऐसे लोगों को भी मिल चुका है जो इसके लायक नहीं थे। कई बार ऐसे लोगों को नॉमिनेट भी किया गया जो शायद इस योग्य नहीं थे। लेकिन, एक बात गौर करने वाली है कि उनमें से किसी ने नोबेल की खुद मांग नहीं की। खैर, ट्रंप की पुरानी आदत है कि उन्हें हर काम का क्रेडिट चाहिए, लेकिन अब तो हद है उन्हें उसका इनाम भी चाहिए। वो भी नोबेल शांति पुरस्कार। उन्हें समझना चाहिए कि नोबेल कोई रियलिटी शो नहीं है।
नोबेल पाने के लिए जरूरत होती है काम की, सिद्धांतों की और इंसानियत की। अब जरा ट्रंप के कामों पर नजर डालते हैं। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलीन लेविट ने कहा कि ट्रंप ने 6 महीने में 6 सीजफायर करवाया है, लेकिन ये नहीं बताया कि ट्रंप ने सिर्फ 6 महीनों में 529 बम गिरा दिए। उनसे पहले जो अमेरिका के राष्ट्रपति थे जो बाइडेन, उनके चार साल के कार्यकाल में 555 बम गिराए गए थे। ट्रंप 6 महीने में ही इस आंकड़े के काफी करीब पहुंच गए हैं। शांति की बात करने वाले व्यक्ति का ये भी एक रिकॉर्ड है।
अब बात करते हैं फॉरेन एड यानी विदेशी सहायता की। ट्रंप ने अमेरिका की 80% विदेशी सहायता काट दी है। लगभग 60 अरब डॉलर। ये कोई साधारण सहायता नहीं थी, बल्कि ये सहायता जीवनरक्षक थी। जो दुनिया के कई गरीब और विकासशील देशों में टीकाकरण अभियानों, दवाओं की आपूर्ति और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए इस्तेमाल होती थी। लेकिन, जब इस फंडिंग पर रोक लगाई गई तो इसका असर सिर्फ कागजों पर नहीं पड़ा, बल्कि जीवन पर भी पड़ा है।
लैंसेट नाम की मेडिकल जर्नल की रिसर्च के मुताबिक, इन कटौतियों की वजह से 2030 तक 1 करोड़ 40 लाख लोगों की मौत हो सकती है। इनमें एक-तिहाई बच्चे होंगे। अब सोचिए, क्या एक ऐसा व्यक्ति, जो नोबेल शांति पुरस्कार लेने की आकांक्षा रखता हो, वो ऐसा कदम उठा सकता है? जवाब साफ है – नहीं। क्योंकि शांति सिर्फ सीजफायर से नहीं आती, शांति तब आती है जब जिंदगियां बचाई जाती हैं ना कि फंडिंग काट कर खतरे में डाल दी जाए।
ट्रंप पर एक नहीं, कई आरोप
दुनिया में दर्जनों ऐसे लोग हैं जो नोबेल के हकदार हैं पर शायद ट्रंप उनमें नहीं हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रंप पर एक नहीं कई आरोप हैं। पिछले तीन-चार दशक में कई महिलाओं ने ट्रंप के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। हालांकि, ट्रंप इन आरोपों से इनकार करते रहे हैं। सोशल मीडिया पर ट्रंप के शब्द ही बहुत कुछ बयां कर जाते हैं। उन्होंने पॉप सिंगर टेलर स्विफ्ट के लिए लिखा कि क्या किसी ने ध्यान दिया है.
जब से मैंने कहा ‘मुझे टेलर स्विफ्ट से नफरत है,’ तब से वो अब ‘हॉट’ नहीं रही? अब इस बयान में न सिर्फ महिला विरोधी सोच झलकती है, बल्कि ये भी साफ होता है कि ट्रंप महिलाओं को किस नजर से देखते हैं। ऐसे बयान न केवल असंवेदनशील हैं, बल्कि ये दिखाते हैं कि एक सार्वजनिक जीवन में रहने वाला व्यक्ति कैसे जिम्मेदारी से दूर और मानसिक रूप से पक्षपाती हो सकता है।
अब अगर ट्रंप को नोबेल चाहिए तो उन्हें दुनिया से शांति पुरस्कार की असली परिभाषा बदलने की मांग करनी चाहिए। दुनिया को नए मानक बनाने होंगे। जहां बम गिराने, फंड काटने, और ट्वीट में नफरत उगलने वालों को शांति-दूत घोषित किया जाए। लेकिन, शुक्र है कि नोबेल कमेटी अब भी ट्वीट्स नहीं, ट्रैक रिकॉर्ड देखती है और ट्रंप का ट्रैक रिकॉर्ड? वो उतना ही उलझा हुआ है, जितनी उनकी हेयरस्टाइल।
