उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के बाद अब ब्राह्मण कार्ड चला है. पार्टी ने दिग्गज नेता और बड़े ब्राह्मण चेहरे माता प्रसाद पांडेय को नया नेता प्रतिपक्ष बनाया है. अब तक यूपी विधानसभा में जिस कुर्सी पर बैठकर पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव जिम्मेदारी संभाल रहे थे, वो अब पांडेय निभाते नजर आएंगे. पहले माना जा रहा था कि सपा किसी दलित या पिछड़े को यह महत्वपूर्ण पद देकर अपने इस जनाधार को और ज्यादा मजबूत करने की कोशिश कर सकती है. हालांकि, नए दांव से हर कोई हैरान है.
अखिलेश के इस ब्राह्मण कार्ड को बसपा प्रमुख मायावती की सोशल इंजीनियरिंग से जोड़कर भी देखा जा रहा है. एक समय बसपा भी ब्राह्मणों को साधने के लिए सतीश मिश्रा को पार्टी में लेकर आई थीं. बसपा को इसका फायदा भी मिला और ब्राह्मणों का बड़ा वोट बैंक पार्टी की तरफ मूव हुआ था. माना जा रहा है कि अब सपा की नजर भी मायावती के उस वोट बैंक पर टिकी है.
बसपा प्रमुख मायावती ने पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने पर अखिलेश यादव पर तंज कसा और कहा, सपा मुखिया ने लोकसभा आमचुनाव में खासकर संविधान बचाने की आड़ में यहां PDA को गुमराह करके उनका वोट तो जरूर ले लिया, लेकिन यूपी विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाने में जो इनकी उपेक्षा की गई, यह भी सोचने की बात है. जबकि सपा में एक जाति विशेष को छोड़कर बाकी PDA के लिए कोई जगह नहीं है. ब्राह्मण समाज की तो कतई नहीं, क्योंकि सपा और बीजेपी सरकार में जो इनका उत्पीड़न और उपेक्षा हुई है, वो किसी से छिपी नहीं है. वास्तव में इनका विकास और उत्थान सिर्फ BSP सरकार में ही हुआ. अतः ये लोग जरूर सावधान रहें.
मायावती का बयान बता रहा है कि आने वाले दिनों में बसपा भी बड़ा दांव चल सकती है और अपने परंपरागत वोट बैंक को साधने के लिए नए सिरे से रणनीति बना सकती है.
सतीश मिश्रा की चर्चा क्यों?
सतीश मिश्रा सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील हैं. साल 2004 में बसपा सुप्रीमो मायावती के सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले के आधार पर सतीश मिश्रा की बसपा में एंट्री हुई थी. वे पार्टी के ब्राह्मण चेहरे के तौर पर सामने आए. मिश्रा की एंट्री रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही. मिश्रा ने बसपा की सोशल इंजीनियरिंग को आगे बढ़ाया, जिससे विभिन्न जातियों के बीच समर्थन बढ़ा. इससे बसपा को 2007 के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने में मदद मिली. मिश्रा ने पार्टी के भीतर एक संतुलन भी स्थापित किया, जिससे ब्राह्मणों और दलितों के बीच एकता बढ़ी. उसके बाद हुए चुनावों में भी पार्टी ने सतीश मिश्रा के जरिए सोशल इंजीनियरिंग को साधे रखा. कहा जाता है कि 2019 के आम चुनावों के लिए सपा और बसपा के बीच चुनावी समझौते में भी मिश्रा की अहम भूमिका रही. यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बसपा के ‘ब्राह्मण सम्मेलन’ को ‘प्रबुद्ध सम्मेलन’ के रूप में फिर से शुरू किया.
हालांकि इससे बसपा को राज्य में कोई खास फायदा नहीं पहुंचा और पार्टी सिर्फ एक सीट जीत सकी. बसपा का एक बड़ा वोट बैंक बीजेपी में शिफ्ट हो गया. बाद में बसपा की रणनीति में बदलाव देखा गया और पार्टी अब अपने मूल वोटर्स (दलित और मुसलमान) को वापस लाने की कोशिश में जुट गई है. मायावती ने पहले पूर्व कैबिनेट मंत्री नकुल दुबे को पार्टी से निकाला. उसके बाद एक अन्य ब्राह्मण नेता अनिल पांडे को भी बर्खास्त किया. नकुल दुबे को सतीश मिश्रा का करीबी माना जाता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा की सोशल इंजीनियरिंग पूरी तरफ फेल साबित हुई. यहां तक कि दलित वोटर्स भी पार्टी से दूरी बनाते देखे गए.
क्या पुराना रिकॉर्ड दोहराने की तैयारी में सपा?
2024 के आम चुनाव में सपा को बंपर फायदा मिला है. कहा जा रहा है कि जनता की नाराजगी का फायदा सीधे तौर पर सपा और इंडिया ब्लॉक को मिला है. ऐसे में सपा भी चाहती है कि जनता की इस नाराजगी को वोट के रूप में बदला जाए और 2027 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर सरकार बनाई जाए. हाल में 10 सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव भी होने हैं. सपा अपने परंपरागत MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण का पहले ही विस्तार कर चुकी है. उसके पीडीए फॉर्मूले ने भी बढ़त दिलाई है. अब सोशल इंजीनियरिंग का नया दांव से उम्मीद
दरअसल, 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अकेले दम पर 224 सीटें जीती थीं और इसे सोशल इंजीनियरिंग का करिश्मा माना गया था. उस समय सपा की बागडोर मुलायम सिंह यादव के हाथ में थी और अखिलेश यादव के नेतृत्व में पूरे प्रदेश में साइकिल यात्रा निकाली गई थी. मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया. अखिलेश ने ब्राह्मणों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. चूंकि ब्राह्मण वोर्ट इससे पहले 2007 में बसपा के साथ गए थे और मायावती ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. लेकिन कथित तौर पर बसपा शासनकाल में ब्राह्मणों की उपेक्षा हुई तो यह वर्ग नाराज होकर सपा में चला गया था. अखिलेश अब अपना वही पुराना फॉर्मूला 2027 के चुनावों में भी आजमाना चाहेंगे. 2017 और 2022 के चुनाव में ब्राह्मण और सवर्ण समुदाय को बीजेपी के पाले में देखा गया है.
सामान्य वर्ग को लेकर सपा के नए समीकरण?
क्या सपा का यह ब्राह्मण कार्ड 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर खेला गया है? सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा कहते हैं कि PDA का मतलब पिछड़ा, दलित और A से दो मायने हैं- अल्पसंख्यक और अगड़ा. माता प्रसाद पांडेय अनुभव के आधार पर नेता प्रतिपक्ष बनाए गए हैं. हम सड़क से लेकर सदन तक जनता के मुद्दों को उठाने का काम करेंगे. समाजवादी पार्टी ने यह लगभग साफ कर दिया है कि पार्टी अब अपने MY समीकरण के साथ ओबीसी, दलित और सामान्य वर्ग को लेकर नए समीकरण बना रही है, जो बीजेपी और बसपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो अखिलेश इस थ्योरी पर चल रहे हैं कि ब्राह्मण समेत सामान्य वर्ग का लगभग अधिकांश वोट बीजेपी से नाखुश है और इस पर ज्यादा मेहनत करने से पार्टी को खास फायदा मिलने से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसके लिए सपा का फोकस अब मुस्लिम, यादव, ओबीसी, दलित और ब्राह्मण वर्ग पर है.
PDA फैक्टर ने सपा को दिलाया लाभ?
दरअसल, आम चुनाव से पहले सपा ने पीडीए का नारा दिया था और जबरदस्त बढ़त हासिल की थी. यूपी में सबसे ज्यादा 37 लोकसभा सीटें जीतीं. सपा को 33.80 प्रतिशत वोट शेयर मिला. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि इस बार सपा को MY फैक्टर का लाभ तो मिला ही है, पार्टी ने बसपा-बीजेपी के दलित-पिछड़ा वोट बैंक में भी सेंध लगाई है. पार्टी की नजर अब उससे भी आगे है. यही वजह है कि अखिलेश अब ब्राह्मण समुदाय को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटे हैं. जानकार कहते हैं कि अखिलेश के इस दांव को मास्टरस्ट्रोक कह सकते हैं, लेकिन यह रिस्क भी कम नहीं है.
सपा से दूर हो रहा था सामान्य वर्ग?
चूंकि अखिलेश 2023 से लगातार पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक को साथ लेकर आगे बढ़ते देखे गए हैं. पार्टी की छवि भी पिछड़ा, दलित, यादव और मुस्लिम के इर्द-गिर्द बन रही थी. अखिलेश की मुखरता की वजह से यह संदेश भी जा रहा था कि सपा अगड़ों से दूरी बनाकर चल रही है. विधानसभा में मुख्य सचेतक रहे मनोज पांडेय जैसे बड़े ब्राह्मण चेहरों ने आम चुनाव के दौरान बगावती रुख अपनाया. मनोज पांडेय, रायबरेली की ऊंचाहार सीट से विधायक हैं. हालांकि, अब नए सिरे से ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाए जाने से पार्टी ने नई चर्चाओं को छेड़ दिया है. यदि सपा का ब्राह्मण कार्ड काम करता है तो 2027 में विधानसभा की लड़ाई रोचक हो सकती है.
क्या है यूपी का जातीय समीकरण?
यूपी का जातिगत समीकरण देखें तो सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग है. प्रदेश में 18 फीसदी सवर्ण जातियां हैं, जिसमें 10 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण हैं. पिछड़े वर्ग की संख्या 40 फीसदी है, जिसमें यादव 10 फीसदी, कुर्मी सैथवार 8 फीसदी, मल्लाह 5 फीसदी, लोध 3 फीसदी, जाट 3 फीसदी, विश्वकर्मा 2 फीसदी, गुर्जर 2 फीसदी और अन्य पिछड़ी जातियों की संख्या 7 फीसदी है. इसके अलावा प्रदेश में अनुसूचित जाति 22 फीसदी हैं और मुस्लिम आबादी 18 फीसदी है. यूपी की राजनीति में ब्राह्मण वोटर्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यहां ब्राह्मण वोटर्स पारंपरिक रूप से बीजेपी का समर्थन करते रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने क्रमशः 72% और 80% ब्राह्मण वोट हासिल किए थे. ब्राह्मण वोटर्स का प्रभावी जनाधार होने के कारण सभी प्रमुख राजनीतिक दल उन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं. बीजेपी के लिए ब्राह्मण वोटर्स एक महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं और वे पार्टी की चुनावी रणनीति में अहम भूमिका निभाते हैं.
2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने ब्राह्मण वोटर्स को आकर्षित करने के लिए विशेष रणनीति अपनाई थी. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रदेश में ‘ब्राह्मण सम्मेलन’ आयोजित करवाए थे. भगवान परशुराम की मूर्ति का उदघाटन भी किया गया था. सपा ने अपने चुनावी अभियान में गुर्जर, अहीर, जाटव, ब्राह्मण समीकरण पर ध्यान केंद्रित किया था. पार्टी का मानना था कि इस समीकरण के जरिए वो अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), दलित, और ब्राह्मण समुदायों का समर्थन हासिल कर सकती है. हालांकि, नतीजों ने पार्टी को निराश कर दिया था.
कौन हैं माता प्रसाद पांडेय?
माता प्रसाद पांडेय 81 साल के हैं. वे सिद्धार्थनगर जिले की इटवा सीट से विधायक हैं. दो बार विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं. मुलायम सिंह यादव सरकार में दो बार मंत्री भी रहे हैं. पार्टी की स्थापना के दिनों से जमीन पर काम कर रहे हैं. पांडेय ने अपना पहला विधानसभा चुनाव साल 1980 में जनता पार्टी से लड़ा था और जीत हासिल की थी. 2002, 2007 और 2012 में सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधानसभा पहुंचे. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 2022 में एक बार फिर जीत हासिल की. पांडे 1991 में स्वास्थ्य मंत्री तथा 2003 में श्रम और रोजगार मंत्री बने रहे. पार्टी ने पांडेय को अहम पद देकर अपनी रणनीति को मुस्लिम, यादव से आगे ले जाने की कोशिश की है. इसके अलावा, अखिलेश ने अमरोहा सीट से विधायक महबूब अली को अधिष्ठाता मंडल, मुरादाबाद जिले से विधायक कमाल अख्तर को मुख्य सचेतक और प्रतापगढ़ से विधायक राकेश कुमार उर्फ आरके वर्मा को उप सचेतक बनाया है.
हाल ही में अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव जीता है, जिसके बाद उन्होंने करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया है. अखिलेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे थे.
क्या बोले माता प्रसाद पांडेय?
यूपी में आज से विधानसभा सत्र भी शुरू हो रहा है. आजतक से बातचीत में नए नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने कहा, विद्युत के लिए हाहाकार मचा है. साथ ही कानून व्यवस्था का बुरा हाल है. पुलिस ही पुलिस को गिरफ्तार कर रही है. इसका मतलब भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है. भ्रष्टाचार भी एक मुद्दा है. किसानों की समस्या है. बाढ़ और बेरोजगारी की समस्या है. स्पीकर जब होता है तो नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष दोनों मिलकर काम करते हैं. हमको इसका अनुभव है. नेता प्रतिपक्ष को क्या करना चाहिए, उसकी क्या जिम्मेदारी है? पांडेय की नियुक्ति से सपा विधायकों में भी खुशी देखी गई है. विधायक आशु मलिक कहते हैं कि काफी लंबा अनुभव है. नियमों की जानकारी है. विधानसभा अध्यक्ष भी रहे हैं. हमें पूरी उम्मीद है कि जनता के जिन मुद्दों पर पूरा विपक्ष एकजुट है, उनको प्रमुखता से उठाया जाएगा.
