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July 27, 2024 8:14 am

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क्या है वजह: कई दशकों बाद उभरी दरार, “अमेरिका और इसराइल की दोस्ती में”…..

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मेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस हफ़्ते दुनिया के सबसे अहम रणनीतिक रिश्ते को हिलाकर रख दिया.

ये एक टीवी इंटरव्यू के दौरान हुआ. बाइडन से पूछा गया था कि क्या होगा अगर इसराइल ने रफ़ाह में हमले की योजना पर अमल किया. बाइडन का जवाब था- मैं हथियार सप्लाई नहीं करूंगा.

हथियार- अमेरिका और इसराइल की जुगलबंदी का आधार रहे हैं. मगर चार दशकों में ऐसा पहली बार हुआ है जब उनके रिश्ते में एक दरार नज़र आ रही है.

बाइडन पर अपने देश के अंदर से और बाहर से दुनिया का भी दबाव था कि वो ग़ज़ा में बिगड़ते जा रहे मानवीय संकट और लगातार जा रही आम लोगों की जान बचाने में मदद करें.

आख़िरकार उन्होंने संयम तोड़ते हुए पूरे मध्य पूर्व में अपने सबसे क़रीबी रणनीतिक सहयोगी इसराइल को भेजी जा रही हथियारों की खेप रोक दी.

इससे पहले 1980 के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के दौर में ऐसा हुआ था.

मध्य पूर्व में शांति के लिए वार्ताकार की भूमिका निभाते रहे आरोन डेविड मिलर कहते हैं कि ग़ज़ा में जंग की शुरुआत से ही बाइडन दो अलग-अलग विचारों के बीच फँसे हुए हैं.

एक ओर तो रिपब्लिकन पार्टी है जो खुलकर इसराइल का समर्थन करती है, दूसरी ओर उनकी अपनी डेमोक्रैटिक पार्टी है, जिसमें इस मामले पर राय बँटी हुई है.

मिलर कहते हैं कि अभी तक बाइडन ऐसा कुछ करने से बच रहे थे, जिससे अमेरिका-इसराइल संबंधों को नुक़सान पहुंचे. मगर बाइडन के विचार तब बदल गए, जब इसराइल रफ़ाह में घुसकर कार्रवाई करने वाला था.

सोमवार को इसराइल ने कहा कि उसकी थल सेना रफ़ाह के पूर्वी इलाक़े में ‘टारगेटेड एक्टिविटी’ करेगी यानी सीमित और सटीक अभियान चलाएगी.

इसी दौरान ऐसी खबरें आईं कि इसराइली टैंक बड़ी संख्या में इस इलाक़े के आस-पास जमा हो गए हैं.

स्थानीय बांशिदों का कहना था कि उन्हें लगातार गोलाबारी की आवाज़ आ रही है और पहले से ही जैसे-तैसे काम कर रहे अस्पतालों में घायलों की संख्या बढ़ गई है.

क्या है बाइडन की सख़्ती की वजह

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अब तक इस इलाक़े से एक लाख लोगों को भागकर कहीं और जाना पड़ रहा है और उन्हें छत, खाने, पानी और दूसरी सुविधाओं की कमी से जूझना पड़ रहा है.

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने फिर से कहा है कि वह शहर में पूरी ताक़त से ज़मीन के रास्ते कार्रवाई करेंगे. ये वही शहर है जहां 10 लाख से ज़्यादा विस्थापित फ़लस्तीनियों ने शरण ली हुई है.

उनका कहना है कि भले ही युद्ध-विराम को लेकर कोई नतीजा निकले या नहीं, रफ़ाह में छिपी हमास की चार टुकड़ियों को ख़त्म करने के लिए कार्रवाई ज़रूरी है.

अमेरिका ने कई बार उनसे आग्रह किया था कि ऐसा न करें और इससे बेहतर होगा कि हमास के ख़िलाफ़ सीमित और सटीक ऑपरेशन को अंजाम दें.

मिलर कहते हैं कि बाइडन को आशंका है कि रफ़ाह में इसराइली कार्रवाई के कारण जंग को ख़त्म करने और बंधकों को रिहा करने की संभावनाएं कम हो जाएंगी.

कई साल तक अमेरिका में प्रशासनिक सलाहकार के तौर पर भी काम कर चुके मिलर का कहना है कि बाइडन यह भी चाहते हैं कि इसराइल के पड़ोसी देश मिस्र के साथ किसी तरह का तनाव पैदा ना हो.

ख़तरा ये भी है कि अगर रफ़ाह में कार्रवाई की गई तो डेमोक्रैटिक पार्टी के अंदर भी चिंता और विभाजन पैदा होगा. ऐसे में मिलर का मानना है कि बाइडन ने हथियारों की खेप रोककर एक संकेत भेजा है.

बुधवार को बाइडन के इंटरव्यू के बाद अमेरिका ने इसराइल को भेजी जाने वाली कई हज़ार किलो बमों की खेप रोक दी थी. इनमें कुछ बम 900 किलो के हैं और कुछ 225 किलो के.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे बताया कि चिंता ये थी कि इन भारी बमों का इस्तेमाल अगर घनी आबादी वाले शहरी इलाक़ों में किया गया तो गंभीर नुक़सान हो सकता है और ऐसा ग़ज़ा के कई हिस्सों में देखा भी जा चुका है.

900 किलो वज़नी बम इसराइल के पास मौजूद सबसे घातक हथियारों में से एक हैं. उसकी सेना कहती है कि हमास को मिटाने के लिए इन बमों का इस्तेमाल ज़रूरी है.

इसके अलावा, अमेरिका इस बारे में भी विचार कर रहा है कि जॉइंट डायरेक्ट अटैक म्यूनिशंस (जेडीएएम) किट भेजने पर भी रोक लगाई जाए या नहीं. ये किट सामान्य बमों को गाइडेड बमों में बदल देती है यानी उनसे सटीक निशाने लगाए जा सकते हैं.

नाराज़गी असली या दिखावा?

शुक्रवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया कि ‘हो सकता है इसराइल ने ग़ज़ा में जारी जंग के दौरान अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन करते हुए कुछ मौक़ों पर अमेरिका की ओर से दिए गए बमों का इस्तेमाल किया हो.’

मगर रिपोर्ट में कहा गया है कि उनके पास ‘इस बारे में पूरी जानकारी नहीं है.’ यानी अमेरिका इस आधार पर फिलहाल इसराइल को सैन्य मदद जारी रख सकता है.

कर्नल जो बचीनो मध्य पूर्व में अमेरिकी सेना की कमान सेंटकॉम में वरिष्ठ अधिकारी थे.

वो बताते हैं कि इसराइली सेना के पास अभी जितने हथियार हैं, वो उनसे ही रफ़ाह को समतल कर सकती है.

अमेरिका हर साल इसराइल को 3.8 अरब डॉलर की सैन्य सहायता देता है. हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस ने 17 अरब डॉलर की अतिरिक्त मदद दी है जिसमें हथियार और डिफेंस सिस्टम शामिल होंगे.

कुल मिलाकर देखा जाए तो अमेरिका से सबसे ज़्यादा सैन्य मदद इसराइल को मिलती है.

कर्नल बचीनो कहते हैं कि रफ़ाह में किसी भी कार्रवाई के लिहाज़ से देखा जाए तो जो खेप रोकी गई है, उसका कोई असर नहीं पड़ने वाला.

उन्होंने कहा, “ये एक तरह से उन अमेरिकी लोगों के लिए एक राजनीतिक खेल है जो इस सब को लेकर चिंतित हैं.”

बाइडन के क़दम का असर

भले ही वाक़ई ऐसा हो या न हो, बाइडन के क़दम का राजनीतिक असर तो हुआ ही है. अमेरिकी सेनेट के हॉल में कई रिपब्लिकन काफ़ी नाराज़ थे.

अमेरिकी सेनेटर पीट रिकेट्स ने विदेश मामलों की समिति की बैठक के बाद मुझसे कहा, “हथियार रोकना चौंकाने वाला क़दम है. राष्ट्रपति को ये नहीं करना चाहिए था.”

जब मैंने उनसे कहा कि इसराइल रफ़ाह पर हमला करना चाहता है तो उन्होंने कहा, ‘ये मामला एक आतंकवादी संगठन के ख़िलाफ़ अपने सहयोगी इसराइल की मदद करने का है.’

एक अन्य रिपल्बिकन सेनेटर जॉन बैरासो ने कहा कि इसराइल को अपने संप्रुभता की रक्षा करने का अधिकार है. उनका कहना था कि बाइडन के इस क़दम ने उनकी कमज़ोरी को सामने लाकर रख दिया है.

लेकिन बाइडन की अपनी पार्टी में इस क़दम का स्वागत किया जा रहा है.

डेमोक्रैटिक सेनेटर क्रिस कून्स ने दो महीने कहा था कि अगर इसराइल ने फ़लस्तीनियों की जान बचाने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए बिना रफ़ाह में बड़े पैमाने पर अभियान छेड़ा तो उसकी मदद रोकनी चाहिए.

वह कहते हैं, “ग़ज़ा में जारी संघर्ष ने हम जैसे लोगों को बहुत दर्द दिया है जो इसराइल के कड़े समर्थक हैं मगर लोगों को पहुंच रही पीड़ा और वहां के हालात से भी हम चिंतित हैं.”

उन्हें लगता है कि बाइडन ने कई बार नेतन्याहू को रोकने की कोशिश की मगर इसराइली पीएम अपने देश के उन अति-राष्ट्रवादियों का राजनीतिक समर्थन हासिल करना चाहते हैं, जो ग़ज़ा में मानवीय मदद भेजने के ख़िलाफ़ हैं और वेस्ट बैंक से भी फ़लस्तीनियों को निकालना चाहते हैं.

कून्स का कहना है कि ये इसराइल को पहला संदेश है.

यह संदेश उस समय दिया गया है, जब हमास के क़ब्ज़े में मौजूद बंधकों की रिहाई और युद्धविराम के लिए की जा रही कोशिशें एक नाज़ुक मोड़ पर हैं.

बीते हफ़्ते मिस्र में हुई वार्ता बेनतीजा रही है.

कुछ इसराइली टिप्पणीकारों का कहना है कि बाइडन के क़दम से बंधकों की रिहाई के लिए चल रही बातचीत में इसराइल की स्थिति कमज़ोर होगी और रफ़ाह में अभियान को रोकने की किसी भी कोशिश का सीधा फ़ायदा हमास को होगा.

इसराइल और हमास में किन शर्तों पर बात रही है, इसे लेकर सटीक जानकारी सामने नहीं आ रही. मगर सबसे बड़ी अड़चन तो इस बात को लेकर है कि हमास चाहता है कि पूरी तरह जंग ख़त्म कर दी जाए, मगर इसराइल इसके लिए तैयार नहीं है.

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बाइडन-नेतन्याहू के रिश्ते

बाइडन और नेतन्याहू का नाता पांच दशक पुराना है और उनके संबंधों में उतार-चढ़ाव का इतिहास भी इतना ही पुराना है.

बाइडन बताते हैं कि जब वे दोनों जवान थे, तब उन्होंने एक तस्वीर पर कुछ लिखा था जो बाद में नेतन्याहू के डेस्क पर पड़ी रही थी.

उस पर लिखा था, “बीबी (नेतन्याहू का उपनाम), आई लव यू. लेकिन तुम्हारी किसी भी बात से मैं सहमत नहीं हूं.”

इसराइल की मदद के लिए नेतन्याहू कई बार बाइडन का शुक्रिया अदा कर चुके हैं मगर फ़लस्तीनियों के मसले पर दोनों की नीतियों में टकराव दिखता रहा है.

सात अक्टूबर को हमास के हमले के चंद दिनों बाद जब बाइडन इसराइल गए थे तो उन्होंने तेल अवीव में नेतन्याहू को गले लगाया था.

बाइडन जब नेतन्याहू और उनकी वॉर कैबिनेट की बैठक से बाहर निकले थे और इसराइल के समर्थन में बातें कही थीं, तब मैं वहां मौजूद था. लेकिन उस वक़्त उन्होंने एक हिदायत भी दी थी.

बाइडन ने कहा था, ” 9/11 हमले के बाद हमने जो ग़लतियां की थीं, उन ग़लतियों को मत दोहराना.”

उन्होंने इसका आशय भी स्पष्ट किया था.

बाइडन ने कहा था, “फ़लस्तीनी भी बड़ा कष्ट झेल रहे हैं और हम भी बाक़ी दुनिया की तरह मासूम फ़लस्तीनियों की मौत का शोक मना रहे हैं.”

जंग के दौरान बाइडन के दौरे का छिपा हुआ मक़सद ये भी था कि भविष्य में इसराइल और अमेरिका के संबंधों पर कोई आंच न आए. मगर इस हफ़्ते आंच आती दिखी.

बाइडन की ओर से हथियारों की खेप रोकने के एलान के अगले ही दिन नेतन्याहू ने पलटवार किया.

उन्होंने कहा, “अगर हमें अकेले ही खड़े रहना होगा तो हम अकेले खड़े रहेंगे. और मैंने पहले भी कहा है कि ज़रूरत पड़ेगी तो हम अपने नाखूनों की मदद से भी लड़ेंगे.”

नेतन्याहू काफ़ी पहले समझ गए थे कि अमेरिका के दबाव के आगे न झुककर वह देश के अंदर अपना आधार बढ़ा सकते हैं.

मैंने नेतन्याहू का बयान डेमोक्रैटिक पार्टी के सेनेटर क्रिस कून्स के सामने रखा.

उन्होंने कहा, “उन्हें नाखूनों से लड़ने की ज़रूरत नहीं है. वो उन आधुनिक हथियारों से लड़ेंगे जिनमें से कइयों को उन्होंने हमारे साथ मिलकर विकसित किया है और कई बार हमने वो उन्हें दिए भी हैं. लेकिन उन्हें इनका इस्तेमाल इस तरह से करना होगा कि आम लोगों को कम से कम नुक़सान पहुंचे.”

 

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