Explore

Search

December 26, 2024 3:49 pm

लेटेस्ट न्यूज़

‘भारतीय संविधानित्व’- समझिए पूरा मामला………’सुप्रीम कोर्ट ने क्यों ‘हिंदुत्व’ शब्द को बदलने से इनकार कर दिया……

WhatsApp
Facebook
Twitter
Email

हिंदुत्व शब्‍द पर एक बार फिर आपत्ति जताई गई, इसे एक विशेष धर्म के साथ जोड़कर दिखाने की कोशिश की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आपत्ति पर तवज्‍जो नहीं दी और ‘हिंदुत्व’ शब्द की जगह ‘भारतीय संविधानित्व’ शब्द करने के अनुरोध वाली जनहित याचिका खारिज कर दी. एक 65 वर्षीय डॉक्टर की जनहित याचिका को सिरे से खारिज करते हुए ‘हिंदुत्व’ को कट्टरवाद के साथ जोड़ने के एक नए प्रयास को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता डॉक्‍टर साहब का दावा था कि हिंदुत्व शब्द धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए हानिकारक है.

‘हिंदुत्व’ शब्द पर क्‍यों आपत्ति?

‘हिंदुत्व’ शब्द पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता डॉ. एसएन कुंद्रा एक अलग तर्क के साथ आए, उन्‍होंने कहा, “हिंदुत्‍व शब्द एक विशेष धर्म के धार्मिक कट्टरपंथियों और हमारे धर्मनिरपेक्ष संविधान को एक धार्मिक संविधान (मनुस्मृति) में बदलने पर आमादा लोगों द्वारा इसके दुरुपयोग की बहुत गुंजाइश छोड़ता है. भारत में समरूप बहुमत और सांस्कृतिक आधिपत्य को बढ़ावा देने के लिए हिंदुत्व की आड़ में एक विशेष धर्म के धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा लगातार प्रयास किए जाते हैं. हिंदुत्व को राष्ट्रवाद और नागरिकता का प्रतीक बनाने का भी प्रयास किया जाता है. हिंदुत्व’ शब्द का दुरुपयोग करके राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बहुत नुकसान पहुंचाया जा रहा है. एक विशेष धर्म को बढ़ावा देने/प्रचार करने वाली सभी गतिविधियां, धर्म को मानने वालों द्वारा की जाती हैं. शीर्ष संवैधानिक पद लोगों/मीडिया/कानूनी पर्यवेक्षकों की आंखों में धूल झोंकने के लिए ‘हिंदुत्व’ शब्द का उपयोग कर रहे हैं.”

Jaipur News: लचर पड़ी चिकित्सा व्यवस्था से मरीजों का इलाज करना हुआ दूभर………’फागी में टूटा डेंगू का कहर!

सुप्रीम कोर्ट ने क्‍या कहा

मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “हम ऐसी याचिकाओं पर विचार नहीं करेंगे. यह पूरी तरह प्रक्रिया का दुरुपयोग है. श्रीमान, हम इस पर विचार नहीं करेंगे.”

हिंदुत्व शब्‍द के खिलाफ कब-कब अदालत पहुंचे लोग

साल 1994 के बाद से सुप्रीम कोर्ट में “हिंदुत्व” शब्‍द के खिलाफ यह तीसरी चुनौती थी. सबसे पहले शीर्ष अदालत ने इस्माइल फारूकी फैसले में कहा था, “आमतौर पर, हिंदुत्व को जीवन जीने का एक तरीका या मन की स्थिति के रूप में समझा जाता है और इसकी तुलना धार्मिक हिंदू कट्टरवाद के रूप में नहीं की जानी चाहिए या समझा जाना चाहिए.”
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने रमेश यशवंत प्रभु मामले में अपने दिसंबर 1995 के मामले में फैसला सुनाया था- “हिंदू, ‘हिंदुत्व’ और ‘हिंदू धर्म’ शब्दों का कोई सटीक अर्थ नहीं बताया जा सकता है और अमूर्त में कोई भी अर्थ इसे संकीर्ण सीमा तक सीमित नहीं कर सकता है. संक्षेप में ‘हिंदुत्व’ या ‘हिंदू धर्म’ शब्द का अर्थ संकीर्ण कट्टरपंथी हिंदू धार्मिक कट्टरता के साथ समझा जा सकता है… ” अदालत ने कहा था कि ‘हिंदुत्व’ या ‘हिंदू धर्म’ शब्दों का अर्थ अन्य धार्मिक आस्थाओं के प्रति शत्रुता या असहिष्णुता या सांप्रदायिकता को दर्शाने के लिए नहीं लगाया जा सकता है.

साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट की 7-न्यायाधीशों की पीठ ने ‘हिंदुत्व’ को जीवन शैली के रूप में परिभाषित करने वाले 1995 के फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया था. तब ‘हिंदुत्व’ शब्द को फिर से परिभाषित करने और चुनावों में इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की याचिका को खारिज कर दिया.

ताजा खबरों के लिए एक क्लिक पर ज्वाइन करे व्हाट्सएप ग्रुप

Leave a Comment

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर