जस्टिस नाथ ने कहा कि क्या आपके अधिकारी अखबार नहीं पढ़ते? क्या उन्हें हमारे आदेशों की जानकारी नहीं थी? यह मामला जुलाई के अंत में तब शुरू हुआ, जब दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में आवारा कुत्तों के हमलों और रेबीज से होने वाली मौतों की खबरें सामने आईं. इन खबरों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया. 11 अगस्त को कोर्ट ने अपने पहले बड़े हस्तक्षेप में दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से शेल्टर में रखने का आदेश दिया था. इस निर्देश की पशु कल्याण संगठनों ने कड़ी आलोचना की और इसे अव्यवहारिक और क्रूर बताया.
तीन जजों की विशेष बेंच
इसके बाद 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने एक नई तीन जजों की विशेष बेंच बनाई, जिसने पहले के बेहद सख्त आदेश को संशोधित किया. इस बेंच ने मामले को व्यापक रूप दिया और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को इसकी सुनवाई में शामिल किया. कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित इस तरह के मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित किया जाए. इसका मकसद एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियम, 2023 के तहत एक समान राष्ट्रीय नीति बनाना है, जो पूरे देश में लागू हो.
सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के हमलों को गंभीरता से लिया है, क्योंकि ये घटनाएं न केवल लोगों की सुरक्षा के लिए खतरा हैं, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी प्रभावित कर रही हैं. कोर्ट ने राज्यों से इस मुद्दे पर त्वरित कार्रवाई की उम्मीद की है. साथ ही, यह भी स्पष्ट किया कि इंसानों की सुरक्षा के साथ-साथ पशुओं के प्रति मानवीय व्यवहार को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.
यह मामला अब देशभर में आवारा कुत्तों की समस्या पर एक व्यापक नीति बनाने की दिशा में बढ़ रहा है. कोर्ट की कोशिश है कि ऐसी नीति बने जो न केवल लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करे, बल्कि पशु कल्याण के नियमों का भी पालन करे. इस मामले की अगली सुनवाई में राज्यों से अनुपालन रिपोर्ट मांगी गई है और उम्मीद है कि जल्द ही इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे.